बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

खुद को संवारो


उफ़ ये इंसानी फितरत भी नए - नए खेल है रचती |
खुद अभी संवरी  नहीं दूसरे को संवारने है निकली |

रविवार, 8 जनवरी 2012

दर्द


तन्हाइयों में दर्द दस्तक देता है ....
किसी से कुछ भी न कहकर ...
अंदर ही अंदर सुलगता है ....
कोई आह जब भीतर करवट लेती है .....
तो सारे आलम को ये गमगीन करती है ....
ये बेजुबान दर्द ही जीने का सबब बनता है .....
तभी शायद ये हमारे इतने करीब रहता है | :)

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

महादेवी वर्मा


आज के नारी  उत्थान  के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य सृजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण सम्बन्धी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | महादेवी जी , जहां एक श्रेष्ठ कवयित्री थीं वहीँ  मौलिक गद्यकार  भी |
जीवन परिचय ____ महादेवी जी का जन्म फरुर्खाबाद   में सन 1907 ईस्वी में हुआ था | इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इंदौर के एक कालेज में प्रोफ़ेसर थे | महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा का श्री गणेश यहीं से हुआ था | इनकी माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी | इनकी  भक्ति भावना का प्रभाव महादेवी वर्मा पर भी पड़ा | छटी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 1920 ईस्वी  में प्रयाग में मिडिल  पास किया | इसके चार साल बाद हाई स्कुल और 1926 ईस्वी में दर्शन विषय लेकर इन्होने एम. ए. की परीक्षा पास की एम . ए पास करने के पश्चात् महादेवी वर्मा जी ' प्रयाग महिला विद्या  पीठ ' में प्रधानाचार्य  के पद पर नियुक्त हुई और मृत्युपर्यंत इसी पद पर कार्य करती रहीं | अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये  उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या भी मनोनीत की गई | 11 सितम्बर 1987 ईस्वी को इलाहाबाद में इनका देहांत हुआ |
रचनाएँ __ महादेवी जी प्रसिद्धि विशेषत: कवित्री के रूप में हैं परन्तु ये  मौलिक गद्यकार भी हैं | इन्होनें  बड़ा चिन्तन पूर्ण , परिष्कृत गद्य लिखा हैं | महादेवी जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं :
निहार , रश्मि , नीरजा , सांध्य गीत और दीपशिखा  |
यामा पर इन्हें ' भारतीय ज्ञानपीठ ' पुरस्कार प्राप्त हुआ था |
प्रमुख गद्य रचनाएँ __ ( 1 ) पथ के साथी , ( 2 ) अतीत  के चलचित्र , ( 3 ) स्मृति की रेखाएं , ( 4 ) श्रृंखला की कड़ियाँ |
साहित्यिक विशेषताएं ___ महादेवी वर्मा की काव्य - रचना के पीछे एक ओर स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा है  , तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है | यही कारण है की उनके काव्य में जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना की अभिव्यक्ति है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा  के बोध की भी | दुसरे छायावादी कवियों की तरह महादेवी वर्मा के गीतों में भी प्रक्रति सोंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों की व्यंजना हुई है महादेवी वर्मा के गीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनी है और लोक गीतों की अनुगूँज भी , लेकिन इन दोनों के साथ ही उनके गीतों में आधुनिक बौद्धिक मानव के द्वंदों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख है |
          विषय की दृष्टि से महादेवी जी की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है __ (  1 ) विचारात्मक एवं विवेचना प्रधान , ( 2 ) पीड़ा  , क्रंदन , अंतसंघर्ष , सहानुभूति एवं संवेदना प्रधान | ' श्रृंखला की कड़ियाँ ' तथा ' महादेवी का विवेचनात्मक गद्य ' इनकी विवेचना प्रधान रचनाएँ हैं | कहना   न होगा की महादेवी जी के घरेलू जीवन में दुख ही दुख था | इन्हीं दुख क्लेश और आभाओं  की काली छाया ने इनके साहित्य में करुणा , क्रंदन एवं संवेदना को भर  दिया | वही भावनाएं गद्य में भी साकार रूप से मिलती है | जहां तक विवेचनात्मक गद्य का सम्बन्ध है , वह इनके विचारपूर्ण क्षणों की देन  है यहाँ  इन्होंनें लिखा है __ " विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना अधिक अच्छा लगता है | अपनी अनुभूति ही नहीं , बाहय परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है | "
काव्यगत विशेषताएं ___ महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है उनके काव्य में रहस्यानुभूति का रमणीय प्रतिफलन हुआ है | महादेवी के प्रणय का आलंबन अलौकिक प्रियतम है | वह सगुण होते हुए भी साकार नहीं है | वह कहती हैं _____
" मुस्कुराता संकेत भरा नभ ,
अलि क्या प्रिय आने वाले हैं ? "
      कवित्री का अज्ञात प्रियतम इतना आकर्षक है की मन उससे मिलने को आतुर हो जाता है | निम्नांकित में ललकती कामना का प्रभावशाली प्रकाशन हुआ है ___
 " तुम्हें बांध पाती सपने में |
तो चिर जीवन - प्यास बुझा
लेती उस छोटे क्षण अपने में |"
कवयित्री के स्वप्न का मूक - मिलन भी इतना मादक और मधुर था कि जागृतावस्था में भी वह रोमांचित होती रही हैं ______
" कैसे कहती हो सपना है
अलि ! उस मूक मिलन कि बात
भरे हुए अब तक फूलों में
मेरे आंसूं उनके हास | "
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन को ' विरह का जलजात ' कहा है | ____
विरह का जलजात जीवन , विरह का जलजात |
विरह की साधना में अपने स्वयं को जलाने की बात कहती हैं ___
' मधुर - मधुर मेरे दीपक जल , 
प्रीतम का पथ आलोकित कर | '
उनके काव्य में वेदना - पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है | वे कहती हैं ___
' मैं नीर भरी दुःख की बदली | '
भाषा - शैली ____ महादेवी जी की भाषा , स्वच्छ , मधुर , संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त परिमार्जित कड़ी बोली हैं | शब्द चयन उपयुक्त तथा वाक्यविन्यास मधुर तथा सार्थक हैं | महादेवी जी का तीक्ष्ण व्यंग हृदय में व्याकुलता उत्पन्न कर देने वाला है मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा के सोंदर्य को और भी बड़ा दिया है | भाषा में सर्वत्र कविता की सी सरसता और तन्मयता है | महादेवी के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारन अत्यंत आकर्षक हैं | उनमें चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रण है | महादेवी जी ने नए बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगति  की अभिव्यक्ति - शक्ति का न्य विकास किया है | उनकी काव्य - भाषा प्राय तत्सम शब्दों से निर्मित है |



मंगलवार, 20 सितंबर 2011

संतों देखत जग बौरान


उत्तर भारत में निर्गुण संत परम्परा की जो धरा प्रवाहित हुई उसका श्रेय कबीर को दिया जाता है | वैसे तो कबीर का जीवन किम्वदंतियों , अटकलों , चमत्कारिक कहानियों से ढक दिया गया है |
जो बात असंदिग्ध रूप से कही जा सकती है वह ये है की उनका पालन - पोषण एक जुलाहा परिवार में हुआ था | इस परिवार को इस्लाम धर्म में आये हुए अभी बहुत समय नहीं हुआ था , इसलिए इस्लाम और हिन्दू दोनों धार्मिक परम्पराएँ साथ - साथ चल रही थी | कबीर के गुरु के रूप में रामानंद का नाम लिया जाता है | इस बिंदु पर विद्वानों का मत भले एक न हो लेकिन निर्गुण राम के प्रति कबीर की निष्ठां संदेह से परे है | आजीविका के लिए कबीर जुलाहे का व्यवसाय करते थे | कबीर के जीवन काल के सम्बन्ध में अध्येताओं में मतभेद है | मोटे तोर में उनका समय सन 1398 - 1448 माना गया है | 
                   कबीर की काव्य - संवेदना लोकजीवन से अपनी उर्जा ग्रहण करती है | यह संवेदना मनुष्य - मात्र की समानता की पक्षधर है | जो परम्परा  मनुष्य मनुष्य में भेद करती है , कबीर उसके खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं | वे शास्त्र ज्ञान पर नहीं ,' आखिन देखि ' पर यकीं करते हैं | ढोंग और पाखंड से उन्हें गहरी चिढ है | वे सहज , सरल जीवन जीने के पक्ष में हैं | प्रवृति और निवृति दोनों तरह का अतिवाद उन्हें कभी स्वीकार  नहीं हुआ | उनकी कविता में एक जुलाहे का जीवन बोलता है | वे पुरे आत्मविश्वास के साथ प्रतिपक्षी को चुनौती देते हैं | उनकी कविता जीवन के बुनियादी सवाल उठाती है | इन सवालों की प्रासंगिकता छ: सौ साल बाद आज भी बनी हुई है |
         कबीर को ' वाणी का डिक्टेटर ' कहा गया है | इस का अर्थ ये है की भाषा उनकी अभिव्यक्ति में रोड़े नहीं अटका पाती | वे बोलचाल की भाषा के हिमायती थे | उनकी कविता में तमाम बोलियों , भाषाओँ से आये शब्द शामिल हैं | कबीर की रचनाओं की प्रमाणिकता को लेकर विवाद है | कबीर की रचनाएँ प्राय : मौखिक रूप से संरक्षित रही , इसलिए उनमे भाषा के बदलते रूपों की रंगत शामिल होती गई | इन रचनाओं का मूल रूप क्या था , इसका ठीक - ठीक पता लगाना आज बहुत कठिन है | कबीर की वाणियों का संग्रह ' बीजक ' के नाम से प्रसिद्ध है | कबीरपंथ इसे ही प्रमाणिक मानते हैं | कबीर की रचनाओं का संग्रह और संपादन आधुनिक युग के कई विद्वानों ने किया है |
           कबीर को हिन्दू - मुस्लिम एकता का प्रतीक बना दिया गया है | एसी समझ प्रचारित कर दी गई है की कबीर दोनों धर्मों को आपस में जोड़ने की कोशिश कर रहे थे | जहां भी ' सर्व - धर्म - समभाव ' की बात आती है वहां कबीर को उदाहरण के रूप में रखा जाता है | यह मान्यता पूरी तरह सही भी नहीं है | कबीर मात्र सर्व - धर्म - समभाव के कवी नहीं हैं | वे अपने समय में मौजूद सभी धर्मों की बुराइयों से परिचित हैं | उनकी आलोचना करने  में वे हिचकते नहीं | उनका व्यंग , धर्म का धंधा करने वालों की पोल खोल देता है | हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों में उन्हें मिथ्यात्व दिखाई देता है | वे इन संगठित धर्म - मतों से अलग तीसरे विकल्प का प्रस्ताव करते हैं | समाज की गति पर कबीर को गुस्सा  आता है | उनका गुस्सा इस बात को लेकर है की यह संसार झूठ पर तो विश्वास कर लेता है लेकिन सच बताने वालों को मारने दौड़ता है |

संतों देखत जग बौरान |
सांच कहों तो मरण धावै | झूठे जग पतियाना ||
नेमी देखा धरमी देखा |परत करे असनाना ||
आतम मरी पखान्ही पूजै |उनमें कछु नहीं ज्ञाना ||
भुतक देखा पीर औलिया | पढ़े किताब कुराना ||
कहे कबीर सुनो हो संतों | ई सब गर्भ भुलाना ||
केतिक कहों कहा नहिं मानै | सहजै सहज समाना ||

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

महादेवी वर्मा


आज के नारी  उत्थान  के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य सृजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण सम्बन्धी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | महादेवी जी , जहां एक श्रेष्ठ कवयित्री थीं वहीँ  मौलिक गद्यकार  भी |
जीवन परिचय ____ महादेवी जी का जन्म फरुर्खाबाद   में सन 1907  ईस्वी में हुआ था | इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इंदौर के एक कालेज में प्रोफ़ेसर थे | महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा का श्री गणेश यहीं से हुआ था | इनकी माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी | इनकी  भक्ति भावना का प्रभाव महादेवी वर्मा पर भी पड़ा | छटी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 1920 ईस्वी  में प्रयाग में मिडिल  पास किया | इसके चार साल बाद हाई स्कुल और 1926 ईस्वी में दर्शन विषय लेकर इन्होने एम. ए. की परीक्षा पास की एम . ए पास करने के पश्चात् महादेवी वर्मा जी ' प्रयाग महिला विद्या  पीठ ' में प्रधानाचार्य  के पद पर नियुक्त हुई और मृत्युपर्यंत इसी पद पर कार्य करती रहीं | अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये  उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या भी मनोनीत की गई | 11 सितम्बर 1987 ईस्वी को इलाहाबाद में इनका देहांत हुआ |
रचनाएँ __ महादेवी जी प्रसिद्धि विशेषत: कवित्री के रूप में हैं परन्तु ये  मौलिक गद्यकार भी हैं | इन्होनें  बड़ा चिन्तन पूर्ण , परिष्कृत गद्य लिखा हैं | महादेवी जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं :
निहार , रश्मि , नीरजा , सांध्य गीत और दीपशिखा  |
यामा पर इन्हें ' भारतीय ज्ञानपीठ ' पुरस्कार प्राप्त हुआ था |
प्रमुख गद्य रचनाएँ __ ( 1 ) पथ के साथी , ( 2 ) अतीत  के चलचित्र , ( 3 ) स्मृति की रेखाएं , ( 4 ) श्रृंखला की कड़ियाँ |
साहित्यिक विशेषताएं ___ महादेवी वर्मा की काव्य - रचना के पीछे एक ओर स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा है  , तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है | यही कारण है की उनके काव्य में जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना की अभिव्यक्ति है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा  के बोध की भी | दुसरे छायावादी कवियों की तरह महादेवी वर्मा के गीतों में भी प्रक्रति सोंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों की व्यंजना हुई है महादेवी वर्मा के गीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनी है और लोक गीतों की अनुगूँज भी , लेकिन इन दोनों के साथ ही उनके गीतों में आधुनिक बौद्धिक मानव के द्वंदों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख है |
          विषय की दृष्टि से महादेवी जी की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है __ (  1 ) विचारात्मक एवं विवेचना प्रधान , ( 2 ) पीड़ा  , क्रंदन , अंतसंघर्ष , सहानुभूति एवं संवेदना प्रधान | ' श्रृंखला की कड़ियाँ ' तथा ' महादेवी का विवेचनात्मक गद्य ' इनकी विवेचना प्रधान रचनाएँ हैं | कहना   न होगा की महादेवी जी के घरेलू जीवन में दुख ही दुख था | इन्हीं दुख क्लेश और आभाओं  की काली छाया ने इनके साहित्य में करुणा , क्रंदन एवं संवेदना को भर  दिया | वही भावनाएं गद्य में भी साकार रूप से मिलती है | जहां तक विवेचनात्मक गद्य का सम्बन्ध है , वह इनके विचारपूर्ण क्षणों की देन  है यहाँ  इन्होंनें लिखा है __ " विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना अधिक अच्छा लगता है | अपनी अनुभूति ही नहीं , बाहय परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है | "
काव्यगत विशेषताएं ___ महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है उनके काव्य में रहस्यानुभूति का रमणीय प्रतिफलन हुआ है | महादेवी के प्रणय का आलंबन अलौकिक प्रियतम है | वह सगुण होते हुए भी साकार नहीं है | वह कहती हैं _____
" मुस्कुराता संकेत भरा नभ ,
अलि क्या प्रिय आने वाले हैं ? "
      कवित्री का अज्ञात प्रियतम इतना आकर्षक है की मन उससे मिलने को आतुर हो जाता है | निम्नांकित में ललकती कामना का प्रभावशाली प्रकाशन हुआ है ___
 " तुम्हें बांध पाती सपने में |
तो चिर जीवन - प्यास बुझा
लेती उस छोटे क्षण अपने में |"
कवयित्री के स्वप्न का मूक - मिलन भी इतना मादक और मधुर था कि जागृतावस्था में भी वह रोमांचित होती रही हैं ______
" कैसे कहती हो सपना है
अलि ! उस मूक मिलन कि बात
भरे हुए अब तक फूलों में
मेरे आंसूं उनके हास | "
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन को ' विरह का जलजात ' कहा है | ____
विरह का जलजात जीवन , विरह का जलजात |
विरह की साधना में अपने स्वयं को जलाने की बात कहती हैं ___
' मधुर - मधुर मेरे दीपक जल , 
प्रीतम का पथ आलोकित कर | '
उनके काव्य में वेदना - पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है | वे कहती हैं ___
' मैं नीर भरी दुःख की बदली | '
भाषा - शैली ____ महादेवी जी की भाषा , स्वच्छ , मधुर , संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त परिमार्जित कड़ी बोली हैं | शब्द चयन उपयुक्त तथा वाक्यविन्यास मधुर तथा सार्थक हैं | महादेवी जी का तीक्ष्ण व्यंग हृदय में व्याकुलता उत्पन्न कर देने वाला है मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा के सोंदर्य को और भी बड़ा दिया है | भाषा में सर्वत्र कविता की सी सरसता और तन्मयता है | महादेवी के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारन अत्यंत आकर्षक हैं | उनमें चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रण है | महादेवी जी ने नए बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगति  की अभिव्यक्ति - शक्ति का न्य विकास किया है | उनकी काव्य - भाषा प्राय तत्सम शब्दों से निर्मित है |



सोमवार, 23 मई 2011

थियोडोर रोजैक

1933 में केलिफोर्निया में जन्मे और वहीँ पले - बड़े थियोडोर रोजैक पहले स्टेनफोर्ड फिर उसके बाद स्टेट यूनिवर्सिटी आफ कलिफोर्निया में प्रोफ़ेसर के रूप में ' वन डाईमेंशनल मैन ' से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पहली कृति ' मेकिंग ऑफ़ ए काउंटर कल्चर ' का प्रकाशन किया जो अपने आपको ' फ्लावर चिल्ड्रेन ' कहते थे , जबकि सार्वजनिक में उन्हें हिप्पी कहा जाता था | यांत्रिक जीवन की एकरसता  से ऊबे और वियतनाम की लड़ाई से नाराज इन सभी ने जो जीवन - पद्दति अपनाई , वह सामाजिक सरोकार से मुक्त एक परम स्वच्छंद आवारा जीवन शैली थी , जिसमे मादक दवाइयां , चरस , मांस और गांजे के धुएं में अपनी जवानी  बर्बाद करना एक तरह का फैशन बन गया था | 1972 में उनकी दूसरी कृति आई ' हेव्यर द वेस्टलैंड एंड्स ' | इस कृति को लेकर अमेरिका के कई विश्व विद्यालयों  में काफी समय तक कई विचार गोष्ठियां हुई और माना यह गया की थियोडोर रौजेक भविष्य पारखी बौद्धिक   हैं |
            रौजेक की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति है __  ' मैन द अनफिनिश्ड  एनिमल | ' थियोडोर रौजेक का मानना है की बीसवीं सदी के अंत के साथ मनुष्यता अब कुम्भ युग में प्रवेश  कर रही है | इसका आभास इन तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों और अध्यात्मिक आंदोलनों में झलकता है | जो पिछले अनेक वर्षों से चलाये जा रहे हैं | संवेदना - बोध , अंगिकी , ध्व्न्यावर्तन , आइचिंग , कबीलावाद , उर्जा बिंदु , सुचिकावेध   जैसी अधुनाविधियाँ तो हैं ही , इन्हीं के साथ तमाम उपदेशकों की देश्नाएं भी शामिल है जो आदमी की समझ का दायरा बढ़ाना चाह रही है | सब तरह की आतंकी विक्रिया के बावजूद ये  शामक विधियाँ आगे बढती  जाएँगी |
         मनस्विदों का कहना है की अधिकांश मनोरोग संपन्न वर्ग को ही पीड़ित करते हैं | इस पीड़ा का आधार नैतिक और राजनैतिक ग्लानि है | पूर्णत : स्वस्थ आदमी राजनिति में रूचि ही नहीं लेता , क्युकी किसी न किसी तरह की शक्ति , आस्तित्व की शर्त बन गई है , इसलिए हीनभावनाग्रस्त सत्तार्थी हो जाते हैं | वैभव और उत्सवधर्मी समाज गहराई कम प्रचारसिक्त उथलापन अधिक जीता है , मगर भीतर ही भीतर अपने खोखलेपन से भी त्रस्त रहता है | अमेरिका में व्यक्ति को मिलने वाली सुरक्षा का परिणाम यह हुआ है की वयस्क बचकाने हो गये हैं भीतर की ग्लानि से छुटकारा पाने के लिए वे किसी भी तरह की साधना - पद्दति का अनुगमन करना कहते हैं ताकि विरेचन हो पाए | संगणक और उत्सव तमाशों के बीच झूलती आजकी दुनिया में काफी लोग ऐसे हैं , जो ' शिखर अनुभव ' से गुजारने के लिए अधीर हैं |
         रौजेक कहते हैं की काफी अरसे तक यह  भ्रान्ति पनपती रही की मनमाने अतिचार से तनाव कम होते हैं | शांत रहना आ जाता है मगर इस अतिचार का नतीजा यह हुआ की हमने ईश्वर  को कम्पूटर और खेल - तमाशों के बीच फंसा दिया | नतीजा यह की आज हमारे पास तरह - तरह के आंकडें तो है , परन्तु ईश्वर  खो गया |
           थियोडोर कहते हैं ____ ' हम किसी महापशु की छाया में रंगरलियाँ  मनाया करते हैं | अकरणीय के पक्ष में तर्क  देते हैं फिर पोपुलर मैकेनिक्स का हिस्सा  हो लेते हैं ' | इसके ठीक विपरीत ऐसे लोगों की संख्या भी तेजी से बढ रही है जो विचार करते हैं की कुछ है जो नहीं मिला उसे पाना है | कुम्भ युग में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ रही है की जिंदगी के आत्यंतिक प्रश्नों का उत्तर इसी वय में मिल जाना अनिवार्य है | रौजेक हक्सले के स्वर में स्वर मिलाकर कहते हैं की छलांग अब लगने ही वाली है | जो महाकाव्य पृथ्वी से लेकर बाहरी  दिक् तक लिखा पड़ा है उसकी प्रस्तावना लिखी जा रही है | बीसवी सदी के मध्य में स्टाईनर  ने एक प्रयोग किया था | उसने स्मृति - कोश को निस्पंद कर एक रिक्ति  पैदा की थी और पाया था कि सिरकाडियन रिदम ने उस रिक्ति को भरना शुरू कर दिया था |  स्टाईनर ने अनुभव किया था कि इस प्रयोग के क्षणों में मस्तिषक कि कोशिकाओं में दिव्यता का अंश बढ़ने लगा था | फ्रांस के संत गुर्जिएफ ने भी अनर्गल साधना - पद्दति दव्वारा यह सिद्ध किया था की हम सबके भीतर रोबोट बैठा है , जो कोई नया कार्य प्रारंभ कर चुकने के बाद तत्काल हमें जकड लेता है और हमें नए अनुभव के दरवाजे तक जाने से रोक देता है | आज पश्चिम में लोकप्रिय  टी गुप्त , भिड्न्तु गोष्ठियां , सिनानो क्रीड़ायें , एस्त आदि सभी किसी न किसी रूप में गर्जिएफ़ से अनुप्रेरित होकर प्रचलन  में आई |
            आस्था का युग पार्क का युग , उद्विग्नता का युग और अन्तत : अब रोगोपचार का युग प्रचलन में आ चूका है | यह सब इसलिए की मुरझाई आत्माएं दो बार प्रमुदित हो सकें | हमारे देश की वैदिक , बौद्ध और तांत्रिक परम्पराओं का हवाला देते हुए रौजेक अंततः पतंजलि के योग - दर्शन पर आता है कि सही और ठीक तरह पर अगर सम ही सध जाए तो समाज अपने आप नैतिक होना शुरू कर देगा | जो व्यक्ति मैथुन , चोरी और झूठ का त्याग नहीं कर सकता , वह नियम , आसन और प्राणायाम क्या करेगा ? तो भी रौजेक का कहना यही है कि रास्ता यही है |