भारतीय कथा - साहित्य के विकास में प्रेमचंद ( 1880 - 1936 ) का उल्लेखनीय योगदान है | प्रेमचंद का जन्म 1880 में बनारस से चार किलोमीटर दूर लमही नामक गाँव में हुआ था | उनकी आरंभिक पढाई गाँव के एक मकतब में हुई | बनारस के मिशन स्कुल में उन्होंने मैट्रिक पास किया | 1899 में अध्यापन से जीविकोपार्जन की शुरुवात की | नौकरी करते हुए उन्होंने बी . ए की पढाई पूरी की | वे स्कूलों के सब - डिप्टी इंस्पेक्टर भी रहे | 1920 में महात्मा गाँधी के आहवान पर उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया | जीवन के उतर्वर्तीकाल सन 1934 में उन्होंने कुछ दिनों के लिए मुंबई में फिल्म कथा लेखक के रूप में भी काम किया इस काम से उनका मन जल्दी ही उचट गया और वे बनारस लौट आये |
प्रेमचंद का मूलनाम धनपतराय था | उन्होंने लेखन की शुरुवात उर्दू से की | उर्दू में वे नवाबराय के नाम से लिखते थे | उर्दू में उनकी पहली कहानी संग्रह ' सोजे वतन ' नाम से छपा था | इसमें रोमानी भावुकता में लिपटी देश के लिए आत्म बलिदान का सन्देश देने वाली पांच कहानियाँ हैं | अंग्रेज सरकार ने राजद्रोह का आरोप लगा कर इस संग्रह को जब्त कर लिया था | प्रेमचंद जल्दी ही उर्दू से हिंदी में लिखने लगे | लेकिन उर्दू में उन्होंने लिखना बंद नहीं किया | उन्होंने अपने अधिकांश उपन्यास पहले उर्दू में लिखे फिर उनका अपने आप ही हिंदी में रूपांतर किया | प्रेमचंद की हिंदी मुहावरेदार और बोलचाल की भाषा है | ' सेवा सदन ( 1918 ) ' बाज़ारे हुस्न ' नाम से ' प्रेमाश्रम ' ( 1921 ) ' गोशए आफियत ' ' रंग भूमि ' ( 1925 ) ' चौगाने हस्ती ' तथा ' कर्म भूमि ' ( 1926 ) ' मैदाने अमल ' नाम से पहले उर्दू में लिखे गये थे ' लेकिन उनका प्रकाशन पहले हिंदी में हुआ था हिंदी में प्रेम चंद के दस पूर्ण ( तथा एक अधुरा ) उपन्यास प्रकाशित हुआ | उक्त उपन्यासों के अतिरिक्त उनके बाकि उपन्यास हैं ___ ' वरदान ' ( 1921 ) ' कायाकल्प ' ( 1926 ) ' निर्मला ' ( 1927 ) ' प्रतिज्ञा ' ( 1929 ) , ' गबन ' ( 1931 ) ' गोदान ' ( 1936 ) | मंगल सूत्र ' उनका अपूर्ण उपन्यास है | प्रेमचंद ने लगभग तीन सो कहानियां और तीन नाटक लिखे | उन्होंने तीन मासिक पत्रिकाओं ' माधुरी ', ' हंस ' और ' जागरण ' का संपादन प्रकाशन किया तथा समय - समय पर वैचारिक , साहित्यिक निबंध भी लिखे | उनके निबंधों का एक संग्रह ' कुछ विचार ' ( 1939 ) नाम से छपा | बाद में उनके पुत्र अमृत राय ने और सामग्री खोजकर इसका परिवर्धित संस्करण ' साहित्य का उद्देश्य ' नाम से प्रकाशित कराया | प्रेमचंद का निधन महीनों जलोदर रोग से ग्रस्त रहने के बाद 8 अक्टूबर 1936 को बनारस में हुआ |प्रेमचंद सोद्देश्य साहित्य के पक्षधर थे | उनका मानना था की साहित्य को सामाजिक बदलाव में सहायक होना चाहिए तथा मानवता की बेहतरी की ओर ले जाने का दायित्व निभाना चाहिए | अपनी कृतियों के माध्यम से उन्होंने इसी महत उद्देश्य की पूर्ति भी करनी चाही | अपने समय ओर समाज पर प्रेमचंद की पैनी नज़र थी | वे अपने समाज की समस्याए देख रहे थे उनके समाधान तलाशने की भी कोशिश कर रहे थे | प्रेमचंद की हर रचना में कोई न कोई समस्या उठाई गई है | शुरुवाती उपन्यासों में प्रेमचंद समस्या के साथ - साथ समाधान देने की भी कोशिश करते हैं | प्रेमचंद की रचना क्षमता निरंतर विकासशील है | शुरू में आदर्शवादी है फिर यथर्थोंन्मुख आदर्श की ओर मुड़ते हैं ओर अन्तः आदर्श पीछे छुट जाता है | बचता है तो सिर्फ यथार्थ | ' गोदान ' उपन्यास तथा ' कफ़न ' कहानी इसके उदाहरण हैं | दलित समस्या , स्त्री पराधीनता , किसानों की दुर्दशा प्रेमचंद के केन्द्रीय सरोकार हैं | महाजनी सभ्यता की शोषक प्रवृतियों को उजागर करने के काम को प्रेमचंद ज्यादा तवज्जो देते हैं |
शतरंज के खिलाड़ी : यह कहानी पहले पहल ' माधुरी ' पत्रिका में अक्टूबर 1924 में छपी | इस कहानी पर सत्यजित राय ने फिल्म भी बनाई थी | यह पतनशील सामंतवाद का जिवंत चित्र प्रस्तुत करने वाली रचना है | वक्त वाजिद अलीशाह ( शाषनकाल 1847 -1856 ) का है | लखनऊ में लोग विलासता में डूबे हैं |समाज का उपरी तबका घोर आत्मकेंद्रित है | देश और दुनिया में क्या हो रहा है इसके प्रति वे लोग बेखबर है | मिर्ज़ा सज्जाद अली ओर मीर रोशन अली के जरीय प्रभुवर्ग की दिग्भ्रमित मानसिकता का चित्रण किया है लखनऊ पर अंग्रेजी सेना का कब्ज़ा हो गया | वाजिद अलीशाह बंदी बना लिए गये | मीर ओर मिर्जा इससे परेशान नहीं होते | वे शतरंज खेलते हुए अपनी जान दे देते हैं |