शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

रामायण

संस्कृत साहित्य में ' रामायण ' को ' आदिकाल ' कहा जाता है तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि   को ' आदिकवि ' | वाल्मीकि  के जीवन के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता | प्रसिद्ध है की वाल्मीकि  पहले लूटमार से अपने परिवार का भरण - पोषण करते थे | ऋषियों के एक समूह से मिलने के बाद उनके जीवन दिशा बदल गई और वे तप- साधना , ज्ञानचर्या में प्रवृत हो गये | वाल्मीकि   के कवि बनने की कहानी काम - मोहित क्रोंच पक्षी के मारे जाने से जुडी है | जब एक शिकारी ने मैथुनरत  क्रोंच पक्षी - युगल पर बाण चलाकर नर क्रोंच को मार दिया तो क्रोची विलाप करने लगी | क्रोंची का करुण स्वर सुनकर वाल्मीकि  शोक विह्वल  हो गए | शोकाकुल महर्षि के मुख से जो वाणी फूटी उसे श्लोक कहा गया | इस श्लोक का भावार्थ था ' हे व्याध ! तुमने काम मोहित इस क्रोंच पक्षी को मारा हे , अत: तुम कभी प्रतिष्ठा न प्राप्त करो | ' वाल्मीकि ने जो राम कथा लिखी उसमें वे स्वंम उपस्थित हैं | सीता और उनके दो पुत्रों कुश तथा लव का पालन - पोषण वाल्मीकि के ही आश्रम में होता हे |
                          रामायण के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं  | मर्यादा - पुरुष के रूप में राम वैदिक परम्परा में तो विख्यात हैं हीं , इसके साथ जैन तथा  बोद्ध परम्पराओं में भी उन्हें स्थान दिया गया हे | लोक में राम की प्रसिद्धी बहुत प्राचीन है | विंटरनित्स का विचार है की रामायण का मूल स्वरूप ईसा पूर्व चोथी शताब्दी में तैयार हुआ तथा इसका अंतिम स्वरुप दूसरी शताब्दी ईस्वी के लगभग निश्चित हुआ | कुछ विद्वान उत्तर काण्ड को तथा बालकाण्ड के कुछ हिस्सों को वाल्मीकिकृत न मानकर प्रक्षिप्त बताते  हैं | जर्मन विद्वान याकोबी मूल रामायण में पांच ही काण्ड स्वीकारते है - अयोध्या से लेकर उत्तरकाण्ड तक | जो हो , रामायण के उपलब्ध  वर्तमान स्वरुप का कथा विन्यास शिथिल या अस्त - व्यस्त नहीं है | रामायण के श्लोकों की कुल संख्या चौबीस हज़ार है जिससे इसे ' चतुर्विंशति सहस्त्री सहिंता ' कहते है | ' रामायण ' में प्रायेह अनुष्टुप छंद का व्यवहार हुआ है | वाल्मीकि इस छंद के आविष्कारक माने जाते हैं | रामायण का पाठ कई  रूपों में मिलता है | आजकल इसके तीन पाठ प्रचलित हैं | दक्षिणात्य पाठ , गोंडीय पाठ तथा पश्चिमोत्तरीय पाठ |   
       

4 टिप्‍पणियां:

वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर ने कहा…

रामायण के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं | मर्यादा - पुरुष के रूप में राम वैदिक परम्परा में तो विख्यात हैं हीं , इसके साथ जैन तथा बोद्ध परम्पराओं में भी उन्हें स्थान दिया गया हे



मीनाक्षी जी,

भारतीय संस्कृति समन्वयपरक है।
बौद्ध, जैन अलग तो नहीं
एक ही हैं
नाम भले अनेक हो

विशाल ने कहा…

मीनाक्षी जी,
वाल्मीकि जी के बारे में आपके द्वारा दी गयी जानकारी संग्रह करने योग्य है.
आभार व् शुभ कामनाएं.

Rajesh Kumar 'Nachiketa' ने कहा…

इस बात पे मतभेद भले हो की रामायण कब लिखी गयी लेकिन राम के आदर्श में सब सीखने योग्य है.
प्रणाम.

Bharat Bhushan ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी. आधुनिक काल में भी राम की शालीनता और मर्यादा दर्शनीय है. कोमल चित्त होना कोई उनसे सीखे.