एक नज़र इधर भी
रविवार, 8 जनवरी 2012
दर्द
तन्हाइयों में दर्द दस्तक देता है ....
किसी से कुछ भी न कहकर ...
अंदर ही अंदर सुलगता है ....
कोई आह जब भीतर करवट लेती है .....
तो सारे आलम को ये गमगीन करती है ....
ये बेजुबान दर्द ही जीने का सबब बनता है .....
तभी शायद ये हमारे इतने करीब रहता है | :)
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