1901 में उन्होंने बोलपुर में अपने विद्यालय शांति निकेतन की स्थापना की | इस विद्यालय की आशतीत सफलता विश्वभारती की स्थापना का कारण बनी | यह संख्या पश्चिमी और भारतीय शिक्षा तथा दर्शन को समर्पित थी | 1921 में इसे विश्व विद्यालय की मान्यता मिली | टैगोर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थे | उन्हें महान राष्ट्र प्रेमी कहा गया | टैगोर राष्ट्र की अवधारणा के दुष्परिणामों के प्रति आशंकित भी थे | इसके बारे में उन्होंने व्यापक तौर पर भी लिखा | उन्हें सर्वाधिक ख्याति कविता - संग्रह ' गीतांजलि ' के कारण मिली जिसने पश्चिम को अभिभूत कर दिया था | गीतांजलि के लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था | 1915 में उन्हें ' सर ' की उपाधि से विभूषित किया गया था | लेकिन 1919 में जलियांवाला नरसंहार के बाद उस उपाधि को उन्होंने लौटा दिया |
टैगौर की एक हजार से भी ज्यादा कवितायेँ , कहानियों के आठ संग्रह , लगभग दो दर्जन नाटक और नाटिकाएं आठ उपन्यास और दर्शन , धर्म , शिक्षा तथा समाजिक विषयों पर अनेक पुस्तकें और निबंध प्रकाशित हुए | शब्द और नाटक की दुनियां के आलावा संगीत से भी उन्हें गहरा लगाव था | उन्होंने 2000 से अधिक गीतों की रचना की और उन्हें संगीतबद्ध किया |इनमें से दो भारत और बंगलादेश के राष्ट्र गान बनें | उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं ::: ' सोनातरी ' ( 1894 ) , ' चोखेर बाली ' ( 1903 ) , ' नौका डूबी ' ( 1905 ) ' गोरा ' (1907 ) और ' घरे - बहिरे ' ( 1916 ) |
काबुलीवाला ____ यह टैगौर की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से एक है | सर्वभोम मानवीय संवेदना को उकेरने वाली यह कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है | कहानी का केन्द्रीय पात्र काबुली वाला अपनी बेटी की छवि लेखक की पुत्री मिनी में देखता है | वह मिनी पर अपना सारा प्यार उडेलता रहता है , यधपि मिनी की माँ की नज़रों में वह संदिग्ध है | कहानी में बालमन का बड़ा हृदयग्राही और यथार्थ चित्रण हुआ है |
' शाहजहाँ ' _____यह कविता ताजमहल के सर्वाधिक गीतात्मक वर्णन के लिए जानी जाती है , लेकिन यह मात्र गीतात्मक वर्णन ही नहीं है | जहां यह एक और प्रेम और सोंदर्य के उत्सव का सृजन करती है , दूसरी और यह इस बात की गहरी अनुभूति करवाती है की विनाश या उच्छेद के विरुद्ध मनुष्य का संघर्ष चाहे वह स्थापत्य के माध्यम से हो या साहित्य के माध्यम से अन्तत : पराजय की और होता है | अगर कोई वस्तु शेष रह जाती है तो वह है आंतरिक भावनात्मक प्रत्युतर , जो काल और स्थान के परे अनुभूत होता रहता है |