' नक्श - ए - फरियादी ' ( 1941 ) ' दस्त - ए - सबा ' ( 1953 ) ' जिंदानामा ' ( 1956 ) ' सर - ए - वादिए - सिना ' ( 1971 ) और शाम - ए - सहर - यारां ( 1979 ) में लिखी गई हैं | इनकी कविताओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ और ये कवितायेँ पत्र - पत्रिकाओं और रेडिओ आदि के माध्यम से पाठकों और दर्शकों की बहुत बड़ी संख्यां तक पहुंची | लगभग हर लोकप्रिय गायक ने उनकी गजलों को गाया है |
फैज़ को जितना क्रान्तिकारी कवि माना जाता है उतना ही बड़ा प्रेम का कवि भी माना जाता है | उनके लिए क्रांतिकारिता और प्रेम की अभिव्यक्ति दो अलग - अलग भाव न होकर , एक समग्र अभिव्यक्ति के ही रूप थे | फैज़ की कविता में प्रेम के अनेक रूप है | प्रेम का आशय चुनौती , अवज्ञा , आत्म अभिव्यक्ति अथवा आत्म निषेध , आत्म त्याग , आत्म दया , वियोग और निष्कासन की पीड़ा ( जिससे फैज़ अच्छी तरह से परिचित थे ) __ इनमें से कुछ भी हो सकता है | ' मुझसे पहली- सी मुहब्बत मेरी महबूब न मांग ' उनकी पहली नज्मों में से एक है | इसमें जीवन की कठोर वास्तविकताओं का वह अनुभव है जो उन्हें उनकी प्रेमिका और उनके प्रेम से अलग हटने को विवश करता है |
फैज़ हफ़ीज़ और रूमी के सूफी आदर्शों से प्रभावित हैं | पुरानी परम्पराएँ और मुहावरे उनकी कविता में उस समय तात्कालिक अर्थ ग्रहण कर लेते हैं , जब कवि को यह एहसास होता है की प्रेम की उनकी प्रारम्भिक चाह और वर्तमान में सामाजिक और राजनैतिक न्याय की तलाश वस्तुत : दोनों ही स्थिति के दो रूप हैं | दोनों ही त्याग और सम्पूर्ण की मांग करते हैं |
यह नज़्म वर्तमान विसंगतियों और समस्याओं को एक एसे मुहावरे में जो प्राच्य स्वर को बनाये रखने के साथ ही तथा ग़ालिब और इकबाल जैसे कवियों द्वारा प्रयुक्त पारम्परिक प्रतीकों शब्दों और छवियों को एक नई चेतना के साथ अभिव्यक्त करने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित करती है | अपने एक साक्षात्कार में फैज़ ने बताया कि उनके लिए " पुराना और नया , पारम्परिक और समकालीन साहित्य कि व्यापक और मिली - जुली रवायत में उचित स्थान ग्रहण करते हैं | " फैज़ जीवन भर उर्दू , पंजाबी , हिंदी , फारसी और अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ के साहित्य कि विभिन्न परम्पराओं के गहन अध्येता रहे | इन सबकी समन्वय उनकी काव्य यात्रा में अनूठे ढंग से दिखाई देता है |
मुझसे पहली मुहब्बत मेरी महबूब न मांग
मैनें समझा कि तू तो दरख्शां१ है हयात २
तेरा गम है तो गमें - दहर३ का झगडा क्या है
तेरी सूरत से है आलम४ में बहारों को सबात५
तेरी आँखों के सिवा दुनियां में रखा क्या हैं ?
तू जो मिल जाये तो तकदीर निगूं६ हो जाये
यूँ न था , मैने फकत चाहा था यूँ हो जाये
और भी दुःख है जमाने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत७ के सिवा
अनगिनत सदियों के तारिक ८ बहीमाना९ तिलिस्म
रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब१० में बुनवाये हुए
जा - ब - जा११ बिकते कूचा१२ - ओ - बाज़ार में जिस्म
खाक१३ में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश१४ है तेरा हुस्न , मगर क्या कीजे
और भी दुख है जमाने में मुहोब्बत के सिवा
राहतें और भी है वस्ल कि राहत के सिवा
मुझसे पहली से मुहब्बत मेरे महबूब न मांग |
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१ दरख्शां ------------------रौशन , चमकता हुआ |
२ हयात --------------------जीवन
३ गमें दहर ------------------जमाने का दुःख
४ आलम ----------------------दुनियां
५ सबात ----------------------ठहराव
६ निगूं -------------------------बदल जाना
७ वस्ल कि राहत ---------------मिलन का आनंद
८ तारिक ----------------------अँधेरा
९ बहीमाना --------------------पशुवत , क्रूरता
१० रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब------ रेशम , अलतस और मलमल , कपड़ों के प्रकार
११ जा - ब - जा ------------------जगह - जगह
१२ कूचा --------------------------गली
१३ खाक -------------------------धुल , राख
१४ दिलकश -----------------------आकर्षण
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