अमृता प्रीतम का जन्म गुजरांवाला में सन 1919 में हुआ | उन्होंने छोटी सी उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया | उनकी कविताओं की दो शुरुवाती संग्रह ' ठंडिया किरणां ' (1935 ) में और 'अमरित लहरा ' ( 1930 ) पारम्परिक अभिप्रायों और विषयों से सजी भावनात्मक पूर्ण उपदेशों को दर्शाती है | मार्क्सवादी विचार और प्रगतिशील लेखक आन्दोलन के सम्पर्क में आने के बाद ही उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक कवितायेँ लिखनी शुरू की | इस समय की इनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से ' पत्थर गिते ' एक है जो ( 1940 ) में लिखी गई थी जिसमें विरोध और आत्म दया जैसी काव्य मुद्राएँ मिली है | 1940 में देश विभाजन के समय वे नई दिल्ली आ गई थीं | यहाँ आकर उन्होंने अपनी मातृभाषा छोड़ कर हिंदी में लिखना शुरू किया |देश के विभाजन और उसके परिणाम स्वरूप बहुत बड़ी मात्रा में औरतों की बेइज़्ज़ति, अपमान और बलात्कार ने उनकी लेखनी में बहुत ज्यादा असर डाला | उनकी रचना ' पिंजर ' ( 1970 ) में आई जिसमें इस वक़्त का बहुत ही मार्मिक लेखा - जोखा देखने को मिलता है | जिसमें धार्मिक और राजनितिक संघर्ष उनके अपने नारीत्व के नज़रिए से देखने को मिलते हैं | अमृता प्रीतम को ( 1956 ) में साहित्य अकादमी पुरुस्कार मिला था उस वक्त वो पहली महिला थी जिन्हें इस पुरुस्कार से नवाज़ा गया था | यह परुस्कार उनकी रचना ' सुनहरे ' को मिला था | इस रचना में उन्होंने अपने भाग्य और सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ एक नारी की चीख का चित्रण किया था | उनकी कहानी और कविताएँ निजी जिंदगी के संस्पर्श से युक्त है कंयुकी इनमें अमृता प्रीतम दुखद विवाह , दमित प्रेम और साथ ही सखाभाव की मुक्तिकारी शक्ति को चित्रित करती है | ' कागज ते कैनवास ' ( 1973 ) पर 1982 में मिले भारत के साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ के साथ अमृता प्रीतम को बहुत सारे राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले हैं | अमृता प्रीतम ने बहुत बड़े पैमाने में लेखन किया है | 1976 में छपी अपनी आत्मकथा ' रसीदी टिकट ' के अतिरिक्त उन्होंने 28 उपन्यास , 18 खंडो में कवितायेँ , पांच कहानी संग्रह और अलग -अलग विषयों में 16 संकलनों में गद्य लेखन भी किया है | अपने जीवन और रचना कर्म में अमृता प्रीतम एक स्त्री , एक व्यक्ति और एक रचनाकार के तौर पर स्वतंत्रता के अपने अधिकार के प्रति निष्ठावान और मुखर रही हैं | अपने गैर पारम्परिक , निजी और पेशेवर चुनाओं और निडरता ने उन्हें भारतीय साहित्य जगत का प्रेम पात्र और अपराधी दोनों बना दिया |
8 टिप्पणियां:
amrita khud me ek kainvas hain ....
अमृता प्रीतम जी के लेखन से हिंदी जगत में शायद ही कोई अपरिचित हो..बहुत सुन्दर विश्लेषण उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का..
अमृता जी के बारे में बढ़िया जानकारी....
जब मैं छोटा था तब एक किताब देखी थी "कितने चौराहे" ये शायद अमृता जी की लेखनी की उपज है...त्रुटि ठीक करें अगर गलत है...
बहुत अच्छी जानकारी।
भारत-पाक विभाजन पर अमृता ने एक रचना लिखी थी- अज आखां वारस शाह नूँ कितो कबराँ विच्चों बोल....आज तक उसकी याद आती है.
भूषण जी ने गज़ब की रचना याद दिला दी !
सुन्दर आलेख !
BAHUT-BAHUT SHUKRIYA.
AMRITA PRITAM AUR GHALIB KO PADHKAR ACHHA LAGA.
अमृता प्रीतम का लेखन लीक से हटकर है। काव्यात्मक भाषा में लिखे उनके उपन्यास साहित्य जगत में विशिष्ट स्थान रखते हैं।
अमृता जी का जीवन और कृतित्व प्रस्तुत करने के लिए आभार।
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