मंगलवार, 22 मार्च 2011

हुस्न भी था उदास

        फ़िराक़ गोरखपुरी 
          
              फ़िराक़ गोरखपुरी ( 1896 - 1982 ) का वास्तविक नाम रघुपति सहाय था | इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद उनका चयन सिविल सेवा में हो गया था | लेकिन उन्होंने इस सेवा से त्याग पत्र दे दिया , और 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए | 1923  में जवाहर लाल नेहरु ने उन्हें कांग्रेस का अवरसचिव नियुक्त किया | इस पद पर वे 1929  तक रहे | फ़िराक़ 1930 में इलाहबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए | यहाँ उन्होंने 1958 तक शिक्षण कार्य किया | 1961 में उन्हें ' गुले नगमा ' के लिए साहित्य अकादमी सम्मान मिला और 1970 में वे ज्ञानपीठ परुस्कार से सम्मानित किये गए | फ़िराक़ की कविताओं के 15 खंड प्रकाशित हुए | उन्होंने थोडा - बहुत गद्द्य  लेखन भी किया | लगभग आधी शताब्दी तक वे भारतीय उपमहाद्वीप की उर्दूं कविता शीर्ष पर रहे | उन्होंने 40 हजार से भी अधिक शेर लिखे , और उर्दू कविता की तीन प्रमुख विधाओं ग़ज़ल , नज़्म और रुबाई पर गहरा प्रभाव डाला |
           उनकी कविता का अवसाद उन्हें  मीर तकी मीर से जोड़ता है | मीर की तरह फ़िराक ने भी अपने विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के लिए हिन्दू पोंराणिकता और हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है | अपनी कृति ' रूप ' ( 1946 ) के प्राक्कथन में उन्होंने लिखा ' भारतीय कविता को हिंदी और संस्कृत का पूरा लाभ लेना चाहिए | ' यह बात उन्होंने उर्दू कविता में बदलाव लाने और इसे भारतीय परिस्थितियों के निकट लाने के प्रयास के अंतर्गत कही | उनकी कविता में अंग्रेजी रोमांसवाद की छवियाँ भी देखी जा सकती है |
            फ़िराक़ की रचनाओं में परम्परा और आधुनिकता दोनों के ही प्रति आग्रहशीलता स्पष्टत: देखी जा सकती है | प्रेम और सोंदर्य की समयसिद्ध विषयवस्तु को छोड़े बिना , उन्होंने ग़ज़ल को अपना एक निजी स्वर व् संस्कार दिया | उन्होंने एक परिपक्व शैली विकसित की जिसमें भारतीय और फारसी परम्पराओं के साथ उस अंग्रेजी साहित्य के काव्य सम्बन्धी नियम - सिद्धांत भी गुंथे थे , जिसके वह अध्यापक थे और छात्र भी | उन्होंने अपने समय की जटिल दुविधाओं को समझा और मीर तथा ग़ालिब से प्राप्त रूपकों और प्रतीकों को नया अर्थ दिया |
           उनके प्रमुख काव्य संकलनों में ' मशाल ' नगमा - ए - साज़ ' और' ' हजार दास्तान ' शामिल है | उन्होंने हिन्दी और उर्दू में एक उपन्यास भी लिखा ___' साधू की कुटिया ' | उनका कुछ आलोचनात्मक लेखन और पत्रों का एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ |
              हुस्न भी था उदास : फ़िराक़ के जीवन का एक पक्ष - राजनीती से उनके भावनात्मक लगाव से जुड़ा है | भारत के विभाजन का शोक उनकी कविता में  अभिव्यक्त हुआ है | प्रस्तुत ग़ज़ल समय गुजरने , भाषा और मुहावरे की बाधाओं के बनने और अपनी तीव्रता खो चुके प्रतीकों की अर्थहीन पुनरावृति पर कवि की पीड़ा की अभिव्यक्ति है | कवि समझदारी और एकता की और न बढ पाने की मानवीय अक्षमता और उस दुनिया पर गहरा दुःख प्रकट करता है , जिसमे भाषा मानवीय अनुभूतियों के आदान - प्रदान का माध्यम न बनकर विडंबनापूर्ण ढंग से एक अवरोध बन जाती है |

हुस्न भी था उदास , उदास , शाम भी थी धुआं - धुआं ,
याद सी आके रह गई दिल को कई कहानियाँ |

छेड़ के दास्तान - ए - गम  अहले वतन के दरमियाँ , 
हम अभी बीच में थे और बदल गई| जबां |

सरहद ए गैब तक तुझे साफ़ मिलेंगे नक्श - ए  - पा
पूछना यह फिर हूँ मैं तेरे लिए कहाँ - कहाँ |

रंग जमा के उठ गई कितने तमददुनों की बज़्म
याद नहीं जमी को  , भूल गया आसमां |

जिसको भी देखिये वहीँ बजं में हैं ग़ज़ल सरा ,
छिड गई दास्तान - ए - दिल बहदीस ए दीगरा |

बीत गए हैं लाख जुग सुये वतन चले हुए ,
पहुंची है आदमी की जात चार कदम कषां - कषां |

जैसे  खिला हुआ गुलाब चाँद के पास लहलाए,
रात वह दस्त - ए - नाज़ में जाम - ए - निशात - ए - अरगवा ,

मुझको फ़िराक याद है पैकर - ए - रंग - ओ - बुए दोस्त  ,
पांव से ता जबी - ए - नाज़  , मेहर फशा - ओ - मह चुका | 

10 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आपका आभार ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जिसको भी देखिये वहीँ बजं में हैं ग़ज़ल सरा ,
छिड गई दास्तान - ए - दिल बहदीस ए दीगरा |
bahut badhiyaa

Arun M ........अ. कु. मिश्र ने कहा…

kaha kaha se chun chun ke aap le aati hai motiyaan ?
bahut bahut aabhar !!

daanish ने कहा…

फ़िराक़ साहब के बारे में
पढ़ कर ,, जान कर
बहुत अच्छा लगा ...
आभार .

Kailash Sharma ने कहा…

फ़िराक साहब के कृतित्व और व्यक्तित्व से परिचय कराने के लिये आभार...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

फ़िराक गोरखपुरी के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए शुक्रिया।
उनकी ग़ज़ल भी अच्छी लगी।

Bharat Bhushan ने कहा…

ऐसी बढ़िया जानकारी देने के लिए आभार.

उम्मतें ने कहा…

ये अच्छा है कि आप अपने ब्लॉग में विशिष्ट किस्म की रचनायें प्रस्तुत कर रही हैं ! फ़िराक साहब के बारे जान कर खशी हुई !

Dinesh pareek ने कहा…

वाह वाह के कहे आपके शब्दों के बारे में जीतन कहे उतन कम ही है | अति सुन्दर
बहुत बहुत धन्यवाद् आपको असी पोस्ट करने के लिए
कभी फुरसत मिले तो मेरे बलों पे आये
दिनेश पारीक

देवेंद्र ने कहा…

प्रिय मीनाक्षी जी, फिराक गोरखपुरी जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी देने हेतु हार्दिक धन्यवाद। फिराक का तो व्यक्तित्व ही अद्भुत था। इसीलिए फिराक खुद ही कहते थे-

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमअस्रों,
जब ये ख्याल आयेगा उनको,तुमने फ़िराक़ को देखा था।