बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

खुद को संवारो


उफ़ ये इंसानी फितरत भी नए - नए खेल है रचती |
खुद अभी संवरी  नहीं दूसरे को संवारने है निकली |

16 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... क्या बात है ...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति। धन्यवाद।

Aruna Kapoor ने कहा…

sundar shabd..sundar prastuti!

बेनामी ने कहा…

खुबसूरत शेर.......हमारे ब्लॉग पर आने का बहुत शुक्रिया.....इनायत बनाये रखिये।

बेनामी ने कहा…

खुबसूरत शेर.......हमारे ब्लॉग पर आने का बहुत शुक्रिया.....इनायत बनाये रखिये।

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब !

रविकर ने कहा…

क्या खूब -

कुमार राधारमण ने कहा…

कहीं न कहीं अचेतन में यह बात तो है कि क्या अच्छा है!

Srikant Chitrao ने कहा…

बहोत खूब |

Darshan Darvesh ने कहा…

कब शब्दों में बड़ी बात !

Srikant Chitrao ने कहा…

बहोत खूब |

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात है
बढिया

Srikant Chitrao ने कहा…

बहोत खूब |

Kavita Rawat ने कहा…

बहुत सुन्दर!!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

wah.. behtareen...!!

Satish Saxena ने कहा…

हर जगह यही सच ..