रामायण के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं | मर्यादा - पुरुष के रूप में राम वैदिक परम्परा में तो विख्यात हैं हीं , इसके साथ जैन तथा बोद्ध परम्पराओं में भी उन्हें स्थान दिया गया हे | लोक में राम की प्रसिद्धी बहुत प्राचीन है | विंटरनित्स का विचार है की रामायण का मूल स्वरूप ईसा पूर्व चोथी शताब्दी में तैयार हुआ तथा इसका अंतिम स्वरुप दूसरी शताब्दी ईस्वी के लगभग निश्चित हुआ | कुछ विद्वान उत्तर काण्ड को तथा बालकाण्ड के कुछ हिस्सों को वाल्मीकिकृत न मानकर प्रक्षिप्त बताते हैं | जर्मन विद्वान याकोबी मूल रामायण में पांच ही काण्ड स्वीकारते है - अयोध्या से लेकर उत्तरकाण्ड तक | जो हो , रामायण के उपलब्ध वर्तमान स्वरुप का कथा विन्यास शिथिल या अस्त - व्यस्त नहीं है | रामायण के श्लोकों की कुल संख्या चौबीस हज़ार है जिससे इसे ' चतुर्विंशति सहस्त्री सहिंता ' कहते है | ' रामायण ' में प्रायेह अनुष्टुप छंद का व्यवहार हुआ है | वाल्मीकि इस छंद के आविष्कारक माने जाते हैं | रामायण का पाठ कई रूपों में मिलता है | आजकल इसके तीन पाठ प्रचलित हैं | दक्षिणात्य पाठ , गोंडीय पाठ तथा पश्चिमोत्तरीय पाठ |
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
रामायण
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4 टिप्पणियां:
रामायण के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं | मर्यादा - पुरुष के रूप में राम वैदिक परम्परा में तो विख्यात हैं हीं , इसके साथ जैन तथा बोद्ध परम्पराओं में भी उन्हें स्थान दिया गया हे
मीनाक्षी जी,
भारतीय संस्कृति समन्वयपरक है।
बौद्ध, जैन अलग तो नहीं
एक ही हैं
नाम भले अनेक हो
मीनाक्षी जी,
वाल्मीकि जी के बारे में आपके द्वारा दी गयी जानकारी संग्रह करने योग्य है.
आभार व् शुभ कामनाएं.
इस बात पे मतभेद भले हो की रामायण कब लिखी गयी लेकिन राम के आदर्श में सब सीखने योग्य है.
प्रणाम.
बहुत सुंदर जानकारी. आधुनिक काल में भी राम की शालीनता और मर्यादा दर्शनीय है. कोमल चित्त होना कोई उनसे सीखे.
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