वो हूँ मैं
हथेली सामने रखना
के सब आंसू गिरे उसमे
जो ठहर जाये
तो समझ जाना के
" वो हूँ मैं "
कभी जो चाँद को देखो
तो तुम यु मुस्कुरा देना
जो चल जाये हवा ठंडी
तो ऑंखें बंद कर लेना
जो झोंका तेज़ हो सबसे
तो समझ लेना के
" वो हूँ मैं "
जो ज्यादा " याद " आऊं मैं
तो तुम रो लेना जी भरके
अगर हिचकी कोई आये
तो समझ जाना के
" वो हूँ मैं "
13 टिप्पणियां:
हथेली सामने रखना
के सब आंसू गिरे उसमे
क्या बात काही है आपने.
बहुत बढिया!
वाह ! क्या बात है !!
achha to wo aap hain ! bahut badhiyaa ...
ise dekhiye
http://urvija.parikalpnaa.com/2011/01/blog-post_14.html
सच कहूं तो इस रचना की तारीफ जितनी की जाए मेरे ख़याल से कम है. वाह! बहुत ही संवेदी और मर्म मे डूबी रचना.
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सागर by AMIT K SAGAR
हर शब्द भावमय करता हुआ ..बेहतरीन शब्दों का संगम ..।
बात कहने का अंदाज़ बहुत अच्छा लगा. अच्छी रचना.
मीनाक्षी जी
सादर अभिवादन !
वो मैं हूं !
आंसू, हवा का तेज झौंका, हिचकी अलग अलग रूपों में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने के बाद मन के धैर्य के लिए कुछ तो और होना चाहिए था … :)
सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए आभार और हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
vaah....khoobsurat kavita.....!!!
जो ज्यादा " याद " आऊं मैं
तो तुम रो लेना जी भरके
अगर हिचकी कोई आये
तो समझ जाना के
" वो हूँ मैं ...
बहुत सम्वेदंशेल रचना ... दिल के जज्बातों को जुबान दे दी ..
अगर हिचकी कोई आये
तो समझ जाना के
वो हूँ मैं
हिचकी ओर स्मृतियों का गहरा संबंध है।
कविता बहुत प्रभावी लगी।
sirf ek shabd... ek pyaari si aah ke saath... waah...
bahut pyari rachna hai. padhte padhte
dil ko sakoon deti rachna .Badhai!!!
bhav pradhan rachna hai
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