एक नज़र इधर भी
गुरुवार, 30 सितंबर 2010
दस्तूर
वो सर बुलंद रहा और खुद पसंद रहा ,
मै सर चुकाए रहा और खुशमदो मै रहा !
मेरे अज़ीज़ो यही दस्तूर है मकानों का ,
बनाने वाला हमेशा बरामदो मै रहा !
1 टिप्पणी:
संजय भास्कर
ने कहा…
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
8 अक्टूबर 2010 को 5:07 am बजे
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बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
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