1933 में केलिफोर्निया में जन्मे और वहीँ पले - बड़े थियोडोर रोजैक पहले स्टेनफोर्ड फिर उसके बाद स्टेट यूनिवर्सिटी आफ कलिफोर्निया में प्रोफ़ेसर के रूप में
' वन डाईमेंशनल मैन ' से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पहली कृति
' मेकिंग ऑफ़ ए काउंटर कल्चर ' का प्रकाशन किया जो अपने आपको
' फ्लावर चिल्ड्रेन ' कहते थे , जबकि सार्वजनिक में उन्हें हिप्पी कहा जाता था | यांत्रिक जीवन की एकरसता से ऊबे और वियतनाम की लड़ाई से नाराज इन सभी ने जो जीवन - पद्दति अपनाई , वह सामाजिक सरोकार से मुक्त एक परम स्वच्छंद आवारा जीवन शैली थी , जिसमे मादक दवाइयां , चरस , मांस और गांजे के धुएं में अपनी जवानी बर्बाद करना एक तरह का फैशन बन गया था | 1972 में उनकी दूसरी कृति आई
' हेव्यर द वेस्टलैंड एंड्स ' | इस कृति को लेकर अमेरिका के कई विश्व विद्यालयों में काफी समय तक कई विचार गोष्ठियां हुई और माना यह गया की थियोडोर रौजेक भविष्य पारखी बौद्धिक हैं |
रौजेक की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति है __
' मैन द अनफिनिश्ड एनिमल | ' थियोडोर रौजेक का मानना है की बीसवीं सदी के अंत के साथ मनुष्यता अब कुम्भ युग में प्रवेश कर रही है | इसका आभास इन तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों और अध्यात्मिक आंदोलनों में झलकता है | जो पिछले अनेक वर्षों से चलाये जा रहे हैं | संवेदना - बोध , अंगिकी , ध्व्न्यावर्तन , आइचिंग , कबीलावाद , उर्जा बिंदु , सुचिकावेध जैसी अधुनाविधियाँ तो हैं ही , इन्हीं के साथ तमाम उपदेशकों की देश्नाएं भी शामिल है जो आदमी की समझ का दायरा बढ़ाना चाह रही है | सब तरह की आतंकी विक्रिया के बावजूद ये शामक विधियाँ आगे बढती जाएँगी |
मनस्विदों का कहना है की अधिकांश मनोरोग संपन्न वर्ग को ही पीड़ित करते हैं | इस पीड़ा का आधार नैतिक और राजनैतिक ग्लानि है | पूर्णत : स्वस्थ आदमी राजनिति में रूचि ही नहीं लेता , क्युकी किसी न किसी तरह की शक्ति , आस्तित्व की शर्त बन गई है , इसलिए हीनभावनाग्रस्त सत्तार्थी हो जाते हैं | वैभव और उत्सवधर्मी समाज गहराई कम प्रचारसिक्त उथलापन अधिक जीता है , मगर भीतर ही भीतर अपने खोखलेपन से भी त्रस्त रहता है | अमेरिका में व्यक्ति को मिलने वाली सुरक्षा का परिणाम यह हुआ है की वयस्क बचकाने हो गये हैं भीतर की ग्लानि से छुटकारा पाने के लिए वे किसी भी तरह की साधना - पद्दति का अनुगमन करना कहते हैं ताकि विरेचन हो पाए | संगणक और उत्सव तमाशों के बीच झूलती आजकी दुनिया में काफी लोग ऐसे हैं , जो ' शिखर अनुभव ' से गुजारने के लिए अधीर हैं |
रौजेक कहते हैं की काफी अरसे तक यह भ्रान्ति पनपती रही की मनमाने अतिचार से तनाव कम होते हैं | शांत रहना आ जाता है मगर इस अतिचार का नतीजा यह हुआ की हमने ईश्वर को कम्पूटर और खेल - तमाशों के बीच फंसा दिया | नतीजा यह की आज हमारे पास तरह - तरह के आंकडें तो है , परन्तु ईश्वर खो गया |
थियोडोर कहते हैं ____ ' हम किसी महापशु की छाया में रंगरलियाँ मनाया करते हैं | अकरणीय के पक्ष में तर्क देते हैं फिर पोपुलर मैकेनिक्स का हिस्सा हो लेते हैं ' | इसके ठीक विपरीत ऐसे लोगों की संख्या भी तेजी से बढ रही है जो विचार करते हैं की कुछ है जो नहीं मिला उसे पाना है | कुम्भ युग में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ रही है की जिंदगी के आत्यंतिक प्रश्नों का उत्तर इसी वय में मिल जाना अनिवार्य है | रौजेक हक्सले के स्वर में स्वर मिलाकर कहते हैं की छलांग अब लगने ही वाली है | जो महाकाव्य पृथ्वी से लेकर बाहरी दिक् तक लिखा पड़ा है उसकी प्रस्तावना लिखी जा रही है | बीसवी सदी के मध्य में स्टाईनर ने एक प्रयोग किया था | उसने स्मृति - कोश को निस्पंद कर एक रिक्ति पैदा की थी और पाया था कि सिरकाडियन रिदम ने उस रिक्ति को भरना शुरू कर दिया था | स्टाईनर ने अनुभव किया था कि इस प्रयोग के क्षणों में मस्तिषक कि कोशिकाओं में दिव्यता का अंश बढ़ने लगा था | फ्रांस के संत गुर्जिएफ ने भी अनर्गल साधना - पद्दति दव्वारा यह सिद्ध किया था की हम सबके भीतर रोबोट बैठा है , जो कोई नया कार्य प्रारंभ कर चुकने के बाद तत्काल हमें जकड लेता है और हमें नए अनुभव के दरवाजे तक जाने से रोक देता है | आज पश्चिम में लोकप्रिय टी गुप्त , भिड्न्तु गोष्ठियां , सिनानो क्रीड़ायें , एस्त आदि सभी किसी न किसी रूप में गर्जिएफ़ से अनुप्रेरित होकर प्रचलन में आई |
आस्था का युग पार्क का युग , उद्विग्नता का युग और अन्तत : अब रोगोपचार का युग प्रचलन में आ चूका है | यह सब इसलिए की मुरझाई आत्माएं दो बार प्रमुदित हो सकें | हमारे देश की वैदिक , बौद्ध और तांत्रिक परम्पराओं का हवाला देते हुए रौजेक अंततः पतंजलि के योग - दर्शन पर आता है कि सही और ठीक तरह पर अगर सम ही सध जाए तो समाज अपने आप नैतिक होना शुरू कर देगा | जो व्यक्ति मैथुन , चोरी और झूठ का त्याग नहीं कर सकता , वह नियम , आसन और प्राणायाम क्या करेगा ? तो भी रौजेक का कहना यही है कि रास्ता यही है |