एक नज़र इधर भी
शनिवार, 8 जनवरी 2011
जिंदगी
गुलिस्ता मै घूम लेती हु ,
वादा खानों मै घूम लेती हु !
जिंदगी तू जहां भी मिल जाये ,
तेरे कदमो को चूम लेती हु !
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
मंजिल
कदम चूम लेती है आके मंजिल उसकी ,
अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे !
हार मानता नहीं जो अपनी मंजिल से ,
मंजिले खुद राह बनती जाती हैं !
जिंदगी का सफ़र बहुत ही लम्बा है ,
कोई हर दम न साथ चलता है !
राही बनके राहों को पता बताते चलो !
अपनी मंजिल को खोजो और आजमाते चलो !
मंगलवार, 4 जनवरी 2011
इंतजार
मुहब्बत मै ये क्या मकाम आ रहेँ हैं ,
के मंजिल पे हैं और चले जा रहेँ हैं !
ये कह - कह के हम दिल को समझा रहेँ हैं ,
वो अब चलें हैं ........ वो अब आ रहेँ हैं !
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