dअंग्रेजी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं आलोचक आल्ड्स हक्सले का जन्म 26 जुलाई 1894 को लन्दन के निकट स्थित , उपनगर सरे के एक उच्च माध्यम वर्गीय परिवार में हुआ | हक्सले के पिता लियोनार्ड हक्सले स्वयं भी एक कवी , संपादक एवं जीवनीकार थे | हक्सले की शिक्षा - दीक्षा ईटन कॉलेज बर्कशायर में हुई | 1908 से लेकर 1913 तक हक्सले बर्कशायर में ही थे | इस बीच हक्सले की माँ का देहांत हो गया | हक्सले जब 16 वर्ष के थे तभी उन्हें केराटीटिस पंकटाटा नाम की एक विचित्र बीमारी हो गई | जिसकी वजह से हक्सले पूरी तरह से अंधे हो गये | उनका ये अंधत्व लगभग 18 महीनें चला | गहन चिकित्सा के बाद उनकी आँखों में इतनी भर रौशनी लौटी की वे कुछ - कुछ पढ़ लिख सकें | इसी बीच उन्होंने अंधत्व की भाषा ( ब्रेल ) भी सीखी | कमजोर दृष्टि के बावजूद हक्सले ने 1913 - 15 के वर्षों में आक्सफोर्ड के बाल्योल कॉलेज से बी , ए पास किया | चाहा तो था हक्सले ने एक वैज्ञानिक बनना मगर फुट पड़ी भीतर से कविता | 1916 में उनकी पहली कविता - संग्रह प्रकाशित हुई | इसी क्रम में आगे के चार वर्षों में दो कविता संग्रह और प्रकाशित हुए | अगर आप लन्दन में स्थित डार्विन हाउस जाएँ तो वहां आपको टामस हेनरी हक्सले का एक चित्र टंगा दिखाई देगा | यह चित्र आल्ड्स हक्सले के बाबा का है जो डार्विन के सहकर्मी थे | इसी तरह हक्सले मैथ्यू आर्नोल्ड से भी संबंधित थे |तात्पर्य यह की आड्ल्स हक्सले साहित्यकार और वैज्ञानिक की वंश परम्परा में जन्मे अपनी तरह के बौधिक थे , जिनमें एक वैज्ञानिक , सत्यान्वेषी चिन्तक के गुण मौजूद थे | बीसवीं सदी के तीसरे दशक में वे ब्लम्स्बेरी सोसायटी नामक बौद्धिकों की एक टोली के सम्पर्क में आये | यहाँ उनका परिचय बट्रेंड रसेल से हुआ साथ ही मारिया नसि से भी मुलाकात हुई जिससे उनका विवाह हो गया और कुछ समय बाद वो एक पुत्र के पिता भी बनें , जिसका नाम रखा गया मैथु हक्सले | ब्लम्स्बेरी सोसाइटी के सदस्यों के बीच हक्सले के कविता - संग्रह ' द बर्निग व्हील ' ( The Burning wheel ) की रचनाओं को खूब सराहा गया | हक्सले का पहला उपन्यास ' प्वान्ट काउंटर प्वान्ट ' 1928 जबकि ' डू व्हाट यू विल ' 1929 में प्रकाशित हुआ |
1937 में हक्सले कैलिफोर्निया आ गये यह सोचकर की वहां का सुहावना मौसम उनकी आँखों के लिए कष्टकर होगा | यहाँ रहते हुए उन्होंने कई फिल्मों की पटकथाओं में संशोधन करने का बीड़ा उठाया | यह कार्य भी उन्होंने कुछ वर्ष ही किया | द्वितीय महायुद्ध के खत्म होते - होते हक्सले जिन अन्य तत्वदर्शी साधकों के संपर्क में आए उनमे एक नाम जे . कृष्णामूर्ति का भी लिया जाता है | एक और जहां उनके उपन्यास द ब्रेव न्यू वर्ल्ड , जो उन्होंने बीते वर्षों में लिख कर छपवाया था , पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं यहाँ - वहां छप रही थीं , वहीँ दूसरी और उनकी रूचि मन के भीतर उठने वाली तरह - तरह की तरंगों का विवेचन कर उसके आधार पर निबंध लिखने की और भी हुई | उन्होंने चीत की सहजवृतियों के प्रसरण में उखाड - पछाड़ का जायजा लेने के लिए काफी समय तक मादक द्रव्यों का भी सहारा लिया | डोर्स आफ परसेप्शन नामक उनकी कृति कुछ एसे ही प्रयोगों का परिणाम जान पड़ती है | कृष्णामूर्ति को हम अधुना मूर्धन्य चिंतकों की श्रेणी में रखते हैं | उन्होंने बिना किसी शाश्त्रीय ग्रंथों के सहारा लिए सूत्र शैली में एसे रूपांतरणकारी व्याख्यान दिए हैं की उनका प्रभाव राबर्ट पावेल एवं एडहर्ड जैसे अमेरिकी गुरुओं पर भी देखा जा सकता है | इन्हीं कृष्णामूर्ति की सुप्रसिद्ध कृति द फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडम की भूमिका लिखने के लिए हक्सले ने उनके एक - एक शब्द को गंभीरता से पढ़ा और कहा की मनुष्य एक उभयधर्मी प्राणी है , वह एक साथ दो अलग - अलग तलों पर जीता है | एक तल पर वह ठोस पदार्थपरक दुनिया को सहता है और झेलता है और दूसरी ओर है उसका मनोजगत जहां वह तरह - तरह के प्रतीकों का सहारा लेता है | इन्हीं प्रतीकों के बल पर कला ओर विज्ञानं की दुनियां में तरह - तरह की हलचल होती रहती है , जो अन्तः व्यवहारपरक दुनिया में आस्फलित होता है | कृष्ण मूर्ति कहा करते थे कि हर महत्वकांक्षा समाज विरोधी होती है ओर यदि आदमी सचमुच चाहता है कि समाज में क्लेश न हो तो उसे धर्मगुरुओं से बचना चाहिए , क्युकी सबका अपना - अपना ईश्वर है |
इस ईश्वर पर आस्था रखने वाले एक सार्वजानिक व्यवस्था से बंधे हुए समाज में उपद्रव फेलातें हैं | एक तरह कि आस्था वाले , दूसरी तरह के आस्था वालों से घोर शत्रुता वाला व्यव्हार करतें हैं | इसी विचार से उत्प्रेरित होकर हक्सले ने लिखा , सभी तरह के ईश्वर घरेलु उत्पाद यानि होम मेड हैं | शुरू में इन्हें हम ( पुतलियों कि तरह ) डोर खींच कर नचाते हैं सिर्फ इसलिए कि एक दिन हमे ही नचाया जा सके | एक अन्य निबंध में हक्सले लिखते हैं , बोद्धिक मनन , चिन्तन , यौन - तृप्ति से कहीं अधिक मूल्यवान होता | हलांकि इसी के साथ हक्सले यह भी कहा करते थे कि एक खराब कृति भी उतना ही श्रम मांगती है जितना कि एक अच्छी कृति | वह भी लेखक कि आत्मा से उतनी ही गंभीरता के साथ प्रस्फुटित होती है जितना कि एक अच्छी कृति | हक्सले के अनुसार लोकतान्त्रिक शासन - व्यवस्था तभी सफल हो सकती है , जब एक तानाशाह उसे पूरी तरह समर्पित , विश्वासपात्र नौकरशाही के माध्यम से पूरी क्रूरता के साथ चलाए | 1961 में हक्सले का घर आग से पूरी तरह राख़ हो गया | विवादस्पद बौद्धिक हक्सले , इस दुर्घटना के बाद लॉस एंजिल्स के अस्पताल में भर्ती हुए | उन्हें केंसर हो चूका था | 22 नवम्बर 1963 को हक्सले ने दम तोड़ दिया | इसी दिन डैलस में कैनेडी कि भी हत्या हुई |
इस ईश्वर पर आस्था रखने वाले एक सार्वजानिक व्यवस्था से बंधे हुए समाज में उपद्रव फेलातें हैं | एक तरह कि आस्था वाले , दूसरी तरह के आस्था वालों से घोर शत्रुता वाला व्यव्हार करतें हैं | इसी विचार से उत्प्रेरित होकर हक्सले ने लिखा , सभी तरह के ईश्वर घरेलु उत्पाद यानि होम मेड हैं | शुरू में इन्हें हम ( पुतलियों कि तरह ) डोर खींच कर नचाते हैं सिर्फ इसलिए कि एक दिन हमे ही नचाया जा सके | एक अन्य निबंध में हक्सले लिखते हैं , बोद्धिक मनन , चिन्तन , यौन - तृप्ति से कहीं अधिक मूल्यवान होता | हलांकि इसी के साथ हक्सले यह भी कहा करते थे कि एक खराब कृति भी उतना ही श्रम मांगती है जितना कि एक अच्छी कृति | वह भी लेखक कि आत्मा से उतनी ही गंभीरता के साथ प्रस्फुटित होती है जितना कि एक अच्छी कृति | हक्सले के अनुसार लोकतान्त्रिक शासन - व्यवस्था तभी सफल हो सकती है , जब एक तानाशाह उसे पूरी तरह समर्पित , विश्वासपात्र नौकरशाही के माध्यम से पूरी क्रूरता के साथ चलाए | 1961 में हक्सले का घर आग से पूरी तरह राख़ हो गया | विवादस्पद बौद्धिक हक्सले , इस दुर्घटना के बाद लॉस एंजिल्स के अस्पताल में भर्ती हुए | उन्हें केंसर हो चूका था | 22 नवम्बर 1963 को हक्सले ने दम तोड़ दिया | इसी दिन डैलस में कैनेडी कि भी हत्या हुई |
8 टिप्पणियां:
Minakshi ji,bahut bahut dhanyavad acchi aur sargarbhit jankari ke liye.
मनुष्य एक उभयधर्मी प्राणी है , वह एक साथ दो अलग - अलग तलों पर जीता है | एक तल पर वह ठोस पदार्थपरक दुनिया को सहता है और झेलता है और दूसरी ओर है उसका मनोजगत जहां वह तरह - तरह के प्रतीकों का सहारा लेता है | इन्हीं प्रतीकों के बल पर कला ओर विज्ञानं की दुनियां में तरह - तरह की हलचल होती रहती है , जो अन्तः व्यवहारपरक दुनिया में आस्फलित होता है |
Maine bhi Krishnmurty ko padha hai aur Huxley ko bhi..unki vichardhara mein bahna achha lagta hai.
प्रिय मीनाक्षी जी, इतने सुन्दर व भावपूर्ण लेख हेतु हार्दिक अभिनन्दन । मीनाक्षी जी, यह सत्य है, मनुष्य उभय-तल जीवी है, और उसका मनोज-गत तल इसे नये सपनों, विचारों और नवाचारों हेतु उत्प्रेरित करती रहता हैं। यह तो सत्य है मनुष्य द्वारा धर्म और ईश्वर की संकल्पना मानवता के लिए सबसे शुभ एवं कल्याणकारी होने के साथ-साथ दुर्भाग्यवश इसका मनुष्य का मनुष्य के शोषण के लिए इस्तेमाल किया गया है ।
Huxley ko padhne ka mauka to nahi mila par ab time jaroor nikalunga... thanks to you....
ज्ञानवर्धक एवं सार्थक आलेख
आल्ड्स हक्सले से परिचय करवाने के लिय आभार
ज्ञानवर्धक एवं सार्थक आलेख|धन्यवाद|
एक बिलक्षण शख्शियत से परिचय कराने के लिए आपका आभार !
हक्सले साहब से मिलवाने का शुक्रिया।
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ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
ज्ञानवर्धक एवं सार्थक आलेख
आल्ड्स हक्सले से परिचय करवाने के लिय आभार
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