बुधवार, 9 मार्च 2011

लिओ टालस्टॉय

    
Everyone thinks of changing  the world
but no one thinks of changing himself ...
                                               टालस्टॉय की वोल्कोंस्की परिवार की थी | वे दहेज़ में अपने साथ ' यासनाया पोल्याना ' रियासत भी लाई थी , जिसमें तीन सौ कृषि दास थे | टालस्टॉय को जुआ खेलने से कोई परहेज़  नहीं था | एक बार जुआ खेलते हुए वो कुछ इतना हार गये कि उन्हें अपनी रियासत का कुछ भाग बेचना भी पड़ा | अपनी मानसिक शक्तियों पर मुग्ध लिओ को यह गुमान था कि उनका चिंतन शुद्ध अध्यात्मिक  है |
              विश्व प्रसिद्ध उपन्यासकार ' युद्ध और शांति जैसी ' अप्रतिम कृति  के लेखक और महान समाज सुधारक लिओ टालस्टॉय खुद  को ईश्वर का बड़ा  भाई मानते थे | उनका जन्म 1872 में रूस में संभ्रांत परिवार में हुआ था | उन्हें हमेशा यही लगता था कि उनकी अध्यात्मिक शक्ति , अतुलनीय व् अव्याख्यायित है | यहाँ वे अपने को बुद्ध , सुकरात , पास्कल कन्फुशियस एवं स्पिनोजा से बेहतर मानते थे | ईश , केन , कठ आदि उपनिषद अपने सिरहाने रखकर सोने वाला जर्मन दार्शनिक शापेन्हावर उन्हें हमेशा प्रेरित करता था कि जो कुछ लिखें  वो अकाट्य हो | उनकी डायरी पढने  पर लगता है कि कार्ल मार्क्स कि तरह उन्होंने भी अपना लेखकीय जीवन काव्य रचना से ही शुरू किया था | डायरी में ये भी लिखा मिलता है _ ' मुझे आज तक एसा आदमी नहीं मिला , जो नैतिक  स्तर पर ठीक मेरे जैसा हो | ' उन्हें आश्चर्य होता है कि लोग उनके गुणों को पहचानते क्यु नहीं , मुझे प्यार क्यु नहीं करते ? मैं इतना बुरा नहीं , मेरा अंगभंग भी नहीं हुआ फिर भी लोगों को मेरे प्रति आसक्ति क्यु नहीं ?
            वे हरेक व्यक्ति के साथ और हर स्थिति में एक तरह कि  निर्णयात्मक मुद्रा अपनाये रखते थे , जैसे उन्होंने नैतिकता का ठेका ले रखा हो | जब वे एक महान उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध हो गये तो ईश्वर जैसी शक्ति का प्रदर्शन करने लगे | टालस्टॉय ने लिखा है _ ' जब लेखन के क्षणों में मुझे किसी पात्र पर दया आ जाती है तो मैं जान -बुझकर उसके ओछेपन में कुछ बेहतर गुण भर देता हूँ अथवा उसके समांतर खड़े किसी पात्र के कुछ गुण घटा देता हूँ | टालस्टॉय जब समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध हो गये तब ईश्वर के तदरूप हो गये और उनकी भ्रम - भंगिमा उनमें  और अधिक विकसित हो गई | वे तरह - तरह  से अपनी दिव्यता का प्रदर्शन करने लगे | उन्होंने लिखा भी है _ ' ओ पिता ! वर दो रक्षा करो कि मुझमें तुम्हारा आवास बना रहे | ' मगर ईश्वर कि मुश्किल यह थी कि लिओ संशयवादी भी थे | एसी स्थिति में गोर्की ने लिखा है _ ' एक गुफा में दो रीछ कैसे रह सकते थे | ' अल्लाह मियां का बड़ा भाई होने का भ्रम लिओ को क्यु था ? कारण शायद  ये हो सकता है कि उनका जन्म एक जागीरदार परिवार में हुआ था |
              उन दिनों कृषि - दास प्रथा जोरों पर थी | टालस्टॉय की वोल्कोंस्की परिवार की थी | वे दहेज़ में अपने साथ ' यासनाया पोल्याना ' रियासत भी लाई थी , जिसमें तीन सौ कृषि दास थे | टालस्टॉय को जुआ खेलने से कोई परहेज़  नहीं था | एक बार जुआ खेलते हुए वो कुछ इतना हार गये कि उन्हें अपनी रियासत का कुछ भाग बेचना भी पड़ा | अपनी मानसिक शक्तियों पर मुग्ध लिओ को यह गुमान था कि उनका चिंतन  शुद्ध अध्यात्मिक है | टालस्टॉय अपने समकालीन लेखकों के प्रति वितृष्णा का भाव रखते थे और अपनी अनुवांशिकता के कारण ' महत्व - बोध से पीड़ित थे | तुर्गनेव उनकी इस दोगली आत्म - विभोर स्थिति से परिचित था , क्युकी वह उनकी उद्दाम काम भावना से अदभुत रति लीलाओं के बारे में जानता था | ये उनकी डायरी में भी लिखा मिलता है _ ' मस्ट हेव ए वूमेन ' | सेक्सुअली गिव्स मी नाट ए मोमेंट्स पीस | ' ( डायरी 4 मई  1853 ) | लिओ के अनुसार ' वेश्यागामी होने के कारण उन्हें सुज़ाक रोग भी हुआ | ' उनकी जीवनी लिखने वाले एलमरमाड ने लिखा है _ ' इक्यासी वर्ष कि आयु तक कामवासना ने टालस्टॉय का पीछा नहीं छोड़ा |'
           'अन्ना कैरनीना ' , ' वार एंड पीस ' और ' रीफरेक्शन ' लिओ टालस्टॉय कि महान कृतियाँ हैं | मगर ' वार एंड पीस ' के बारे में उपन्यासकार फ्लाबेयर ने तुर्गनेव से यह शिकायत कि थी कि ' लिओ ने इतिहास विषय पर जो व्याख्यान पहले कभी दिए थे , उन्हें भी इस उपन्यास में शामिल  कर लिया गया है | ' इसके आलावा टालस्टॉय ने ' मिलिट्री गेजेट ' भी लिखा है , शायद  इसलिए कि कुछ समय तक वे सेना में भी रहे थे और एक भालू को मारने कि कोशिश में घायल भी हुए थे |
            महत्वबोध से पीड़ित टालस्टॉय के माता - पिता बचपन में ही नहीं रहे थे | उनका लालन -पालन उनकी चाची तालियाना ने किया था | 16 वर्ष कि आयु में उन्होंने कज़ान विश्वविध्यालय के भाषा - विभाग में दाखिला लिया | फिर वो कानून पढने  लगे | 22 वर्ष  कि आयु में वो काकेशस गए और सेना में भर्ती हुए | तीन बार उन्हें बहादुरी का मेडल मिलते -मिलते रह गया |
             1858 में उन्होंने लिखा _ मैं कुछ एसा सूत कातना चाहता हूँ , जिसका कोई सर पैर न हो | ' उनके पुत्र इल्या  ने लिखा है _ पिता श्री के लिए दुनिया दो भागों में विभक्त थी | एक और उनका परिवार , दूसरी और शेष संसार | उन्होंने हमें यही सिखाया  था | इस मिथ्याभिमानी को तोड़ने में मुझे भीतर ही भीतर लंबा संघर्ष करना पड़ा | ' गोर्की ने लिखा है _ टालस्टॉय बुड़ापे तक इसी झूठी अहम् मान्यता का शिकार रहे कि दुसरे लोग उनकी इच्छानुसार  चलें और बर्ताव करें |