tag:blogger.com,1999:blog-38370335653759271712024-03-09T18:46:18.676-08:00एक नज़र इधर भीMinakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comBlogger73125tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-3550475720384424892012-02-08T19:33:00.000-08:002012-02-09T10:13:56.367-08:00खुद को संवारो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><img height="213" src="http://scottveltkamp.com/scott/wp-content/uploads/2009/05/helping-hand-logo.jpg" width="320" /> <br />
उफ़ ये इंसानी फितरत भी नए - नए खेल है रचती |<br />
खुद अभी संवरी नहीं दूसरे को संवारने है निकली |</div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-73592537246229785202012-01-08T00:57:00.000-08:002012-01-08T00:57:50.106-08:00दर्द<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<img src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRHoV_vIo9f3cO7u6kkIbrMFI1Oqnj6_GOqfFaRDYlMVsnDy684bw" />
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<span style="font-size: large;"><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">तन्हाइयों में दर्द दस्तक देता है ....</span><br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">किसी से कुछ भी न कहकर ...</span><br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">अंदर ही अंदर सुलगता है ....</span><br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">कोई आह जब भीतर करवट लेती है .....</span><br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">तो सारे आलम को ये गमगीन करती है ....</span><br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">ये बेजुबान दर्द ही जीने का सबब बनता है .....</span><br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;" /><span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 14px;">तभी शायद ये हमारे इतने करीब रहता है | :)</span></span>
</div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-66228189301940017032011-12-13T23:20:00.000-08:002011-12-13T23:20:02.830-08:00महादेवी वर्मा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div><div><img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSIfCVJzcXdv88efXCWra9szkIB35loZ3FFItgYqk7iLFgjPQJFxg" />आज के नारी उत्थान के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य सृजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण सम्बन्धी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | महादेवी जी , जहां एक श्रेष्ठ कवयित्री थीं वहीँ मौलिक गद्यकार भी |</div></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जीवन परिचय </span>____ महादेवी जी का जन्म फरुर्खाबाद में सन 1907 ईस्वी में हुआ था | इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इंदौर के एक कालेज में प्रोफ़ेसर थे | महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा का श्री गणेश यहीं से हुआ था | इनकी माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी | इनकी भक्ति भावना का प्रभाव महादेवी वर्मा पर भी पड़ा | छटी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 1920 ईस्वी में प्रयाग में मिडिल पास किया | इसके चार साल बाद हाई स्कुल और 1926 ईस्वी में दर्शन विषय लेकर इन्होने एम. ए. की परीक्षा पास की एम . ए पास करने के पश्चात् महादेवी वर्मा जी ' प्रयाग महिला विद्या पीठ ' में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त हुई और मृत्युपर्यंत इसी पद पर कार्य करती रहीं | अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या भी मनोनीत की गई | 11 सितम्बर 1987 ईस्वी को इलाहाबाद में इनका देहांत हुआ |</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">रचनाएँ </span>__ महादेवी जी प्रसिद्धि विशेषत: कवित्री के रूप में हैं परन्तु ये मौलिक गद्यकार भी हैं | इन्होनें बड़ा चिन्तन पूर्ण , परिष्कृत गद्य लिखा हैं | महादेवी जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं :</div><div>निहार , रश्मि , नीरजा , सांध्य गीत और दीपशिखा |</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">यामा</span> पर इन्हें <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' भारतीय ज्ञानपीठ '</span> पुरस्कार प्राप्त हुआ था |</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रमुख गद्य रचनाएँ</span> __ ( 1 ) पथ के साथी , ( 2 ) अतीत के चलचित्र , ( 3 ) स्मृति की रेखाएं , ( 4 ) श्रृंखला की कड़ियाँ |</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">साहित्यिक विशेषताएं ___</span> महादेवी वर्मा की काव्य - रचना के पीछे एक ओर स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा है , तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है | यही कारण है की उनके काव्य में जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना की अभिव्यक्ति है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा के बोध की भी | दुसरे छायावादी कवियों की तरह महादेवी वर्मा के गीतों में भी प्रक्रति सोंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों की व्यंजना हुई है महादेवी वर्मा के गीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनी है और लोक गीतों की अनुगूँज भी , लेकिन इन दोनों के साथ ही उनके गीतों में आधुनिक बौद्धिक मानव के द्वंदों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख है |</div><div><div> विषय की दृष्टि से महादेवी जी की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है __ ( 1 ) विचारात्मक एवं विवेचना प्रधान , ( 2 ) पीड़ा , क्रंदन , अंतसंघर्ष , सहानुभूति एवं संवेदना प्रधान | ' श्रृंखला की कड़ियाँ ' तथा ' महादेवी का विवेचनात्मक गद्य ' इनकी विवेचना प्रधान रचनाएँ हैं | कहना न होगा की महादेवी जी के घरेलू जीवन में दुख ही दुख था | इन्हीं दुख क्लेश और आभाओं की काली छाया ने इनके साहित्य में करुणा , क्रंदन एवं संवेदना को भर दिया | वही भावनाएं गद्य में भी साकार रूप से मिलती है | जहां तक विवेचनात्मक गद्य का सम्बन्ध है , वह इनके विचारपूर्ण क्षणों की देन है यहाँ इन्होंनें लिखा है __<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> " विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना अधिक अच्छा लगता है | अपनी अनुभूति ही नहीं , बाहय परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है | "</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">काव्यगत विशेषताएं </span>___ महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है उनके काव्य में रहस्यानुभूति का रमणीय प्रतिफलन हुआ है | महादेवी के प्रणय का आलंबन अलौकिक प्रियतम है | वह सगुण होते हुए भी साकार नहीं है | वह कहती हैं _____<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" मुस्कुराता संकेत भरा नभ ,</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अलि क्या प्रिय आने वाले हैं ? "</span><br />
कवित्री का अज्ञात प्रियतम इतना आकर्षक है की मन उससे मिलने को आतुर हो जाता है | निम्नांकित में ललकती कामना का प्रभावशाली प्रकाशन हुआ है ___<br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें बांध पाती सपने में |</span></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तो चिर जीवन - प्यास बुझा</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">लेती उस छोटे क्षण अपने में |"</span><br />
कवयित्री के स्वप्न का मूक - मिलन भी इतना मादक और मधुर था कि जागृतावस्था में भी वह रोमांचित होती रही हैं ______<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" कैसे कहती हो सपना है</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अलि ! उस मूक मिलन कि बात</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भरे हुए अब तक फूलों में</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मेरे आंसूं उनके हास | "</span><br />
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन को ' विरह का जलजात ' कहा है | ____<br />
<div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">विरह का जलजात जीवन , विरह का जलजात |</span></div><div>विरह की साधना में अपने स्वयं को जलाने की बात कहती हैं ___</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मधुर - मधुर मेरे दीपक जल , </span></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रीतम का पथ आलोकित कर | '</span></div></div></div>उनके काव्य में वेदना - पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है | वे कहती हैं ___<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मैं नीर भरी दुःख की बदली | '</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भाषा - शैली </span>____ महादेवी जी की भाषा , स्वच्छ , मधुर , संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त परिमार्जित कड़ी बोली हैं | शब्द चयन उपयुक्त तथा वाक्यविन्यास मधुर तथा सार्थक हैं | महादेवी जी का तीक्ष्ण व्यंग हृदय में व्याकुलता उत्पन्न कर देने वाला है मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा के सोंदर्य को और भी बड़ा दिया है | भाषा में सर्वत्र कविता की सी सरसता और तन्मयता है | महादेवी के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारन अत्यंत आकर्षक हैं | उनमें चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रण है | महादेवी जी ने नए बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगति की अभिव्यक्ति - शक्ति का न्य विकास किया है | उनकी काव्य - भाषा प्राय तत्सम शब्दों से निर्मित है |<br />
<br />
<br />
<br />
</div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-62472454629172647512011-09-20T23:59:00.000-07:002011-09-20T23:59:00.608-07:00संतों देखत जग बौरान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 20px;"></span><br />
<div style="text-align: left;"><img src="data:image/jpg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wBDAAkGBwgHBgkIBwgKCgkLDRYPDQwMDRsUFRAWIB0iIiAdHx8kKDQsJCYxJx8fLT0tMTU3Ojo6Iys/RD84QzQ5Ojf/2wBDAQoKCg0MDRoPDxo3JR8lNzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzf/wAARCADcAKcDASIAAhEBAxEB/8QAGwAAAQUBAQAAAAAAAAAAAAAABQACAwQGAQf/xABNEAACAQMCAwQFBwcIBwkAAAABAgMABBEFIRIxQQYTUWEicYGR0RUWMqGxwfAUIzNCUmJyByQ0U1RVkuEmNkNzgrLxNURFY3STo9Ly/8QAGQEAAwEBAQAAAAAAAAAAAAAAAQIDAAQF/8QAIhEAAgICAgMBAQEBAAAAAAAAAAECESExAxITMlFBImFx/9oADAMBAAIRAxEAPwDKT9sNcWaRRdIAGI/RL40z55a7jH5Yv/tL8KCXP9Jl/wB432mo6muKHwfvL6HD2v1w/wDexv4RrS+d2uZz+W//ABr8KB0qPjh8N3l9DXzs1z+3EepF+Fc+dWt8/wAuYf8AAvwoNSrdI/Ad5fQx86Nb/t7/AOFfhXPnRrn94y+5fh50IpUekfhu8voW+c2t8/lGX3L8KXzm1vpqU23LZfh6qE0q3SPw3eX0L/OXW/7yn9y/CmntHrJO+ozn2L8KF/jlSx6qHjj8N2l9Cvzj1rH/AGlP7l+FIdotZ/vGf3L8KE+6uj1Ct44/DdpfQp84tZPPUZ/cvwpfODWDz1Gf3L8KF7eVdx6vfW6R+G7S+hT5w6zjHyjN7h8KQ7Q6xnPyhNn1D4ULx+M138c63SPw3ZhI9oNXP/iE3+EfCufL2rf2+X3D4UOO/h76XL/9UeqN2Zvv5LtTvbvtOI7q5eRO5c8LAc6VVP5J/wDWsY/qH60q5eVf0y8LaMdd7XU/+8b7TUVS3n9LnH/mv/zGo1UuwVRkmutaOY5Vi1sp7pgI19pq1Z2I4hxDjcHkDsK0tnZd0FfGCB48qSU/gXSMdeRJBMYUJYpszE8z5VBU125kupnY7s7E++oqdaAKlSpeW9EwqWK7S69aAaOD8b1ptO0Sxv7dZY5ZhnYjiGQfdWaIIohoupPp90H5xMcOvlSzusGZo07LWQGWluD/AMQp/wA1rHrJcf4x8KNWssc8QmhIZWGQQuakKDYHB3/Z/H4+qHaRO2A17J2JA/O3Q2znjX4U75pWWfRluj62X4VoIkXoPbipVCgk4Xbyod5GtmZ+atlnPFP/AIh8K4OytkeTT4/iHwrUkJw/RU+eKqzKQfRUY9VFTYG2AfmtYc+8uPaw+FSJ2X00E8QmPPAL70YQM2BtzqeOMs2FAOOv4/H3ZyYLY7sbo1lp+srPbpIHMbD0myMH10qL6FCYr8FueOXhsaVc83bOvi9Tw+8GbycD+tf/AJjRbTdNIUM20jc9voioLe17/VblmA4EmfPn6RrS29tw78vbXZOWKJN0PsbaCJASgBHIFKuEggADbB/Vqq0qr6AA4unOnxSbYT0j5HlUye2YK8TgupkxjhkYY9pqKr+uxd1qs4/aPF7xVCulaHFt+BXceH2Vyug78/rrBQsb08AA9Kb+OdSKKDKRVjeDizimfRPjUw2z8a4wyDtQTGlAMdm9YNjOsM5zbP4/qHxreLwOgdSCOhHWvKFJB4fvrVdltaeORLK6YlG2jY9D4VOcf0lOFq0bAKpG5wKmXxXAB2361xePgwAoU+VLh4BvvucmokCQCMcyx9tMdVcAquQBjGa6oJ/W2OKlVRgjJA6bUNGKwToRw5OOfKp4VB3Ysd8DB51x1AGCST123pIf1cnz2rbMGdMI/KYwF236+RpVX0d83yg74B6eRpVCWGdfF6nm2nwBGnbrJcuTv0DGi8veAAqSFA8RtVKBCLkjbHeMeX7xojIx4fRX2cNdTZGeyq0Mp4nPok+J3NKHKOpUtnO58akJ73mRt4jal3ajLDBPPJHOtYjZmO18RTUY5MbPH9h/6UDrS9rkLQ20pH0WK59Y/wAqzVdHG7iOIV0DfNcFPG3hTMaKOhTzrvL/AKUi2RvThvvSll/g7B8uXhS3bYbnyFWNM0651KcQ20fEerE7KPM16F2V7FQtLxT/AJzhPpSdM+AH30rwF8iRjNI7MahrDr+TxFFyPTYbCvSNA/k6t7NEe8ZZJcg7jkfIVs7HTobRAsShFXwq0cJvjI86Ts2RlJsFS6VDwcHdg45nFBrjS2AlaJeJUbBHXFapyNyevOq9jEeB2I+ketDFEqyYpVAblgdRUp2A4W6daLa1YmKbvY0IB5j76GROGbibbrU2qFqhIokbhA91TmOJF2G4qOKTgbIznOalYl/Tfbi8KUw/SADqOduv2GlXdLGNQUjlg7Z8qVR5PY6uL1MLGoFzJkH6R5HzNXscUanYHHLNV5MrcSAAnLnmPOrEYJTG+ep610kJ7OJEG2HsGakW3JJBBz66sRBIxlup8Ks2NrPqMvoZjh8cbtRSbFqzN9pdOkn04rEpaTiDIuc5NZ2Lstq0q5FvgeJavZ7HQ7eEboC2eeMmrxjsrYjvBHkHljJqsXSoZHhL9mNURSTCDjoGqu+jalGcG1kP8O/2V7xM8TMTFESBzYjAqkz2sjEJbpJIM54RnHrIpk2w3R4UYpVfgeNwc4wRvWq0nssZO7N6/wCcbBEI6DxY/dWp1SS0knjAt42lUkoOHOPPNXNIsszB5d3Y8RJHOma+mfK6wS6VoywQiG3VVU7uwXFbLT4IoYQiAAL0qjaogKhQABvU7y4YohyfsqTdiLBdeZc8HENqjdicb8vrqqoPHxu2F86a7NcOQrcKDYmhQbLBc3EgjjPojHF51cAWNQgG9QWyrBEDy8BXTLjLAZYnAoDIV6nHEwJGCMb1hXUwyunVWxnHurV6pdiOJk4hxHOfvrKOQ8pOxyfHcUJLAr2WlBYKBzJ38qsegqhDv41VjUpsynaraxxsCQQQBzzUmKOsuD8tUxnHPbHkaVKzGLoHGB4k+RpVDk9jq4vUxgXNy+wOHb7TVgRqBxHAA6U2Nf5xNz+m22fOo7+57tP4eQB5noK6kQlmRcsYGvZuBccKkcR+77K19oiWkGTgYHWg/Z+1FtaIrnMr+m5z1P4xV+4mVJCZmxHEPSGeZqqWKBomZ7i4BeSUxw+WxNDr3VLa2AS0i72Q7cROSTQ7VtbE6skbHgzjhU86k0CxM8qPMTk77jYDwpqpWzbCFjY3eojvL6YxxEbRIcZHmak7TTw6RoawWwWOW4PCMfsjnRxlEapGu3F4eFY3tzIZdehtTuscShRjkTzrQuUsheEC9GgeSQzyDiPjmtbYxgIGJw1CbNFiRY0BCgbkirK3nG3BDlj1I8KpK2TDEk0aqFjfHi2fsqWF1jUFVIOd8/fQcOsK95M4Ujx6Cq8mqGZTwllh5YGxal6mDUt3xk5cBRzbw9XnT47+CGJWJ4RnYZ+v11lpb5nwEx5DwqKW/ihQNczoW6DyrdUFX+Glk1jvJNlwo3yev43qC715IkIjJLfZWejubm9/okMsinlwoQD7abJpWqEgtZOc9CwFC4LbKLjm9IlvdXluicZUchU1mDIqnfGOLpvQe4guUmW3kt2hkbmT0XqaOQhVCiPhCgDAHQUnI1WBHFrYSs42lcq2RnrinBWjEi8PXFTWkfEilCMg52qXgLM/HzznNc15NRBak94pbOPHHLalU0fDGqovPOWwfKlUZ+x18PqYqRisk3QcbdPM0NkU3OpWkG+M94+R0HKrdyx7+QDH6Vvtqv2eQXOp3MzbopEY9Q/zzXbBHP8ArZtbUlRkDn08KD9opibdEX6WS7ee+1GG/MxqVHIbVltXlDznfYDJ3qqEoq6ZBJeX8UCj6J43OPcK9I0e2MbHOAoAFZLsHB3ss96y+izHB57DYffW608AxK6jI4efmd6EnY/6dk4XvowTk7CvOu21x/pNcH9gqB7BW7hnEmrqgx6CnevL+190X7R3uOQlI51uPbNsl+VpJPRkcBc8lz9dF4dTgji4bfgOBux2GawT3BZtm9HPjU6TTzwytArOsQyxz09VV7L9N4r0ai51CDiBnl71ugB2FUZdSmmTNvEWQnHo8vaam7IaTbakTcXrGVVBJUnAHhmjF8UlK28MYSOHZUQACpynWgxgv0HWNhPPErXU/do3+zjO/tNXRpkUacVnBGZCd5JjxY9QNcIMS7OByxxcqoX899BEZY5VxjopxXPKcmzq44RofqVlq7niGo8DdFXYCnaVrGuxXCWcsscuSAGJzg/Ch0k948TuJ1lPAWA3JJxyxVXRLq4fUgsyd0p9EsQcjfmKDTcXZVJJ4Nj2jvoLvUoLa2jaR4V4pJVOy56VHbuHAAJ2G++9Dlhk0u8nt5WLCZzJHLz7xTy91WbfIl2J3O5xWil1wcPM/wC2ajTpmUJgDfxq1IeI4IyeeB41U08kRjhUHbnjerjhVPPc9M1N7J/hXEWMyeBxSqdie5JxsTmlUuTZ08XqeZ6ldfk89wxBPC7nY+urfZKPgsYufFJ6ROfOgWvyZubiFdmaZhy8WrW6PEITbxrjCRAkgV6EFgjNUFb+Xgt2Zumw3rE6xdMsEjAnic8I3rSa9PwQBAemcYrGai/e3NtB5jO3UmqJYFgrZ6R2XtzZ6GgUEMyhfq3rW2sfdafGDzK5xQGEGOxt0GRkjblR6QlIQoJyFAxUmFAnTF4tTncnOAd68g7Uu8vaO/VNvz7D1V7Fo4/nUzEk868g1sJ8talKSv6ViB66aG2NEo2kamNzJhm70JxH9UYP31c0+2ij1O0t42IkJJYjbIFB45GDssZHC2OIHkTRO2tXvZoO6lMVzG+OJj0pJ2dkGqwbfsqbf5QurFQDkCRTyz4iuXvHb3UsaqQeJgNq52WtnbtDLNLsVjweHxovr+mTF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/>उत्तर भारत में निर्गुण संत परम्परा की जो धरा प्रवाहित हुई उसका श्रेय कबीर को दिया जाता है | वैसे तो कबीर का जीवन किम्वदंतियों , अटकलों , चमत्कारिक कहानियों से ढक दिया गया है |</div><div style="text-align: left;">जो बात असंदिग्ध रूप से कही जा सकती है वह ये है की उनका पालन - पोषण एक जुलाहा परिवार में हुआ था | इस परिवार को इस्लाम धर्म में आये हुए अभी बहुत समय नहीं हुआ था , इसलिए इस्लाम और हिन्दू दोनों धार्मिक परम्पराएँ साथ - साथ चल रही थी | कबीर के गुरु के रूप में रामानंद का नाम लिया जाता है | इस बिंदु पर विद्वानों का मत भले एक न हो लेकिन निर्गुण राम के प्रति कबीर की निष्ठां संदेह से परे है | आजीविका के लिए कबीर जुलाहे का व्यवसाय करते थे | कबीर के जीवन काल के सम्बन्ध में अध्येताओं में मतभेद है | मोटे तोर में उनका समय सन 1398 - 1448 माना गया है | </div><div style="text-align: left;"> कबीर की काव्य - संवेदना लोकजीवन से अपनी उर्जा ग्रहण करती है | यह संवेदना मनुष्य - मात्र की समानता की पक्षधर है | जो परम्परा मनुष्य मनुष्य में भेद करती है , कबीर उसके खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं | वे शास्त्र ज्ञान पर नहीं ,' आखिन देखि ' पर यकीं करते हैं | ढोंग और पाखंड से उन्हें गहरी चिढ है | वे सहज , सरल जीवन जीने के पक्ष में हैं | प्रवृति और निवृति दोनों तरह का अतिवाद उन्हें कभी स्वीकार नहीं हुआ | उनकी कविता में एक जुलाहे का जीवन बोलता है | वे पुरे आत्मविश्वास के साथ प्रतिपक्षी को चुनौती देते हैं | उनकी कविता जीवन के बुनियादी सवाल उठाती है | इन सवालों की प्रासंगिकता छ: सौ साल बाद आज भी बनी हुई है |</div><div style="text-align: left;"> कबीर को ' वाणी का डिक्टेटर ' कहा गया है | इस का अर्थ ये है की भाषा उनकी अभिव्यक्ति में रोड़े नहीं अटका पाती | वे बोलचाल की भाषा के हिमायती थे | उनकी कविता में तमाम बोलियों , भाषाओँ से आये शब्द शामिल हैं | कबीर की रचनाओं की प्रमाणिकता को लेकर विवाद है | कबीर की रचनाएँ प्राय : मौखिक रूप से संरक्षित रही , इसलिए उनमे भाषा के बदलते रूपों की रंगत शामिल होती गई | इन रचनाओं का मूल रूप क्या था , इसका ठीक - ठीक पता लगाना आज बहुत कठिन है | कबीर की वाणियों का संग्रह ' बीजक ' के नाम से प्रसिद्ध है | कबीरपंथ इसे ही प्रमाणिक मानते हैं | कबीर की रचनाओं का संग्रह और संपादन आधुनिक युग के कई विद्वानों ने किया है |</div><div style="text-align: left;"> कबीर को हिन्दू - मुस्लिम एकता का प्रतीक बना दिया गया है | एसी समझ प्रचारित कर दी गई है की कबीर दोनों धर्मों को आपस में जोड़ने की कोशिश कर रहे थे | जहां भी ' सर्व - धर्म - समभाव ' की बात आती है वहां कबीर को उदाहरण के रूप में रखा जाता है | यह मान्यता पूरी तरह सही भी नहीं है | कबीर मात्र सर्व - धर्म - समभाव के कवी नहीं हैं | वे अपने समय में मौजूद सभी धर्मों की बुराइयों से परिचित हैं | उनकी आलोचना करने में वे हिचकते नहीं | उनका व्यंग , धर्म का धंधा करने वालों की पोल खोल देता है | हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों में उन्हें मिथ्यात्व दिखाई देता है | वे इन संगठित धर्म - मतों से अलग तीसरे विकल्प का प्रस्ताव करते हैं | समाज की गति पर कबीर को गुस्सा आता है | उनका गुस्सा इस बात को लेकर है की यह संसार झूठ पर तो विश्वास कर लेता है लेकिन सच बताने वालों को मारने दौड़ता है |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">संतों देखत जग बौरान |</div><div style="text-align: left;">सांच कहों तो मरण धावै | झूठे जग पतियाना ||</div><div style="text-align: left;">नेमी देखा धरमी देखा |परत करे असनाना ||</div><div style="text-align: left;">आतम मरी पखान्ही पूजै |उनमें कछु नहीं ज्ञाना ||</div><div style="text-align: left;">भुतक देखा पीर औलिया | पढ़े किताब कुराना ||</div><div style="text-align: left;">कहे कबीर सुनो हो संतों | ई सब गर्भ भुलाना ||</div><div style="text-align: left;">केतिक कहों कहा नहिं मानै | सहजै सहज समाना ||</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-33087189089469988262011-09-02T05:16:00.000-07:002011-09-02T05:16:05.297-07:00महादेवी वर्मा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSIfCVJzcXdv88efXCWra9szkIB35loZ3FFItgYqk7iLFgjPQJFxg" />आज के नारी उत्थान के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य सृजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण सम्बन्धी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | महादेवी जी , जहां एक श्रेष्ठ कवयित्री थीं वहीँ मौलिक गद्यकार भी |</div></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जीवन परिचय </span>____ महादेवी जी का जन्म फरुर्खाबाद में सन 1907 ईस्वी में हुआ था | इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इंदौर के एक कालेज में प्रोफ़ेसर थे | महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा का श्री गणेश यहीं से हुआ था | इनकी माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी | इनकी भक्ति भावना का प्रभाव महादेवी वर्मा पर भी पड़ा | छटी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 1920 ईस्वी में प्रयाग में मिडिल पास किया | इसके चार साल बाद हाई स्कुल और 1926 ईस्वी में दर्शन विषय लेकर इन्होने एम. ए. की परीक्षा पास की एम . ए पास करने के पश्चात् महादेवी वर्मा जी ' प्रयाग महिला विद्या पीठ ' में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त हुई और मृत्युपर्यंत इसी पद पर कार्य करती रहीं | अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या भी मनोनीत की गई | 11 सितम्बर 1987 ईस्वी को इलाहाबाद में इनका देहांत हुआ |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">रचनाएँ </span>__ महादेवी जी प्रसिद्धि विशेषत: कवित्री के रूप में हैं परन्तु ये मौलिक गद्यकार भी हैं | इन्होनें बड़ा चिन्तन पूर्ण , परिष्कृत गद्य लिखा हैं | महादेवी जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं :</div><div style="text-align: left;">निहार , रश्मि , नीरजा , सांध्य गीत और दीपशिखा |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">यामा</span> पर इन्हें <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' भारतीय ज्ञानपीठ '</span> पुरस्कार प्राप्त हुआ था |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रमुख गद्य रचनाएँ</span> __ ( 1 ) पथ के साथी , ( 2 ) अतीत के चलचित्र , ( 3 ) स्मृति की रेखाएं , ( 4 ) श्रृंखला की कड़ियाँ |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">साहित्यिक विशेषताएं ___</span> महादेवी वर्मा की काव्य - रचना के पीछे एक ओर स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा है , तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है | यही कारण है की उनके काव्य में जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना की अभिव्यक्ति है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा के बोध की भी | दुसरे छायावादी कवियों की तरह महादेवी वर्मा के गीतों में भी प्रक्रति सोंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों की व्यंजना हुई है महादेवी वर्मा के गीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनी है और लोक गीतों की अनुगूँज भी , लेकिन इन दोनों के साथ ही उनके गीतों में आधुनिक बौद्धिक मानव के द्वंदों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख है |</div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> विषय की दृष्टि से महादेवी जी की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है __ ( 1 ) विचारात्मक एवं विवेचना प्रधान , ( 2 ) पीड़ा , क्रंदन , अंतसंघर्ष , सहानुभूति एवं संवेदना प्रधान | ' श्रृंखला की कड़ियाँ ' तथा ' महादेवी का विवेचनात्मक गद्य ' इनकी विवेचना प्रधान रचनाएँ हैं | कहना न होगा की महादेवी जी के घरेलू जीवन में दुख ही दुख था | इन्हीं दुख क्लेश और आभाओं की काली छाया ने इनके साहित्य में करुणा , क्रंदन एवं संवेदना को भर दिया | वही भावनाएं गद्य में भी साकार रूप से मिलती है | जहां तक विवेचनात्मक गद्य का सम्बन्ध है , वह इनके विचारपूर्ण क्षणों की देन है यहाँ इन्होंनें लिखा है __<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> " विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना अधिक अच्छा लगता है | अपनी अनुभूति ही नहीं , बाहय परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है | "</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">काव्यगत विशेषताएं </span>___ महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है उनके काव्य में रहस्यानुभूति का रमणीय प्रतिफलन हुआ है | महादेवी के प्रणय का आलंबन अलौकिक प्रियतम है | वह सगुण होते हुए भी साकार नहीं है | वह कहती हैं _____<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" मुस्कुराता संकेत भरा नभ ,</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अलि क्या प्रिय आने वाले हैं ? "</span><br />
कवित्री का अज्ञात प्रियतम इतना आकर्षक है की मन उससे मिलने को आतुर हो जाता है | निम्नांकित में ललकती कामना का प्रभावशाली प्रकाशन हुआ है ___<br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें बांध पाती सपने में |</span></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तो चिर जीवन - प्यास बुझा</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">लेती उस छोटे क्षण अपने में |"</span><br />
कवयित्री के स्वप्न का मूक - मिलन भी इतना मादक और मधुर था कि जागृतावस्था में भी वह रोमांचित होती रही हैं ______<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" कैसे कहती हो सपना है</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अलि ! उस मूक मिलन कि बात</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भरे हुए अब तक फूलों में</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मेरे आंसूं उनके हास | "</span><br />
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन को ' विरह का जलजात ' कहा है | ____<br />
<div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">विरह का जलजात जीवन , विरह का जलजात |</span></div><div style="text-align: left;">विरह की साधना में अपने स्वयं को जलाने की बात कहती हैं ___</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मधुर - मधुर मेरे दीपक जल , </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रीतम का पथ आलोकित कर | '</span></div></div></div>उनके काव्य में वेदना - पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है | वे कहती हैं ___<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मैं नीर भरी दुःख की बदली | '</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भाषा - शैली </span>____ महादेवी जी की भाषा , स्वच्छ , मधुर , संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त परिमार्जित कड़ी बोली हैं | शब्द चयन उपयुक्त तथा वाक्यविन्यास मधुर तथा सार्थक हैं | महादेवी जी का तीक्ष्ण व्यंग हृदय में व्याकुलता उत्पन्न कर देने वाला है मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा के सोंदर्य को और भी बड़ा दिया है | भाषा में सर्वत्र कविता की सी सरसता और तन्मयता है | महादेवी के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारन अत्यंत आकर्षक हैं | उनमें चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रण है | महादेवी जी ने नए बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगति की अभिव्यक्ति - शक्ति का न्य विकास किया है | उनकी काव्य - भाषा प्राय तत्सम शब्दों से निर्मित है |<br />
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</div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-34557938868547469592011-05-23T10:28:00.000-07:002011-05-23T10:28:28.710-07:00थियोडोर रोजैक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTO3T6yoVDY1lsPidMz95pOHb0_6K19lBk6RS35jie-c1xGdXxZ" />1933 में केलिफोर्निया में जन्मे और वहीँ पले - बड़े थियोडोर रोजैक पहले स्टेनफोर्ड फिर उसके बाद स्टेट यूनिवर्सिटी आफ कलिफोर्निया में प्रोफ़ेसर के रूप में <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' वन डाईमेंशनल मैन '</span> से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पहली कृति <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मेकिंग ऑफ़ ए काउंटर कल्चर '</span> का प्रकाशन किया जो अपने आपको <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' फ्लावर चिल्ड्रेन '</span> कहते थे , जबकि सार्वजनिक में उन्हें हिप्पी कहा जाता था | यांत्रिक जीवन की एकरसता से ऊबे और वियतनाम की लड़ाई से नाराज इन सभी ने जो जीवन - पद्दति अपनाई , वह सामाजिक सरोकार से मुक्त एक परम स्वच्छंद आवारा जीवन शैली थी , जिसमे मादक दवाइयां , चरस , मांस और गांजे के धुएं में अपनी जवानी बर्बाद करना एक तरह का फैशन बन गया था | 1972 में उनकी दूसरी कृति आई<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' हेव्यर द वेस्टलैंड एंड्स '</span> | इस कृति को लेकर अमेरिका के कई विश्व विद्यालयों में काफी समय तक कई विचार गोष्ठियां हुई और माना यह गया की थियोडोर रौजेक भविष्य पारखी बौद्धिक हैं |<br />
रौजेक की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति है __ <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मैन द अनफिनिश्ड एनिमल</span> | ' थियोडोर रौजेक का मानना है की बीसवीं सदी के अंत के साथ मनुष्यता अब कुम्भ युग में प्रवेश कर रही है | इसका आभास इन तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों और अध्यात्मिक आंदोलनों में झलकता है | जो पिछले अनेक वर्षों से चलाये जा रहे हैं | संवेदना - बोध , अंगिकी , ध्व्न्यावर्तन , आइचिंग , कबीलावाद , उर्जा बिंदु , सुचिकावेध जैसी अधुनाविधियाँ तो हैं ही , इन्हीं के साथ तमाम उपदेशकों की देश्नाएं भी शामिल है जो आदमी की समझ का दायरा बढ़ाना चाह रही है | सब तरह की आतंकी विक्रिया के बावजूद ये शामक विधियाँ आगे बढती जाएँगी |<br />
मनस्विदों का कहना है की अधिकांश मनोरोग संपन्न वर्ग को ही पीड़ित करते हैं | इस पीड़ा का आधार नैतिक और राजनैतिक ग्लानि है | पूर्णत : स्वस्थ आदमी राजनिति में रूचि ही नहीं लेता , क्युकी किसी न किसी तरह की शक्ति , आस्तित्व की शर्त बन गई है , इसलिए हीनभावनाग्रस्त सत्तार्थी हो जाते हैं | वैभव और उत्सवधर्मी समाज गहराई कम प्रचारसिक्त उथलापन अधिक जीता है , मगर भीतर ही भीतर अपने खोखलेपन से भी त्रस्त रहता है | अमेरिका में व्यक्ति को मिलने वाली सुरक्षा का परिणाम यह हुआ है की वयस्क बचकाने हो गये हैं भीतर की ग्लानि से छुटकारा पाने के लिए वे किसी भी तरह की साधना - पद्दति का अनुगमन करना कहते हैं ताकि विरेचन हो पाए | संगणक और उत्सव तमाशों के बीच झूलती आजकी दुनिया में काफी लोग ऐसे हैं , जो ' शिखर अनुभव ' से गुजारने के लिए अधीर हैं |<br />
रौजेक कहते हैं की काफी अरसे तक यह भ्रान्ति पनपती रही की मनमाने अतिचार से तनाव कम होते हैं | शांत रहना आ जाता है मगर इस अतिचार का नतीजा यह हुआ की हमने ईश्वर को कम्पूटर और खेल - तमाशों के बीच फंसा दिया | नतीजा यह की आज हमारे पास तरह - तरह के आंकडें तो है , परन्तु ईश्वर खो गया |<br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> थियोडोर कहते हैं ____<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' हम किसी महापशु की छाया में रंगरलियाँ मनाया करते हैं | अकरणीय के पक्ष में तर्क देते हैं फिर पोपुलर मैकेनिक्स का हिस्सा हो लेते हैं ' </span>| इसके ठीक विपरीत ऐसे लोगों की संख्या भी तेजी से बढ रही है जो विचार करते हैं की कुछ है जो नहीं मिला उसे पाना है | कुम्भ युग में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ रही है की जिंदगी के आत्यंतिक प्रश्नों का उत्तर इसी वय में मिल जाना अनिवार्य है | रौजेक हक्सले के स्वर में स्वर मिलाकर कहते हैं की छलांग अब लगने ही वाली है | जो महाकाव्य पृथ्वी से लेकर बाहरी दिक् तक लिखा पड़ा है उसकी प्रस्तावना लिखी जा रही है | बीसवी सदी के मध्य में स्टाईनर ने एक प्रयोग किया था | उसने स्मृति - कोश को निस्पंद कर एक रिक्ति पैदा की थी और पाया था कि सिरकाडियन रिदम ने उस रिक्ति को भरना शुरू कर दिया था | स्टाईनर ने अनुभव किया था कि इस प्रयोग के क्षणों में मस्तिषक कि कोशिकाओं में दिव्यता का अंश बढ़ने लगा था | फ्रांस के संत गुर्जिएफ ने भी अनर्गल साधना - पद्दति दव्वारा यह सिद्ध किया था की हम सबके भीतर रोबोट बैठा है , जो कोई नया कार्य प्रारंभ कर चुकने के बाद तत्काल हमें जकड लेता है और हमें नए अनुभव के दरवाजे तक जाने से रोक देता है | आज पश्चिम में लोकप्रिय टी गुप्त , भिड्न्तु गोष्ठियां , सिनानो क्रीड़ायें , एस्त आदि सभी किसी न किसी रूप में गर्जिएफ़ से अनुप्रेरित होकर प्रचलन में आई |</div><div style="text-align: left;"> आस्था का युग पार्क का युग , उद्विग्नता का युग और अन्तत : अब रोगोपचार का युग प्रचलन में आ चूका है | यह सब इसलिए की मुरझाई आत्माएं दो बार प्रमुदित हो सकें | हमारे देश की वैदिक , बौद्ध और तांत्रिक परम्पराओं का हवाला देते हुए रौजेक अंततः पतंजलि के योग - दर्शन पर आता है कि सही और ठीक तरह पर अगर सम ही सध जाए तो समाज अपने आप नैतिक होना शुरू कर देगा | जो व्यक्ति मैथुन , चोरी और झूठ का त्याग नहीं कर सकता , वह नियम , आसन और प्राणायाम क्या करेगा ? तो भी रौजेक का कहना यही है कि रास्ता यही है | </div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-29425927077749933922011-05-07T11:45:00.000-07:002011-12-16T20:12:13.370-08:00रवीन्द्रनाथ टेगौर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQjE1RRmOmMjgHUfK1DnvaRLVaoHYM9j1JiuKDyF8PaV0FPfTzazQ" />रवीन्द्रनाथ टेगौर ( 1867 - 1941 ) का जन्म कलकत्ता में एक समृद्ध और सुसंस्कृत परिवार में हुआ था | उनके पिता देवेन्द्रनाथ टेगौर ब्रह्म समाज के बड़े नेताओं में से एक थे | रवीन्द्रनाथ को बचपन से ही धर्म , साहित्य , संगीत और चित्रकारी का वातावरण मिला | 1878 में वे कानून के अध्ययन के लिए कुछ समय तक इंग्लैण्ड में रहे , मगर शीघ्र ही भारत वापस लौट आए और उन्होंने लेखन को ही अपना व्यवसाय बना लिया | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और एक साथ कवि , कहानीकार , नाटककार , गीतकार , दार्शनिक शिक्षक और चित्रकार थे | उन्होंने बंगला में लिखा , लेकिन उनकी कृतियों का भारतीय और विदेशी भाषाओँ में वृहद् स्तर पर अनुवाद हुआ |</div><div style="text-align: left;"> 1901 में उन्होंने बोलपुर में अपने विद्यालय शांति निकेतन की स्थापना की | इस विद्यालय की आशतीत सफलता विश्वभारती की स्थापना का कारण बनी | यह संख्या पश्चिमी और भारतीय शिक्षा तथा दर्शन को समर्पित थी | 1921 में इसे विश्व विद्यालय की मान्यता मिली | टैगोर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थे | उन्हें महान राष्ट्र प्रेमी कहा गया | टैगोर राष्ट्र की अवधारणा के दुष्परिणामों के प्रति आशंकित भी थे | इसके बारे में उन्होंने व्यापक तौर पर भी लिखा | उन्हें सर्वाधिक ख्याति कविता - संग्रह<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' गीतांजलि ' </span>के कारण मिली जिसने पश्चिम को अभिभूत कर दिया था | गीतांजलि के लिए उन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था | 1915 में उन्हें <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' सर '</span> की उपाधि से विभूषित किया गया था | लेकिन 1919 में जलियांवाला नरसंहार के बाद उस उपाधि को उन्होंने लौटा दिया | </div><div style="text-align: left;"> टैगौर की एक हजार से भी ज्यादा कवितायेँ , कहानियों के आठ संग्रह , लगभग दो दर्जन नाटक और नाटिकाएं आठ उपन्यास और दर्शन , धर्म , शिक्षा तथा समाजिक विषयों पर अनेक पुस्तकें और निबंध प्रकाशित हुए | शब्द और नाटक की दुनियां के आलावा संगीत से भी उन्हें गहरा लगाव था | उन्होंने 2000 से अधिक गीतों की रचना की और उन्हें संगीतबद्ध किया |इनमें से दो भारत और बंगलादेश के राष्ट्र गान बनें | उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं :::<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' सोनातरी '</span> ( 1894 ) ,<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' चोखेर बाली '</span> ( 1903 ) , <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' नौका डूबी ' </span>( 1905 )<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' गोरा '</span> (1907 ) और<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' घरे - बहिरे '</span> ( 1916 ) |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">काबुलीवाला </span>____ यह टैगौर की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से एक है | सर्वभोम मानवीय संवेदना को उकेरने वाली यह कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है | कहानी का केन्द्रीय पात्र काबुली वाला अपनी बेटी की छवि लेखक की पुत्री मिनी में देखता है | वह मिनी पर अपना सारा प्यार उडेलता रहता है , यधपि मिनी की माँ की नज़रों में वह संदिग्ध है | कहानी में बालमन का बड़ा हृदयग्राही और यथार्थ चित्रण हुआ है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' शाहजहाँ ' </span>_____यह कविता ताजमहल के सर्वाधिक गीतात्मक वर्णन के लिए जानी जाती है , लेकिन यह मात्र गीतात्मक वर्णन ही नहीं है | जहां यह एक और प्रेम और सोंदर्य के उत्सव का सृजन करती है , दूसरी और यह इस बात की गहरी अनुभूति करवाती है की विनाश या उच्छेद के विरुद्ध मनुष्य का संघर्ष चाहे वह स्थापत्य के माध्यम से हो या साहित्य के माध्यम से अन्तत : पराजय की और होता है | अगर कोई वस्तु शेष रह जाती है तो वह है आंतरिक भावनात्मक प्रत्युतर , जो काल और स्थान के परे अनुभूत होता रहता है |</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-78224735355821303892011-05-01T03:14:00.000-07:002011-05-01T03:14:57.555-07:00दुस्साहसी लेखिका लिलियन हेलमैन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"> <img src="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSfcEdX9PUhSTCEG6sTtT4dp6PkayCMFG9oIF96vcBrvYhiniYa" /> लिलियन हेलमैन का जन्म 20 जून 1905 को अमेरिका में मध्यवर्गीय यहूदी परिवार में हुआ था | उसके पिता मैक्स मार्क्स अमेरिका गृहयुद्ध के दिनों में जर्मनी छोड़कर अमेरिका आ गये थे | मैक्स की बहनें एक मोटेल चलाती थी | लिलियन का जन्म भी यहीं हुआ |लिलियन अपने अभिभावकों की अकेली संतान थी | लिलियन शुरू से काफी बातूनी थी | उनकी माँ हलांकि एक संभ्रांत परिवार की थी , मगर लिलियन के लिए उनके पिता ही उनके हीरो थे | मोटेल में आकर ठहरने वाले यात्रियों के बारे में मनघडंत किस्सों का ब्यौरा देना लिलियन की आदत बन चुकी थी | हेलमैन के प्रारंभिक जीवन की कहानी <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">विलिम राइट </span>ने लिखी है | 19 वर्ष की आयु में उन्हें पहली नौकरी बोनी एंड लिवराइट नामक न्यूयार्क के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान में मिली | लिलियन का कहना है कि <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">विलियम फाकनर</span> कि प्रतिभा को सबसे पहले उन्होंने ही पहचाना और इस तरह फाकनर के प्रसिद्ध व्यंग उपन्यास<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' मस्किटोज़ ' </span>का प्रकाशन संभव हुआ | इसी दौर में वह गर्भवती हुई और गर्भपात के बाद उन्होंने नाट्य अभिनेता <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">आर्थर कोबर </span>से विवाह कर प्रकाशन संस्थान से त्यागपत्र दे दिया | अब वो घर बैठकर समीक्षाएं लिखने लगी | इसी अवधि में उन्हें ' लाइफ ' पत्रिका के संपादक डेविड कोड से प्रेम हो गया | इसके बाद वे अपने पति कोबर के साथ 1939 में पेरिस और वान कि यात्रा करने निकली | यात्रा से लौटकर लिलियन ने हालीवुड कि फिल्मों के लिए पटकथा लिखने का सिलसिला शुरू किया | मेट्रो गोल्डविन मेयर नामक हालीवुड के चित्रपट संस्थान ने उन्हें 50 डालर साप्ताहिक पगार देना मंजूर किया | यहाँ उन्होंने कैमरे के पीछे काम करने वालों के दल के साथ हड़तालें भी करवाई | यहीं उनकी मुलाकात रहस्य कथा लेखक <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">डेशियल हैमेट</span> से हुई | हैमेट भयंकर शराबी था | उसकी लिखी रहस्य कथाओं से उसे अकूत धन प्राप्त हो चूका था | परिणामतः वह काफी प्रमादी हो चूका था | उसकी प्रसिद्ध कृति <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' द टिन मैन '</span> का प्रकाशन 1934 में हुआ | हेलमैन ने हैमेट कि कहानी बड़े रोचक ढंग से लिखी है | लिलियन ने स्वीकार है कि उसके सम्बन्ध हैमेट से भी थे इसे भी एक विचित्र संयोग ही माना जाना चाहिए कि लिलियन से मिलने के बाद हैमेट का लेखन लगभग बंद हो गया और लिलियन कि लोकप्रियता बढने लगी | ऐसा लगने लगा कि जैसे हैमेट कि प्रतिभा ने परकाया परवेश कर लिलियन को सफलता के उच्च शिखर पर पहुचाने कि ठान ली हो | उसकी कृति<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' द चिल्ड्रेन्स आवर' </span>कि सफलता से झल्लाकर एक समीक्षक ने तो यहाँ तक कह दिया कि उसकी पटकथा कहीं और से ली गई है | ' द चिल्ड्रन आवर ' के आसपास उठ खड़े हुए विवाद का परिणाम यह हुआ कि<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> लार्ड चेंबरलेन </span>ने लन्दन में इसके प्रदर्शन पर रोक लगा दी | यही नहीं स्वयं अमेरिका के शिकागो और बोस्टन आदि शहरों में भी इसका प्रदर्शन नहीं हो सका | न्यूयार्क में अवश्य इसने बॉक्स आफिस कि ऊँचाइयों को छुआ | सभी प्रगतिशील बौद्धिकों ने इसकी सराहना की | हलांकि 1934 - 1935 का<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> पुलित्ज़र परुस्कार</span> इसे तभी भी नहीं मिला | लिलियन की अगली नाटय कृति ' डेज़ टू कम ' जिसकी थीम हड़तालों पर आधारित थी , उतनी सफल नहीं हुई | लिलियन की अपनी कृति<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' द लिटिल फोक्सेज़ '</span> ( 1939 ) का घटनाचक्र धन , मुनाफाखोरी और लोभ की कहानी कहता है | इस कृति को लिखने की प्रेरणा लिलियन को उन पात्रों से मिली जो बचपन में उसके मोटेल अथवा बोर्डिंग हॉउस में आकर ठहरते थे , जिसे उसके पिता की बहनें चलाया करती थी | ये सभी पात्र न्यूयार्क आते ही इसलिए थे की किस तरह अधिक से अधिक धन कमाया जाए |<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' द लिटिल फोक्सेज '</span> की लगभग सभी समीक्षकों ने सराहना की है | इसकी सफलता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है की इसका मंचन लगातार 410 दिन तक होता रहा और उसे लिलियन की सर्वाधिक सफल कृति माना गया | दो वर्ष बाद लिलियन हेलमैन की अगली नाट्यकृति ' वाच ऑन द राइन ' आई | इसका नायक एक वामपंथी युवा है , जो नात्सियों से संघर्ष करता है और अंत में खलनायक को मार डालने में सफल होता है | एक वर्ष बाद <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सैम गोडविन </span>जिसके कहने पर लिलियन ने ' द चिल्ड्रेन्स आवर ' , ' डेज तो कम ' और ' वाच ऑन द राइन ' लिखे थे | लिलियन के पास ये प्रस्ताव लेकर आया कि लिलियन इन तीनों नाट्यकृतियों में से समलैंगिकता वाला अंश घटाकर इन्हें फिर लिखा जाए , जबकि ये तीनों कृतियाँ अब तक क्लासिक कि श्रेणियों में रखी जाने लगी थी | लिलियन शायद इसके लिए राज़ी नहीं हुई | लिलियन कि विचारधारा वामपंथी थी | उसकी कृतियों और पटकथाओं में लगातार एसी पंक्तियाँ आती हैं , जो सर्वहारा वर्ग की पीड़ा को वाणी देती है | शिथिल चरित्र की होने की बावजूद उसके संवादों में उर्जा है | लिलियन के विषय में एसा कहा जाता है कि वह बंधनहीन विचारों कि महिला थी | वे खुद लोगों को अपने आवास पर भोजन के लिए आमंत्रित करती थी | एक सूत्र वाक्य कहता है ___<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' कविता वनिता च सुखदा स्वयंमागता ' </span>अर्थात स्त्री और कविता जब अपने आप आए तभी सुखकर होती है | यह गुण लिलियन में भी कूट - कूट का भरा था |</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-70727602500345556452011-04-17T19:40:00.000-07:002011-04-17T19:40:30.530-07:00कामयाबी यों ही नहीं मिलती... बिल गेट्स<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><img src="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRTNaUPKfR10LMWfA4yHqSdpOko_upJpzeEuL6BdYINGe6wj6JjWA" /><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">क्या आपमें है कुछ कर गुजरने की तमन्ना ? क्या आपके पास कोई मकसद , कोई विजन , कोई आइडिया ? यदि एसा कोई लक्ष्य नहीं है , तो घर बैठिए | और अगर आपका जवाब हाँ है तो , अपनी योग्यता को आंकिए और अपने काम में जुट जाइए |</span><br />
<div> बिल गेट्स दुनियां के सबसे अमीर लोगों में से हैं | वह महादानी भी हैं | 28 अक्तूबर 1955 को इनका जन्म हुआ था , लेकिन 32 साल पुरे होने के पहले ही 1987 में उनका नाम अरबपतियों की फ़ोर्ब्स की सूचि में आ गया और कई साल तक वो इस लिस्ट में नम्बर वन पर भी रहे | 2007 में उन्होंने 40 अरब डालर ( लगभग 176 अरब रूपये ) दान में दिए | बिल गेट्स माइक्रोसाफ्ट के चेयरमैन हैं , जिसका साल 2010 का करोबार 63 अरब डालर और मुनाफा करीब 19 अरब डालर था | आंखिर क्या है बिल गेट्स की कामयाबी का मन्त्र ?</div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">उच्च जीवन उच्च विचार :::::::::</span></div><div><div style="text-align: left;"> बिल गेट्स खाते - पीते घर के हैं | स्कूल में उन्होंने 1600 में से 1590 नंबर पाए थे पढाई के दौरान ही कंप्यूटर प्रोग्राम बनाकर उन्होंने 4 , 200 डालर कमा लिए थे और टीचर से कहा था कि मैं 30 वर्ष कि उम्र में करोडपति बनकर दिखाऊंगा और 31 वर्ष में वह अरबपति बन गये | वह विलासितापुर्वक नहीं रहते , लेकिन वह व्यवस्थित जीवन जीते हैं | डेढ़ एकड़ के उनके बंगले में सात बेडरूम , जिम स्विमिंग पूल थियेटर आदि हैं | पन्द्रह साल पहले उसे करीब 60 लाख डालर में खरीदा था | उन्होंने लियोनार्दो दी विंची के पत्रों , लेखों को तीन करोड़ डालर में खरीदा था | ब्रिज , टेनिस और गोल्फ के खिलाडी बिल गेट्स अपने तीन बच्चों के लिए अपनी पूरी जायदाद छोड़कर नहीं जाना चाहते , क्युकी उनका मानना है कि अगर मैं अपनी संपत्ति का एक प्रतिशत भी उनके लिए छोड़ दूँ तो वह काफी होगा | उन्होंने दो किताबें भी लिखीं हैं , द रोड अहेड और बिजनेस @ स्पीड ऑफ़ थोट्स |</div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> साल 1994 में उन्होंने अपने कई शेयर्स बेच दिए और एक ट्रस्ट बना लिया , जबकि उन्होंने 2000 में अपने तीन ट्रस्टों को मिलाकर एक कर दिया और पूरी पारदर्शिता से दुनियां भर में जरूरतमंद लोगों की मदद करने लगे | बिल गेट्स की कमी , एकाधिकारी व्यवसायिक निति और प्रतिस्पर्द्धा उन्हें बार - बार विवादों में भी धकेलती रही है | 16 साल तक अरबपतियों की सूचि में नंबर वन रह चुके बिल गेट्स अपनी कामयाबी के सूत्र इस तरह बताते हैं |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दुनिया बदलो या घर बेठो :::::</span>:</div><div style="text-align: left;"> क्या आपमें है कुछ कर गुजरने की तमन्ना ? क्या आपके पास है कोई मकसद , कोई विजन , कोई आइडिया , कोई इनोवेशन ? यदि कोई ऐसा लक्ष्य नहीं है , तो अपने घर बैठिये और अगर आपका जवाब हाँ में है तो अपनी योग्यता को आंकिये और अपने काम में जुट जाइये |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">रस्ते खुद बनाओ ::::::::</span></div><div style="text-align: left;"> आज जो भी रास्तें हैं , वे हमेशा से नहीं थे | किसी न किसी ने तो उन्हें बनाया ही है | नये रस्ते बनाने की कोशिश पर हो सकता की लोग आपको सनकी कहें , पर आप डिगे नहीं | जब मैनें हर डेस्क पर और हर घर में कम्प्यूटर की कल्पना की , तब किसी को इस बात की कल्पना नहीं थी | मुझे भरोसा था की कम्प्यूटर हम सबकी जिंदगी को बदलकर रख देगा |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">उसूलों पर डेट रहो :::::::</span></div><div style="text-align: left;"> कभी भी अपने सिद्धांत से न हटें | याद रखिये सभी लोग केवल धन के लिए काम नहीं करते | मेरे साथ जितने भी लोगों ने काम शुरू किया था वे सभी जानते थे कि वे धन कमानें के लिए नहीं बल्कि लोगों कि जिंदगी बेहतर बनाने के लिए काम कर रहें हैं | हम टेक्नलोजी कि मदद से लोगों के जीवन को आसान बनाना चाहते थे , और वह हमने कर दिखया | यह धन कमानें से ज्यादा बड़ा काम है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हमेशा आगे कि सोचो :::::::</span>:</div><div style="text-align: left;"> दुनियां तेज़ी से बदल रही है | अगर आप आगे कि नहीं सोच सकते , तो पिछड़ जायेंगें | आपको संभलने का वक़्त भी नहीं मिल पायेगा | आपको खेल में आगे आने के लिए और यहाँ तक कि खेल में बनें रहने के लिए आगे कि बातें सोचनी होंगी | इसके लिए कड़ी मेहनत के साथ ही बाज़ार कि जरूरतें क्या - क्या रहेंगीं , यह जानना आवश्यक है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सही लोगों को साथ लें ::::::::</span></div><div style="text-align: left;"> कोई भी प्रतिभा किसी कार्य को सही अंजाम तभी दे सकती है , जब उसे सही लोगों का साथ मिले | अगर आपमें बहुत प्रतिभा है , लेकिन सहकर्मी और नियोक्ता आपका साथ न दें तो नतीजा क्या होगा ? ऊँचें लक्ष्य को लेकर सर्वश्रेष्ठ योग्यता से काम करने वाले लोग ही कामयाबी पा सकते हैं | अगर मेरे साथ पल एलेन और स्टीव बालमेर जैसे प्रतिभाशाली और विलक्षण मित्र तथा सहकर्मी नहीं होते , जो मेरी कमियों को दूर कर देते थे तो आज मैं इस जगह नहीं पहुंच पाता |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सिस्टम बनाएं ::::::::</span></div><div style="text-align: left;"> कोई भी काम करने के लिए एक सिस्टम जरूरी है जिससे कि सारे काम आसानी से हो सकें | यह सिस्टम माइक्रो या मेक्रो हो सकता है जरूरी नहीं कि हम ही सिस्टम बनाएं , आप कोई भी अच्छा सिस्टम बना सकतें हैं , पर यह ध्यान रखिये कि कहीं ये सिस्टम अनुत्पादकता को तो नहीं बढ़ा रहा ?</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">समस्याओं को टुकड़ों में हल करो :::::</span></div><div style="text-align: left;"> किसी भी समस्या को दूर करने के लिए बारीकी से समझना जरूरी है | हो सकता है कि वह समस्या एक झटके में न दूर हो सके , ऐसे में उसे टुकड़ों में बात कर हल किया जा सकता है | इस तरीके से बड़ी से बड़ी और तात्कालिक समस्याओं से भी पार पाया जा सकता है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">नाकामी को भी मत भूलो :::::::</span></div><div style="text-align: left;"> अपनी हर कामयाबी का जश्न जरुर मनाओ , जिससे आपको अपनी कामयाबी पर नाज़ हो और आप हर कामयाबी को पाना चाहें , लेकिन कभी भी अपनी नाकामी को भी मत भूलो | अपनी नाकामियों से सबक सीखो और उसे दोहरानें से हमेशा बचो |</div></div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-37141496174931733872011-04-14T04:21:00.000-07:002011-04-14T04:21:41.215-07:00संघर्ष और साधना का नाम भैरप्पा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><img src="data:image/jpg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wCEAAkGBhAREBUUEBQUFRUVFBQVFRQXFRQPFRQVFBUVFRQVFBQXHCYeFxkjGRQUHy8gIycpLCwsFR4xNTAqNSYrLCkBCQoKDgwOGg8PGiwgHxwpKSwpKSkpLCkpKSkpLCwpKSwpLCkpKSksKSksLCkpKSksLCkpKSwpKSksKSksKSksKf/AABEIALoA8AMBIgACEQEDEQH/xAAbAAABBQEBAAAAAAAAAAAAAAAAAQMEBQYCB//EAD0QAAEDAQYEBAMGBQIHAAAAAAEAAhEDBAUSITFBBlFhcSKBkbETMqEHQlLB0fAUM3KS4RVDIyQ0U2KCsv/EABoBAQADAQEBAAAAAAAAAAAAAAABAgMEBQb/xAAkEQACAgICAgIDAQEAAAAAAAAAAQIDERIhMQRBIjIFE2FxUf/aAAwDAQACEQMRAD8A8QSFKkKgqCEIQkEIQgBCVIgBCVIhAJUIQAhCAEAIhWNhuSpU2y9Fe2HheHgkCJ0OeyzlZGJvXROzpGUdShcQt27hMEbHU6R7KHV4UnXw9dRrzVFdFmk/Fsj2jHoVtePD9WmZAJHTM+g2VUQtk0+jlaa7EQlQpIEQhKgEKEFCEghCRCRUIQgFQUIKFREJUIBEqEIAQhCAEIQgBCEIDulTxGFsLo4baGh2cnnEeSz/AA7Zw+u1pXqlaxhgb0AXNfNx4R2eNWpy5KqhYIMBaSw3DDMbhIjWc1V0H+JX1lvCWBs6LzZybPf11ilEg/woz5Sm6ljH+FYDNM12Qs8s1yiktF2bNMdP0WS4k4e8JeIDmiToJH5ler2uxtFCT8wgz0kCFScU3L8SxPe1slrXEjeBnkuum15weP5UIv5I8TKEpSL1DxwQhCAQoQUISCEIQkEIQgOkhSpEKghCEAIQhACEIQAhCEAJUiVAXXCFdrLWwu0MjzjJem2+tiZlsvJ7jpA1gXTDfEY1yIXo1W2h9IYPPYyea5L1lnoeLFpKX9OcZkEKbZHFU9tvEUiAeUpinxk6YDQQOQntK5dG+j15XxhwzfWczC5tLNVnbDxWHbJbdxkGDrvzWX65ZwN1jJobS93wwM8x6CZVBxzepp3bDTBe8s1IJB175KMPtBJaAafhJyJBHcAqBx3UbVsTHAkYX4g0DLOGyStaoOM1scd0t63r6POEJUi9U8QEIQgApEFIhKFQkSoSCEIQHSQpUIVEQhCAEIQgBCEIAQhCAEqEIC04crhtcA6PGH2I9lrnF1EvEjNwEa5a+Sw12NeazPh/NiBHLIzn0WzvOsxxEETGgGhGocei5rovOT1PDsWmr9E1lhFbxHMp6y3MKbpY0zBGgMg7fVRrpqeHPmtNY7W1reoXHKTj0eqoRms4Kyw3UW1W+EN57mFa3hwwyqcTGgktzacpI5FV1a9Gh0vJBDgQBOitqHEVN7cNMnHqCJJkSdNgs3vnJZqOMFVZLmABY6nA2Bb8vZUPHtT4VnbSH3nj0An9FuP9RbWpy4DEBroV5v8AaHU8dNsjRxjcaAT+9lrTmViycvlfCpmPSJUL1D54RCEqA5KEpSISCEIQkEIQhB0hCChAiEIQCpEIQCoQhACEIQAhCvLg4ddWio/KmD5vjYdOqlLLwiG8LJe8F3BhZ8aoM3CGDk3n5ru/rBgeHMGpk+y1VLDAjSIH6KPeVkxM0ldTpTjqc8L5QnsUN3VIcfqrnHAB23WYtBNJ4Ox3/VT7FbZdhe4RsvGupcXyfUeN5MbI8Fo+8mkQKbnjYxl6lTLrvD4Z8NneAdYAJ9NYTIoMjM5KTY7GwGWvPYlc7xg7Gh2jVaXuLflOfYnUR3Xl3Ftr+JbKhGgIb/aIP1lbPiW+xQDnNIkiANy7YwvNXOJJJzJzPcrp8aHOx5f5C1YUBEIQu08gEIQgEKRKUiEgkSoQkEIQgO0hSoKFRELplMkwAT2zU2jclV2sN7n8lGUiUmyAhXLbgG7/AEH6rsXPRGpcfMBRsidWUaFp6Fz2Y7Gf6inf9As5Gjv7io3ROjMmpNhu+pWdhptJP0HUnZaSlwlSeYaXjzBj6LWXXdNOgwMYO53J5krSC2Mpy14M/dXBlJkGt43ctGj9VfPpgAAZAaAZR5KybZ50C7bYTtrtOy6oxx0cspZ7K+yk7jLYqWHELm0BzPmHY7E99lBqWuqP9sf3n9FqkzLKOrxuRtZpjInbaVirXZalB+F0gjQ9Fpn35aW6UQOpfI9lV1bwNSpFqAwu3aACzqOazsq/Yv6b03/qf8CyW6s6GsMyu7dbqtMAB/iPIbTCeuu6n0y4ggjE1rXDRzXT4mn0URtgqVXl4EjE5pGmHAYXnU1KVuJLo9vyPIlGhSi/t0V14XK+sz4rCXPHzMzJI5t/RZ1emWOi5pblDpy81h+Jm0ha6oo/Li7AO+8B0xSuy2CjyjyITcnhlWkSpFgbAhCQlAIShCELAhIhCBUJEqA7UiyWF1Q5ZDcpy7bEKjvFoMz+iusLWiBkBoqSljgtGOeWM0/h0RDddzuU+KuIKK/VSaQyVcFkxslcFi4cIKdouzz2UkD1noO107qxswxODQcz+yVEdWMKz4asxDTWfq/wt6NH6n2CmEHORFk1XEuLLZ8GWwzlTaIHJMh0xG/5J8L0VFI81yb7B1aE9Rt4BhxyPp/hMsZJjnko1ahq06jMfmtEkZtk69abmRUHynJ41B5Erhl2ucMdE4mnVpObenVcXLbw8GjU3GHPlsubiq1KNd1NxynDHsVb0V9kk0AWEYCHRvpKpbZceMQ6mehbqOxC3NSkCZ9U2aPJUUy2phLvsNrs5inFRkz8N4w+h2Kfs9Ute9pYWlzsWEjMF2uehznMLa1KII/eqzVdp/jaeL8WH1aSPqAo1jJ7ey6slGOueC1u6xNM4h4gIHLMe6xHG/C+Om600h42GKzRuBl8QDnzXpbQqauWiq5r/lqAtcOuh9QQqa7JolS1eTwxCk3nYjRrVKZ1Y9zfQ5fRRlxHcIuUpKRCwIQhACEIQAhCEBe3M2GE8z7KVUTV3CKYTlZ6y9mi6GYUmhooykWc5KWRHsarDxJtr4cAnrSM1De7OUQZOfUyw7kgDzMLX0MOg0aIA7ZSsRRqzVpf1j6LWPe5s9QPzXVQuGcnkPLRbWXMDsn3FM2VsAdgpLKWKV0+zm9HFOpBHdPWynDvQtPMclFqMI1UmzWhr2/DfkR8rvyWhQpb1oGnUD25RB8j+il2i0l1am/8TB6t1Tt8WKoWgAZhpHoZ9lV1LZ/LH4JdPQ5QrdlDfWapjYCOSV+QWZ4bv3E7BhOEzDtsuav7RUWTi0zRPKFpOjI6HQ8lS8Q0sLm1N2Oa49Q0yCPKQtA1gIChXxYMdIgZkZjtuET5DXBOJgyND+wVQ38yKh6tDx/65O+nsrO6a+Ogw/8AiGnu3wkfRRr+pRTD/wDtnPqw5FIvDEllHlnHVm/5htUDKqwE/wBbfC78j5rMOK3PFd32g1W2eq1jAMFQOJxBoqNmXPGURExyWIrMhxC4puLk9TvrTUVk4QkSqhqIlSIQAhKkQCoQkQGnoCAByELirqnKei4e1ZI0Y2E9ZimU/ZG7qX0Vj2JalBJUu15yoQKIS7OPj4KlN34XNPoc1uq7Q7CQcj9ZKwNupwB5rYXTIZSaZOFoM+QMfVdVL7RyXLpmmZkpNidmesKI0pwGNFujnZZOswKi17FTGbnQnaDpCSpZWuOYkrRFGcU73a3wzijQ7rOXxQmqQ3JrgD2G49ZWpFnYMob2AlZa/bU51bDTEBoAmN9T7rSPfBnLrktuH20xJJGWUb59FdMrY3eELBU7tky9ziTsDCuLDZcBBZOIH8RgdyplEJm1ZklcVU2W0VxmXNcNxEK0p1wQudrBqnkprmtDqdWvZ3HIkVW+Rh0erT5lXLmBzS12YIIPYqqrPY22McN6bw7tlHsFIrESC067dUxkZKfia7rX8Ki+k3E7+HdQccpOAOpgwd8DgvJb3sNSk8NqscwkAw4EL3R1ch4EmMzG09FhftcoeGzvGgNVp88Dh7OXLKpRWTsruy9TzhCRCzNxUJEIBUJEIBUJEIDUUdE08rumck1KzRdgSpVmGShuU2gMkYj2MV3eJMhoCWufH5FNlSirZFvA6ea2XDlZlZgMwQ0Bw6tgLK17rrVGY2scWNGbtBtlO5VxwiwsaScvEQexA/NbV9mFvRsKZTrjkmKeeuy7q1YXVHs5GPULwLNRI+q6/wBbAPyzORVeLK57oJ/JSPjUKOpBK2wjLLLmg5jxia05bHwrK3uMFd4yAMHMiBInJOXzbhVs7nU6hYaZBLAYxNOU+UrPPayodXVHc845eitBMrJotrPb6TTm4HzVtSvGkRkQs6y6aJbLi0HkSWnyOi7bcTPuVQ098Q9lZohM17La0NxN8XKM5UW02qpiplzHhuI4g3WIyMaqvuujWpAtFWiWkgzBxDsryxONIElxqF0RAn67KjWCeWNWa7W1XYmPJ6EZgcj9VOezAWTokumnVZW+M0BpjTZ3KR+9U8awqEscIdy5ToeyzcuTRR4GbQM5B+Uj0Kxn2suPw7MNiap8wGAe5WrBLawY77zS2ee4WO+1ip/0zeTap9SwD/5Kyu+prT9jz5CELkO8EIQgBCRKgBCEIQaRqaJCUlNbrNF2zrdT2nJQKfzBTUZMSFW+YeamXW1nxqfxBLcQkc+ih1tu67a+DI2z7KfRX2eh3lYwQWNMggYGAQz5TLctDmFjLuD6b3sILTpBG4K2fCt8muwguGLDBcfCKcaYRuSqK3WYts9R5/3Hkyf5hwGcuQVq56vBSytSX+FhZ7ZLeoT7gD4nFU11VpYM5ka6Spr6eIgbbruh2cEie200TkH9wAfdSm2SiG4jgA6iSq2pUZTbMZ7DmotC2VnOALiA45NEDznWFss+jNot3Ms7mEMbiDgWzhwiSIGcLM07BWglkZbeE+y01lpl7gXPJIOhmA0awNOkm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/> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वर्ष 2010 के लिए सरस्वती सम्मान से विभूषित कन्नड़ साहित्यकार भैरप्पा ने जिंदगी के कई रूप देखे | उनके लेखन में इन कठिन अनुभवों के साथ उनके गहन अध्ययन का आधार दिखाई देता है |</span></div></div><div style="text-align: left;">कन्नड़ के प्रसिद्ध साहित्यकार संथेशिवारा लिंग्नय्या भैरप्पा को उनके चर्चित उपन्यास ' मंद्र ' के लिए वर्ष 2010 का सरस्वती सम्मान प्रदान किया गया था | भैरप्पा का नाम आधुनिक कन्नड़ - साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों में शुमार है | वास्तविकता यह है की आज वे कन्नड़ भाषा व् साहित्य की परिधि को लाँघ कर न सिर्फ अखिल भारतीय स्तर पर मान्य हो चुकें हैं बल्कि अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी पर्याप्त चर्चा हुई है | उनकी कृतियाँ लगभग सभी प्रमुख भाषाओँ के आलावा अंग्रेजी समेत कई विदेशी भाषाओँ में अनुदित हो चुकी है | हिंदी में तो उनके लगभग सभी उपन्यासों का अनुवाद उपलब्ध है | शिवराम कारंत के बाद यू . आर . अनंतमूर्ति के आलावा भैरप्पा संभवत : अकेले एसे उपन्यासकार है जिन्हें हिंदी पाठकों के बीच काफी लोकप्रियता मिली है |</div><div style="text-align: left;"> भैरप्पा के अभी तक 22 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं उनकी आलोचना - चिंतन की दो पुस्तकें छप चुकीं हैं | इसके आलावा उनकी आत्मकथा <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' भित्ति '</span> भी प्रकाशित हो चुकी है इनसे अलग भी उन्होनें काफी कुछ लिखा है | लेकिन ये एक निर्विवाद तथ्य है की उन्हें व्यापक स्वीकृति एक उपन्यासकार के रूप में ही मिली है | उनका पहला उपन्यास है<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' भीमकाय </span>' जो 1959 में छपा था , जबकि उनका नवीनतम उपन्यास<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' आवरण </span>' 2010 में सबके सामने आया | इनके जिन उपन्यासों की विशेष चर्चा होती है , उनमें धर्मश्री, गृहभंग , वंशवृक्ष , दाटू ( उन्लंघन ) , पर्व तब्ब्ली ( गोधुली ) , तंतु साक्षी , सार्थ अदि शामिल हैं |</div><div style="text-align: left;"> भैरप्पा के उपन्यास जिन प्रश्नों से टकराते नज़र आते हैं उनमें धर्म , लोकाचार , सनातनता , जाति, जीवन की सार्थकता जैसे मुद्दे प्रमुख हैं |<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' गृहभंग '</span> में कथा के स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से कोई पुर्वनियोजन किये बिना उन्होनें समाज और परिवार का चित्रण किया है |<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' वंशवृक्ष '</span> में उन्होनें सनातन धर्म के मूल्यों की सार्थकता पर विचार किया है | इससे पूर्व<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' गोधूलि '</span> में उन्होनें पूर्व और पश्चिम की सांस्कृतिक मूल्यों की टकराहट पर कलम चलाई थी |<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' दाटू '</span> में उन्होनें जाति व्यवस्था की उलझनों पर रोशनी डाली है |</div><div style="text-align: left;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' पर्व ' </span>में उन्होंने महाभारत में कथासूत्र को लेकर आधुनिक सन्दर्भों में उसकी विवेचना की है | उनके साहित्य में जिस चीज़ पर सबसे पहले ध्यान जाता है वह है परम्परा और शास्त्रों के प्रति उनका प्रश्नाकुल लगाव और आधुनिकता के प्रति उनकी आलोचनात्मक दृष्टि | परम्परा और आधुनिकता के बीच के संघर्ष का चित्रण उनके साहित्य को समझने का मुख्य सूत्र हो सकता है | उनके प्राय सभी उपन्यासों में इस विशेषता का समावेश देखा जा सकता है | वे आधुनिक होने के लिए परम्परा को खरिज करने के विचार से परहेज करते हैं | वास्तव में वे परम्परागत मूल्यों का वर्तमान के संदर्भ में प्रत्याख्यान करते हैं | यही उनकी रचनाशीलता का उलेखनीय पक्ष है जो उन्हें महत्वपूर्ण साबित करने के साथ - साथ विवादास्पद भी बनाता है |<br />
उनका समूचा साहित्य व्यक्तिगत अनुभवों और व्यापक अध्ययन की बुनियाद पर खड़ा है | उनका जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ | 1934 में पुराने मैसूर राज्य के एक मामूली गाँव में जन्में भैरप्पा महज 11 साल की उम्र में अनाथ हो गये थे | इस कारण शुरू से ही उन्हें दो जून के भोजन के इंतजाम के लिए भटकना पड़ा | छोटे - मोटे काम करते हुए उनहोंने किसी तरह पढाई जारी रखी | मक्सिम गोर्की और वैकम मोहम्मद बशीर की तरह उन्होंने भी खुद को बचाए रखने के लिए बेहिसाब पापड़ बेले | उन्होंने बांबे सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर कुली का काम किया , तांगा चलाया ,रेस्टोरेंट में वेटर का काम किया , सिनेमाघर में गेटकीपर का काम किया ,मेले में शर्बत की दुकान खोली और घूम - घूम कर अगरबतियाँ बेचीं | इस तरह उनके जीवन का खाता संघर्षों के अनगिनत प्रसंगों से भरा हुआ है | मगर इसका दूसरा पक्ष भी है संघर्षों के बीच भी उन्होंने जमकर अध्ययन भी किया नतीजतन उन्हें मैसूर में अध्यापकी का काम मिला | बाद में वे एन . सी . ई . आर टी , दिल्ली में शिक्षा अधिकारी भी बने | उन्होंने दर्शनशास्त्र के साथ - साथ कला , संगीत और सोंदर्यशास्त्र का विशद अध्ययन किया है , जिसका प्रभाव उनकी कृतियों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है |<br />
उनके एक शुरुवाती उपन्यास ' धर्मश्री ' ( 1960 ) की कथाभूमि में संगीत का परिवेश वर्णित है , तो 2002 में प्रकाशित ' मंद्र ' में भी संगीत की मौजूदगी है | सरस्वती सम्मान से सम्मानित ' मंद्र ' में भैरप्पा ने एक बार फिर मूल्य और नैतिकता के प्रश्नों को उठाया है | अपनी छात्रा के प्रति एक शिक्षक का आकर्षण और छात्रा का अपने पति के प्रति नैतिकता के द्वन्द को लेकर रचे गये इस उपन्यास में कला बनाम नैतिकता का पुरातन प्रश्न मुखर हो उठा है |<br />
साहित्य के संदर्भ में एक चीज़ की अक्सर चर्चा होती है वह है ' पोलिटिकली करेक्ट ' होने का प्रश्न | भैरप्पा के सन्दर्भ में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है | भैरप्पा ने गलत कहे जाने का जोखिम उठाकर भी अपनी बात कही है | उनका मानना है की साहित्य - सृजन सामूहिक काम नहीं होता | यह एक आन्दोलन भी नहीं है | प्रत्येक को अपनी भावना को और दृष्टिकोण के अनुसार अपने आप लिखने का काम करना चाहिए | इसलिए इसमें नेतृत्व करने का प्रश्न ही नहीं आता | साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि एक लेखक का अपने देखे हुए और अनुभूत जीवन के बारे में लिखना स्वाभाविक होता है | परन्तु लेखन जब सृजनशील होता है तब वह अपनी सीमा ही नहीं लांघता , बल्कि अपनी जाति , मत , वर्ग , लिंग , देश आदि का भेद भी लाँघ जाता है | </div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-60804400746583173662011-04-06T03:39:00.000-07:002011-04-06T03:39:32.987-07:00आल्ड्स हक्सले<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">d<img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSL5uCHcFuL279jgVXEdvDXH2X8nsJ9QEvwwwFD88IVIlKVuQE-" />अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार एवं आलोचक आल्ड्स हक्सले का जन्म 26 जुलाई 1894 को लन्दन के निकट स्थित , उपनगर सरे के एक उच्च माध्यम वर्गीय परिवार में हुआ | हक्सले के पिता लियोनार्ड हक्सले स्वयं भी एक कवी , संपादक एवं जीवनीकार थे | हक्सले की शिक्षा - दीक्षा ईटन कॉलेज बर्कशायर में हुई | 1908 से लेकर 1913 तक हक्सले बर्कशायर में ही थे | इस बीच हक्सले की माँ का देहांत हो गया | हक्सले जब 16 वर्ष के थे तभी उन्हें केराटीटिस पंकटाटा नाम की एक विचित्र बीमारी हो गई | जिसकी वजह से हक्सले पूरी तरह से अंधे हो गये | उनका ये अंधत्व लगभग 18 महीनें चला | गहन चिकित्सा के बाद उनकी आँखों में इतनी भर रौशनी लौटी की वे कुछ - कुछ पढ़ लिख सकें | इसी बीच उन्होंने अंधत्व की भाषा ( ब्रेल ) भी सीखी | कमजोर दृष्टि के बावजूद हक्सले ने 1913 - 15 के वर्षों में आक्सफोर्ड के बाल्योल कॉलेज से बी , ए पास किया | चाहा तो था हक्सले ने एक वैज्ञानिक बनना मगर फुट पड़ी भीतर से कविता | 1916 में उनकी पहली कविता - संग्रह प्रकाशित हुई | इसी क्रम में आगे के चार वर्षों में दो कविता संग्रह और प्रकाशित हुए | अगर आप लन्दन में स्थित डार्विन हाउस जाएँ तो वहां आपको टामस हेनरी हक्सले का एक चित्र टंगा दिखाई देगा | यह चित्र आल्ड्स हक्सले के बाबा का है जो डार्विन के सहकर्मी थे | इसी तरह हक्सले मैथ्यू आर्नोल्ड से भी संबंधित थे |तात्पर्य यह की आड्ल्स हक्सले साहित्यकार और वैज्ञानिक की वंश परम्परा में जन्मे अपनी तरह के बौधिक थे , जिनमें एक वैज्ञानिक , सत्यान्वेषी चिन्तक के गुण मौजूद थे | बीसवीं सदी के तीसरे दशक में वे ब्लम्स्बेरी सोसायटी नामक बौद्धिकों की एक टोली के सम्पर्क में आये | यहाँ उनका परिचय बट्रेंड रसेल से हुआ साथ ही मारिया नसि से भी मुलाकात हुई जिससे उनका विवाह हो गया और कुछ समय बाद वो एक पुत्र के पिता भी बनें , जिसका नाम रखा गया मैथु हक्सले | ब्लम्स्बेरी सोसाइटी के सदस्यों के बीच हक्सले के कविता -<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> संग्रह ' द बर्निग व्हील ' ( The Burning wheel )</span> की रचनाओं को खूब सराहा गया | हक्सले का पहला उपन्यास<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> ' प्वान्ट काउंटर प्वान्ट ' 1928 जबकि ' डू व्हाट यू विल ' 1929</span> में प्रकाशित हुआ |</div></div><div style="text-align: left;"> 1937 में हक्सले कैलिफोर्निया आ गये यह सोचकर की वहां का सुहावना मौसम उनकी आँखों के लिए कष्टकर होगा | यहाँ रहते हुए उन्होंने कई फिल्मों की पटकथाओं में संशोधन करने का बीड़ा उठाया | यह कार्य भी उन्होंने कुछ वर्ष ही किया | द्वितीय महायुद्ध के खत्म होते - होते हक्सले जिन अन्य तत्वदर्शी साधकों के संपर्क में आए उनमे एक नाम <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जे . कृष्णामूर्ति</span> का भी लिया जाता है | एक और जहां उनके उपन्यास <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">द ब्रेव न्यू वर्ल्ड </span>, जो उन्होंने बीते वर्षों में लिख कर छपवाया था , पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं यहाँ - वहां छप रही थीं , वहीँ दूसरी और उनकी रूचि मन के भीतर उठने वाली तरह - तरह की तरंगों का विवेचन कर उसके आधार पर निबंध लिखने की और भी हुई | उन्होंने चीत की सहजवृतियों के प्रसरण में उखाड - पछाड़ का जायजा लेने के लिए काफी समय तक मादक द्रव्यों का भी सहारा लिया | डोर्स आफ परसेप्शन नामक उनकी कृति कुछ एसे ही प्रयोगों का परिणाम जान पड़ती है | कृष्णामूर्ति को हम अधुना मूर्धन्य चिंतकों की श्रेणी में रखते हैं | उन्होंने बिना किसी शाश्त्रीय ग्रंथों के सहारा लिए सूत्र शैली में एसे रूपांतरणकारी व्याख्यान दिए हैं की उनका प्रभाव <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">राबर्ट पावेल एवं एडहर्ड </span>जैसे अमेरिकी गुरुओं पर भी देखा जा सकता है | इन्हीं कृष्णामूर्ति की सुप्रसिद्ध कृति<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> द फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडम </span>की भूमिका लिखने के लिए हक्सले ने उनके एक - एक शब्द को गंभीरता से पढ़ा और कहा की मनुष्य एक उभयधर्मी प्राणी है , वह एक साथ दो अलग - अलग तलों पर जीता है | एक तल पर वह ठोस पदार्थपरक दुनिया को सहता है और झेलता है और दूसरी ओर है उसका मनोजगत जहां वह तरह - तरह के प्रतीकों का सहारा लेता है | इन्हीं प्रतीकों के बल पर कला ओर विज्ञानं की दुनियां में तरह - तरह की हलचल होती रहती है , जो अन्तः व्यवहारपरक दुनिया में आस्फलित होता है | कृष्ण मूर्ति कहा करते थे कि <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">हर महत्वकांक्षा समाज विरोधी होती है ओर यदि आदमी सचमुच चाहता है कि समाज में क्लेश न हो तो उसे धर्मगुरुओं से बचना चाहिए , क्युकी सबका अपना - अपना ईश्वर है |</span><br />
इस ईश्वर पर आस्था रखने वाले एक सार्वजानिक व्यवस्था से बंधे हुए समाज में उपद्रव फेलातें हैं | एक तरह कि आस्था वाले , दूसरी तरह के आस्था वालों से घोर शत्रुता वाला व्यव्हार करतें हैं | इसी विचार से उत्प्रेरित होकर हक्सले ने लिखा , <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">सभी तरह के ईश्वर घरेलु उत्पाद यानि होम मेड हैं | शुरू में इन्हें हम ( पुतलियों कि तरह ) डोर खींच कर नचाते हैं सिर्फ इसलिए कि एक दिन हमे ही नचाया जा सके | </span>एक अन्य निबंध में हक्सले लिखते हैं , बोद्धिक मनन , चिन्तन , यौन - तृप्ति से कहीं अधिक मूल्यवान होता | हलांकि इसी के साथ हक्सले यह भी कहा करते थे कि एक खराब कृति भी उतना ही श्रम मांगती है जितना कि एक अच्छी कृति | वह भी लेखक कि आत्मा से उतनी ही गंभीरता के साथ प्रस्फुटित होती है जितना कि एक अच्छी कृति | हक्सले के अनुसार <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">लोकतान्त्रिक शासन - व्यवस्था तभी सफल हो सकती है , जब एक तानाशाह उसे पूरी तरह समर्पित , विश्वासपात्र नौकरशाही के माध्यम से पूरी क्रूरता के साथ चलाए | </span>1961 में हक्सले का घर आग से पूरी तरह राख़ हो गया | विवादस्पद बौद्धिक हक्सले , इस दुर्घटना के बाद लॉस एंजिल्स के अस्पताल में भर्ती हुए | उन्हें केंसर हो चूका था | 22 नवम्बर 1963 को हक्सले ने दम तोड़ दिया | इसी दिन डैलस में कैनेडी कि भी हत्या हुई | </div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-86751516056419028712011-03-31T23:53:00.000-07:002011-03-31T23:53:40.189-07:00महादेवी वर्मा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSIfCVJzcXdv88efXCWra9szkIB35loZ3FFItgYqk7iLFgjPQJFxg" />आज के नारी उत्थान के युग में महादेवी जी ने न केवल साहित्य सृजन के माध्यम से अपितु नारी कल्याण सम्बन्धी अनेकों संस्थाओं को जन्म एवं प्रश्रय देकर इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है | महादेवी जी , जहां एक श्रेष्ठ कवयित्री थीं वहीँ मौलिक गद्यकार भी |</div></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">जीवन परिचय </span>____ महादेवी जी का जन्म फरुर्खाबाद में सन 1907 ईस्वी में हुआ था | इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा इंदौर के एक कालेज में प्रोफ़ेसर थे | महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा का श्री गणेश यहीं से हुआ था | इनकी माता हेमरानी एक भक्त एवं विदुषी महिला थी | इनकी भक्ति भावना का प्रभाव महादेवी वर्मा पर भी पड़ा | छटी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 1920 ईस्वी में प्रयाग में मिडिल पास किया | इसके चार साल बाद हाई स्कुल और 1926 ईस्वी में दर्शन विषय लेकर इन्होने एम. ए. की परीक्षा पास की एम . ए पास करने के पश्चात् महादेवी वर्मा जी ' प्रयाग महिला विद्या पीठ ' में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त हुई और मृत्युपर्यंत इसी पद पर कार्य करती रहीं | अपनी साहित्यिक एवं सामाजिक सेवाओं के कारण ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या भी मनोनीत की गई | 11 सितम्बर 1987 ईस्वी को इलाहाबाद में इनका देहांत हुआ |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">रचनाएँ </span>__ महादेवी जी प्रसिद्धि विशेषत: कवित्री के रूप में हैं परन्तु ये मौलिक गद्यकार भी हैं | इन्होनें बड़ा चिन्तन पूर्ण , परिष्कृत गद्य लिखा हैं | महादेवी जी की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं :</div><div style="text-align: left;">निहार , रश्मि , नीरजा , सांध्य गीत और दीपशिखा |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">यामा</span> पर इन्हें <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' भारतीय ज्ञानपीठ '</span> पुरस्कार प्राप्त हुआ था |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रमुख गद्य रचनाएँ</span> __ ( 1 ) पथ के साथी , ( 2 ) अतीत के चलचित्र , ( 3 ) स्मृति की रेखाएं , ( 4 ) श्रृंखला की कड़ियाँ |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">साहित्यिक विशेषताएं ___</span> महादेवी वर्मा की काव्य - रचना के पीछे एक ओर स्वाधीनता आन्दोलन की प्रेरणा है , तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है | यही कारण है की उनके काव्य में जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना की अभिव्यक्ति है और दुःख की अनुभूति के साथ करुणा के बोध की भी | दुसरे छायावादी कवियों की तरह महादेवी वर्मा के गीतों में भी प्रक्रति सोंदर्य के अनेक प्रकार के अनुभवों की व्यंजना हुई है महादेवी वर्मा के गीतों में भक्तिकाल के गीतों की प्रतिध्वनी है और लोक गीतों की अनुगूँज भी , लेकिन इन दोनों के साथ ही उनके गीतों में आधुनिक बौद्धिक मानव के द्वंदों की अभिव्यक्ति ही प्रमुख है |</div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> विषय की दृष्टि से महादेवी जी की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है __ ( 1 ) विचारात्मक एवं विवेचना प्रधान , ( 2 ) पीड़ा , क्रंदन , अंतसंघर्ष , सहानुभूति एवं संवेदना प्रधान | ' श्रृंखला की कड़ियाँ ' तथा ' महादेवी का विवेचनात्मक गद्य ' इनकी विवेचना प्रधान रचनाएँ हैं | कहना न होगा की महादेवी जी के घरेलू जीवन में दुख ही दुख था | इन्हीं दुख क्लेश और आभाओं की काली छाया ने इनके साहित्य में करुणा , क्रंदन एवं संवेदना को भर दिया | वही भावनाएं गद्य में भी साकार रूप से मिलती है | जहां तक विवेचनात्मक गद्य का सम्बन्ध है , वह इनके विचारपूर्ण क्षणों की देन है यहाँ इन्होंनें लिखा है __<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> " विचार के क्षणों में मुझे गद्य लिखना अधिक अच्छा लगता है | अपनी अनुभूति ही नहीं , बाहय परिस्थितियों के विश्लेषण के लिए भी पर्याप्त अवकाश रहता है | "</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">काव्यगत विशेषताएं </span>___ महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है उनके काव्य में रहस्यानुभूति का रमणीय प्रतिफलन हुआ है | महादेवी के प्रणय का आलंबन अलौकिक प्रियतम है | वह सगुण होते हुए भी साकार नहीं है | वह कहती हैं _____<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" मुस्कुराता संकेत भरा नभ ,</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अलि क्या प्रिय आने वाले हैं ? "</span><br />
कवित्री का अज्ञात प्रियतम इतना आकर्षक है की मन उससे मिलने को आतुर हो जाता है | निम्नांकित में ललकती कामना का प्रभावशाली प्रकाशन हुआ है ___<br />
<div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">"</span> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तुम्हें बांध पाती सपने में |</span></div><div style="margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">तो चिर जीवन - प्यास बुझा</span></div><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">लेती उस छोटे क्षण अपने में |"</span><br />
कवयित्री के स्वप्न का मूक - मिलन भी इतना मादक और मधुर था कि जागृतावस्था में भी वह रोमांचित होती रही हैं ______<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" कैसे कहती हो सपना है</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">अलि ! उस मूक मिलन कि बात</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भरे हुए अब तक फूलों में</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मेरे आंसूं उनके हास | "</span><br />
महादेवी वर्मा ने अपने जीवन को ' विरह का जलजात ' कहा है | ____<br />
<div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">विरह का जलजात जीवन , विरह का जलजात |</span></div><div style="text-align: left;">विरह की साधना में अपने स्वयं को जलाने की बात कहती हैं ___</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मधुर - मधुर मेरे दीपक जल , </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">प्रीतम का पथ आलोकित कर | '</span></div></div></div>उनके काव्य में वेदना - पीड़ा का मार्मिक चित्रण हुआ है | वे कहती हैं ___<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' मैं नीर भरी दुःख की बदली | '</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भाषा - शैली </span>____ महादेवी जी की भाषा , स्वच्छ , मधुर , संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त परिमार्जित कड़ी बोली हैं | शब्द चयन उपयुक्त तथा वाक्यविन्यास मधुर तथा सार्थक हैं | महादेवी जी का तीक्ष्ण व्यंग हृदय में व्याकुलता उत्पन्न कर देने वाला है मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा के सोंदर्य को और भी बड़ा दिया है | भाषा में सर्वत्र कविता की सी सरसता और तन्मयता है | महादेवी के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारन अत्यंत आकर्षक हैं | उनमें चित्रमयता और बिंबधर्मिता का चित्रण है | महादेवी जी ने नए बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगति की अभिव्यक्ति - शक्ति का न्य विकास किया है | उनकी काव्य - भाषा प्राय तत्सम शब्दों से निर्मित है |<br />
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</div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-65214989280762684092011-03-27T22:39:00.000-07:002011-03-27T22:39:26.116-07:00सुमित्रानंदन पंत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><img src="data:image/jpg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wBDAAkGBwgHBgkIBwgKCgkLDRYPDQwMDRsUFRAWIB0iIiAdHx8kKDQsJCYxJx8fLT0tMTU3Ojo6Iys/RD84QzQ5Ojf/2wBDAQoKCg0MDRoPDxo3JR8lNzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzf/wAARCACMAHMDASIAAhEBAxEB/8QAGwAAAgIDAQAAAAAAAAAAAAAABAUDBgACBwH/xAA6EAACAQMDAgQEAwYEBwAAAAABAgMABBEFEiExQQYTIlEUYXGBI0KhFTJSkbHRB3LB4SQzYnOCkrL/xAAZAQADAQEBAAAAAAAAAAAAAAABAgMEAAX/xAAhEQACAgMBAQADAQEAAAAAAAAAAQIRAxIhMUETIlEyYf/aAAwDAQACEQMRAD8AsNveRqg3OvT3ryW+hKkbl56c1EYrV0ykJ4qa202zncKYuScdelecekSyyKBuUjlRRGkW02oSFIj6QeX9qcWnhuxkixJGWHb1dPvTiwsYLGAQ2iKiA5I7k/OrQxO+kpZa8MstNgtYwCoZu5I60bkAYUAe1aBgOO/eo5blY+AMtitNJeGZ3Jk7HHtUMxjYYZQfqKCe7BchmT65yBW3xO/0hGI6ZxgVNtMZQaALnR7CUNtVoye6nikV3octs4kimLpnkYINWWPc86jadh++KKltdyELxz/OpPGn1FlNx4cy/YsdsM7pVI9mohHjjTMhdlHYtzV5udFhvYCGJU9nXgg1QdQ0G/tLx1e7fvtyOCKRwa9KRmpGsmmfFzG6hmaJCOhPtUsKvGoVrneo61kJntwEluFZemCKmktlkjysoz7Ckb+DG/lQj85/lWVAbef+IVlCgkEM8u3aV69OKd6UxkX0qoJOCc0puDbRTmIs4T3B6Uy0+GFI5XtZWxtyTnOKKXQMutqHSABAM14ZgHAOQw60j03WY0twGmVsDndwTWupazBJH+BMxbPKRAFj9+wrTukjP+NtjO61WKAud4yPT1/NSw6tJODHDG3uXY8E/SgLGxNxIZrxhtJ9MangffvTlYoh6UGBj71PaUimqiCWaTtdHzHwGyMKMADFPFgAw+Tg+/Pal64jfcAcmnFqwltA2MHuKfHEScvp7b2yRgvtAJ5qdPc9K9OfL9PtXi/u1ZKjO3ZumMYHSl2qWMV7CUkAB7NjoaPwdtDzBtmB1zmhJWuhi6do51qdjPa3TK6Y/hI6GoLZZjMN4wDV08Q2YubPKOVdeR86qkMIEhMl3tKflxWOUaZsjLZBp296yh/irfvcDP8AlNZQGE7uGvZSwzk9CO1N3u1trQLAirkYzjqayO3imuFLSgHocDrW+r24jt4UOGZ5FOPYc0TiCZXuY9hPpz/CO1T6fZCM5bnPTjGKMsbZhDuYDgVPbRlpC5OBiuoDZMikJjHArcE4GODXvmIwwjA4rd0QghiMe2eaehbI5ZdkZyeTTHRLxDbDkkZ9XypPqCjyAdpOB0xSG019tPlCzgmJ3x06f7UYyakCUdlR03qMqcjFeAgnGcE0l0rXbW5A8uUEZK4JwcjtimySo5B4GT07GtCkmZXFoIX2rSRAQa3U5HXmo2lA4PJpmKgKUBYmBAJAxVGv45Ir1isOVJ5xV+lVGBxVd1izPxBYOVLjOP61myrhpxSplXdPUfwT/KspoqYUB5DuHBrKz2Xsi06OGytmubqaOIYzulYKo+5qu+IPG2kCWNLe8SXyWy7ofT9sda5Zczazq9zIt0Z7y5ifYY2yVTHy6Cvbm0v7a3QXQt97NhYI41LgdcnA6fetiwpcbIflb8R2bTPFdpNagtMqb0yC/AI9+aqur/4g3MiyDSESKBHKG7nPDH/pUdaoWg6Bf+JNRFnpSkEqXYyHaiAdc46Vte6RfWMMtpdJ+LZymNkU8DcMg/MEDg0Viin0CyN/B43i7XNzCPWpiWPDQ2ybT+uaU6l4l8S21wN2uXr5GVYS4/ShdM069mJ8reOMKVHPXtR82g6i0NtPqMTqjXkcQD/m3H2+1VqCA7aB5PFetz2yhtW1Fpy3q9Xo2/1zUEMusXWWnmnkjLZJkkIz+tXIeBtRE0kkjxywBiVXGGUZ6Cn9h4YiWMBohtxnlcmpvJBeDRxt+soWknXIb1JoppJSM+tWOQPnXS/Dvja5a4itp97bvSUlXDq3ypj4b06H/i4Y4/xBtZQMAlflUqaLaWzs1ta+WzHLuT6z9BUpT27RRRS4y3afqYuSAGPOcUykyWBHekHhzTZbZBLcgbydwUdR7fpT0eqXAPpXqaeDddITST4D3reUuVbnuMUG7rcq4IBlQ4waPnBkcE42DrSNCsbTuhO5mB3fOpzGh0DfYHIwo56E81lR3LgXEm9huzk8VlQosUS+sBo/ij4yEYtNTjKyL2WVecfcZ/nRUkOZo5sJjGf3elM59PlvLNorkxyLjBGOc+4PYj3oew0rUBcwwHV5Wty43CWBC5A5wG/TOKrtf07Wh54C8NQafp010yAT3jljxj0ZyBUfizwujvHqen2wmmRdl1b5H48Wc4HswPIq3LPBCoQOiADoT0oea/sVyWu4xzjhu9Vv6S7ZzOA+G7WZpYtSa2kBJ8mSB1lAP5du3k0YthqHiC8sne1nttItJfPElzGI5Z3A9IVeoXvk1aRrlo12wl8qSEnC3K8c+xPemD3Nu0TgkMGHOTmk2RToLbW6A4lkViOmTWt9LDHGyhgT19JxSDWdUgtJNkZward7q1xPzGTx7Uii2ElvfEb6LqiyQy42tlu/HtV80/xlp93Ekm6PzCBxyD/OuM39pLcyNNIGJz2qGGT4M+piqg885NaVjVcFbt9O6S+JIJc+W+QPbgUTa6sGj9bbFPQY5Ncv0u9RijxuvkgDA9zT2y1ERM00j4cklAecDNZ5bJh1TRffOLoRg725255wKGICgNtJZhgZPFLdPvVlGCCznkIvc/Oj4FchjKPsOmPrXXYNaFs0Cyys7uAxPINZRLxvvbGwjPU1lSpjUxBFdGH0lBz71s/44K7tp7Edj71ILeRiwQI20ZNGR2rIFBKKxxya6hjn3iVNclaW1jupWKgHdHwzKaK8IeB45EW6v1lLN+UyE1Z9cddO2Xbr5+B5bLH1GeaTW/jS68wQWOh3MuOgBwaupSapCNK7Lw9pZx2fwZjRYcY2EcVUtSivtNkKxFprU8IwHKj2NRXE3irUB5kWlC2GePOmAJphb6vcAJZazZTW0h4D7dyt9xStUFCCXSzqzLvcoRziiY9OS2jMTY47nrmrPd20SIs6rtkQZUr1x7Uhud1xJnGAf0pdn4MKGtjkgnr0pBq1gAu44GT2FXCZFjU8gADFINSZWjZV7CrYpOxZLhVYbtrBmGW8ojJA/L7mj7XxD50MMe4+aoCODx075pfqMRjQsw6gqR8jSewO2cDIGTjk81paTI7NM7Z4XuSsayvJgAepietW201CDUeI5T5KHAxxvP8AauN2l/LcJFbJKFXIBUnBPtV90b4q3RXa3d4UXhR0J96xzWpb0tRsmYk+YDmsoJNdjKjgD5GspP1F6L9GZhM6y90pjq9qWjjePptBNB2puA24W8Y4xndRlzcXbQhGWILjA9WaC8HYrlie6tGQDncGz8qE07wbIJmleQBm7hjmmjTSwwM7MhVRkhVxxmo4fF1rEXDABR0I6gU0GB/8H+m6ULRfW8kv/cbOK21Dy/LIc4BH0pSPFVrJGSsi/wDtSHUfFMDFl35Htinf8SAk7th1xc7EKs2RkgH3FLPPT1FSKQTazHIzAEge1Ri/MvoiHWgsT+jWGahfqSwBx9KAtrd7h9zZK5om30tncPKeM5p1BbJHGVCgD3NFyUVSOqyl+JbIJZbsY5NUZUZXDc4/1rp3iuMfAuMVQ7i1KRQ5U+oZb5cmtGJ3EjkiW7wHp8F1IJbp+VBCgnue5+QrqarYtpr29nIAfLJSQ9/7Z7VxXQbxoN0AGNzc/MHtXVvCt0buAC4hYOTkn3Hbio5k7seL/UXx6TdugaNiUPTrWVfPLQcAmsqNP+h2EK7hHhMt9a8JJbnPHapXglUlkgf/AMjipYradlDMI1BHA3c0obIEI4yu7P60tvPDml3DtJ8PJAzct5chUfypjdXD2OVLRNIeQnXH1NKL+/ublQJJFVf4VFFNoNCjUdE01Qy2VxOkijlvM3KKqV3Z3NtMFlIKkZBz1q5yp5MYQjljls/oMfrSnVIlF/aeYgVJUZTz0yeDV8c+gaFdrZRyYWUFH6g0whtGtXHoYjPXFSPZEKFDYKHIPuKNgkuo49hG9Pfb0oynYUkHWe58DGO/NMQgH74yDQVlC7MCWA7jByDRtxOmCHOAPasz9CJdftBdvFapn8Q5OP4RVQ1iwZplRFIGTx966NpVjI8fxEgO6WTjI6Ljigf2WTciSQAjcDz/AJqrHJpwDSZTvD89vpz+ZdW6nsS4znNWQeONTkmji0mxREJIXeOuPYUzl0mEbFMa7hKMDHXitLqyFlb28yIpw5yNuc5z/aulkjJgUWNYNX16SFHcQ7mGTiMn/WsrZNT2Iq7ozgddh/vWVPaQdR1Zs00UhDkkA9aXXNztHlxOSw/ePtUUk8kEYETFQ49WO9eiNUg9I52E5+1C7OoWvKrRF4ySeuX6e3TvWttEfKaaX1A+ot9OgrLpQmnyBeAAB/T+9STekRoCduDxXBAp48xvK5yW5B7n3pT4mtme3jkiGNpwAPlzTq59IKgcBjgVJPGksGHUEDP9RTRdOzhLpMxvrWGb8yNtkFHMrxklShH1qDwjCi+I9QtQPwcbtvzzR99bIkzAFsbumaM/9UCIZYW4MWQ+d3I9qAniM+ox24xsyGYj2FNNCUAMvJXGcGo7GNUvi4/eMp5+gpfAjgoYre3Reu2ghHthjZucoP8A6FM5hkgnr5RP6ihJT+JEO3pGPlmll6A0SNm2uwH/ADT35PHehNaHk6SJAuNrBvfjd/vR8jEEIMABiePpSLX7+aJorJVQxToA5K843Z4NcvTrHOk2EH7OgMyqZGXc3Huc1lTqxRFVegAxWUbOs//Z" /> सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तर प्रदेश के खुबसूरत आँचल के कौसानी गाँव में 20 मई सन 1900 में हुआ था | इनके जन्म के 6 घंटे पश्चात् ही इनके सर से माँ का साया सदा के लिए हट गया | और इनका पालन -पोषण उनकी दादी ने ही किया | इनका नाम गुसाई दत्त रखा गया | इनकी प्रारंभिक शिक्षा - दीक्षा अल्मोड़ा में ही हुई | 1918 में वे अपने मंझले भाई के साथ काशी आ गये वहां वे क्वींस कॉलेज में पढने लगे | वहां से मेट्रिक उतीर्ण करने के बाद वे म्योर कॉलेज इलाहबाद चले गये वहां इंटर तक अध्ययन किया | उन्हें अपना नाम पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने अपना नाम बदल कर सुमित्रानंदन पंत रख लिया | 1919 में गाँधी जी के एक भाषण से प्रभावित होकर बिना परीक्षा दिए ही अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रीय हो गये | उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और स्वतंत्र रूप से बंगाली , अंग्रेजी तथा संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया |</div></div><div style="text-align: left;"> प्रकृति की गोद , पर्वतीय सुरम्य वन स्थली में जन्मे और पले होने की वजह से उन्हें प्रकृति से बेहद प्यार था | बचपन से ही वो सुन्दर रचनाएँ लिखा करते थे | सन 1907 से 1918 के काल के स्वयं कवि ने अपने कवि जीवन का प्रथम चरण माना है | इस काल की कवितायेँ वीणा में संकलित हैं | सन 1922 उच्छ्वास और सन 1928 में पल्लव का प्रकाशन हुआ | सन साहित्य और रविन्द्र साहित्य का इन पर बड़ा प्रभाव था | पंत जी का प्रारंभिक काव्य इन्ही साहित्यिकों से प्रभावित था | सुमित्रानंदन पंत जी 1938 ईसवी में कालाकांकर से प्रकाशित ' रूपाभ ' नामक पत्र के संस्थापक भी रहे | सुमित्रानंदन पंत जी की कुछ अन्य काव्य कृतिया हैं ___ ग्रंथि , गुंजन , ग्राम्या , युगांत , स्वर्ण - किरण , स्वर्ण - धूलि , कला और बुढा चाँद , लोकायतन , निदेबरा , सत्यकाम आदि | उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई | जिनमें कवितायेँ , पद्य - नाटक और निबंध शामिल हैं | सुमित्रानंदन पंत जी आकाशवाणी केंद्र प्रयाग में हिंदी विभाग के अधिकारी भी रह चुकें हैं | पंत जी जीवन भर अविवाहित ही रहे | हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य है की सरस्वती का वरद पुत्र 28 दिसम्बर 1977 की मध्य रात्रि में इस मृत्युलोक को छोड़ कर स्वर्गवासी हो गये |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">साहित्यिक विशेषताएं </span>_______ प्राकृतिक सौंदर्य के साथ पंत जी मानव सौंदर्य के भी कुशल चितेरे थे | छाया - वादी दौर के उनके काव्य में रोमानी दृष्टि से मानवीय सौंदर्य का चित्रण है , तो प्रगतिवादी दौर में ग्रामीण जीवन के मानवीय सौंदर्य का यथार्थवादी चित्रण | कल्पनाशीलता के साथ - साथ रहस्यानुभूति और मानवतावादी दृष्टि उनके काव्य की मुख्य विशेषताएं हैं | युग परिवर्तन के साथ पंत जी की काव्य चेतना बदलती रही है | पहले दौर में वे प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत छायावादी कवि हैं , तो दुसरे दौर में मानव सौंदर्य की और आकर्षित और समाजवाद आदर्शों से प्रेरित कवि | तीसरे दौर की उनकी कविताओं में नये कविता की कुछ प्रवृतियों के दर्शन होते हैं तो अंतिम दौर में वे अरविन्द दर्शन से प्रभावित कवि के रूप में सामने आते हैं |<br />
<div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">काव्यगत विशेषताएं __ भावपक्ष _</span></div><div style="text-align: left;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> प्रकृति _ प्रेम </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया |</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">बाले ! तेरे बाल - जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन |</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भूल अभी से इस जग को | "</span></div><div style="text-align: left;"> इन पंक्तियों से ये समझने के लिए काफी है की पन्त जी को प्रकृति से कितना प्यार था | पंत जी को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है | यद्यपि पंत जी की प्रकृति चित्रण अंग्रेजी कविताओं से प्रभावित है फिर भी कल्पना की ऊँची उड़ान है , गति और कोमलता है , प्रकृति का सौंदर्य साकार हो उठता है | प्रकृति मानव के साथ मिलकर एकरूपता प्राप्त कर लेती है और कवि कह उठता है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">' सिखा दो न हे मधुप कुमारि , मुझे भी अपने मीठे गान | '</span></div><div style="text-align: left;"> प्रकृति प्रेम के पश्चात् कवी ने लौकिक प्रेम के भावात्मक जगत में प्रवेश किया | पंत जी ने यौवन के सौंदर्य तथा संयोग और वियोग की अनुभूतियों की बड़ी मार्मिक व्यंजना की है | इसके पश्चात् कवी छायावाद और रहस्यवाद की और प्रवृत हुए और कह उठे ____</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" न जाने नक्षत्रों से कौन , निमंत्रण देता मुझको मौन | "</span></div><div style="text-align: left;"> अध्यात्मिक रचनाओं में पंत जी विचारक और कवि दोनों ही रूपों में आते हैं | इसके पश्चात् पंत जी जन - जीवन की सामान्य भूमि पर प्रगतिवाद की और अग्रसर हुए | मानव की दुर्दशा को देखकर कवी कह उठे __</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" शव को दें हम रूप - रंग आदर मानव का </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> मानव को हम कुत्सित चित्र बनाते शव का |"</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">+ + + +</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" मानव ! एसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति |</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> आत्मा का अपमान और छाया से रति | "</span></div><div style="text-align: left;">गांधीवाद और मार्क्सवाद से प्रभावित हो पंत जी ने काव्य रचना की है | सामाजिक वैषम्य के प्रति विद्रोह का एक उदाहरण देखिये _</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" जाती - पांति की कड़ियाँ टूटे , द्रोह , मोह , मर्सर छुटे ,</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> जीवन के वन निर्झर फूटे वैभव बने पराभव | "</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कला - पक्ष </span></div><div style="text-align: left;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">भाषा </span>__ पंत जी भाषा संस्कृत प्रधान , शुद्ध परिष्कृत खड़ी बोली है | शब्द चयन उत्कृष्ट है | फारसी तथा ब्रज भाषा के कोमल शब्दों को इन्होने ग्रहण किया है | पंत जी का प्रत्येक शब्द नादमय है , चित्रमय है | चित्र योजना और नाद संगीत की व्यंजना करने वाली कविता का एक चित्र प्रस्तुत है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" उड़ गया , अचानक लो भूधर !</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> फड़का अपर वारिद के पर !</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> रव शेष रह गये हैं निर्झर |</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> है टूट पड़ा भू पर अम्बर ! "</span></div><div style="text-align: left;">पंत जी कविताओं में काव्य , चित्र और संगीत एक साथ मिल जाते हैं ___</div><div style="text-align: left;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" सरकाती पट _</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> खिसकती पट _</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> शर्माती झट </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">वह नमित दृष्टि से देख उरोजों के युग घाट ? "</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">बिम्ब योजना</span> ___ बिम्ब कवि के मानस चित्रों को कहा जाता है | कवि बिम्बों के माध्यम से स्मृति को जगाकर तीव्र और संवेदना को बढाते हैं | ये भावों को मूर्त एवं जिवंत बनाते हैं | पंत जी के काव्य में बिम्ब योजना विस्तृत रूप से उपलब्ध होती है |</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">स्पर्श बिम्ब </span>_____ इसमें कवि के शब्द प्रयोग से छुने का सुख मिलता है __</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" फैली खेतों में दूर तलक </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> मखमल सी कोमल हरियाली | "</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दृश्य बिम्ब</span> _____ इसे पढने से एक चित्र आँखों के सामने आ जाता है ____</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" मेखलाकार पर्वत अपार</span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़ </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> अवलोक रहा है बार - बार </span></div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> निचे के जल में महकार | "</span></div><div style="text-align: left;">शैली , रस , छंद , अलंकार ___ इनकी शैली ' गीतात्मक मुक्त शैली ' है | इनकी शैली अंग्रेजी व् बंगला शैलिओं से प्रभावित है इनकी शैली में मौलिकता है वह स्वतंत्र है |</div><div style="text-align: left;"> पंत जी के काव्य में श्रृंगार एवं करूँ रस का प्राधान्य है | श्रृगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का सुन्दर चित्रण हुआ है | छंद के क्षेत्र में पंत जी ने पूर्ण स्वछंदता से काम लिया है | उनकी परिवर्तन कविता में रोला छंद है _ <br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> " लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे | "</span></div><div style="text-align: left;"> तो मुक्त छंद भी मिलता है | ' ग्रंथि ' ' राधिका ' छंद में सजीव हो उठी है ____</div><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" इंदु पर उस इंदु मुख पर , साथ ही | "</span></div><div style="text-align: left;"> पंत जी ने अनेक नवीन छंदों की उदभावना भी की है | लय और संगीतात्मकता इन छंदों की विशेषता है |<br />
अलंकारों में उपमा , रूपक , श्लेष , उत्प्रेक्षा , अतिश्योक्ति आदि अलंकारों का प्रयोग है | अनुप्रास की शोभा तो स्थान - स्थान पर दर्शनीय है | शब्दालंकारों में भी लय को ध्यान में रखा गया है | शब्दों में संगीत लहरी सुनाई देती है |<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">" लो , छन , छन , छन , छन </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> छन , छन , छन , छन </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">थिरक गुजरिया हरती मन | "</span><br />
सादृश्य मूलक अलंकारों में पन्त जी को उपमा और रूपक अलंकर प्रिय थे | उन्होंने मानवीकरण और विशेषण - विपर्यय जैसे विदेशी अलंकारों का भी भरपूर प्रयोग किया है |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-70130928271914683382011-03-24T09:24:00.000-07:002011-03-24T09:24:29.876-07:00शतरंज के खिलाड़ी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><img src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQMclBjKtioCw26XaGr1sfhf1Z4aX_tYBx5tvtfWbmwqJYeTRlg" />भारतीय कथा - साहित्य के विकास में प्रेमचंद ( 1880 - 1936 ) का उल्लेखनीय योगदान है | प्रेमचंद का जन्म 1880 में बनारस से चार किलोमीटर दूर लमही नामक गाँव में हुआ था | उनकी आरंभिक पढाई गाँव के एक मकतब में हुई | बनारस के मिशन स्कुल में उन्होंने मैट्रिक पास किया | 1899 में अध्यापन से जीविकोपार्जन की शुरुवात की | नौकरी करते हुए उन्होंने बी . ए की पढाई पूरी की | वे स्कूलों के सब - डिप्टी इंस्पेक्टर भी रहे | 1920 में महात्मा गाँधी के आहवान पर उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया | जीवन के उतर्वर्तीकाल सन 1934 में उन्होंने कुछ दिनों के लिए मुंबई में फिल्म कथा लेखक के रूप में भी काम किया इस काम से उनका मन जल्दी ही उचट गया और वे बनारस लौट आये |</div> प्रेमचंद का मूलनाम धनपतराय था | उन्होंने लेखन की शुरुवात उर्दू से की | उर्दू में वे नवाबराय के नाम से लिखते थे | उर्दू में उनकी पहली कहानी संग्रह ' सोजे वतन ' नाम से छपा था | इसमें रोमानी भावुकता में लिपटी देश के लिए आत्म बलिदान का सन्देश देने वाली पांच कहानियाँ हैं | अंग्रेज सरकार ने राजद्रोह का आरोप लगा कर इस संग्रह को जब्त कर लिया था | प्रेमचंद जल्दी ही उर्दू से हिंदी में लिखने लगे | लेकिन उर्दू में उन्होंने लिखना बंद नहीं किया | उन्होंने अपने अधिकांश उपन्यास पहले उर्दू में लिखे फिर उनका अपने आप ही हिंदी में रूपांतर किया | प्रेमचंद की हिंदी मुहावरेदार और बोलचाल की भाषा है | ' सेवा सदन ( 1918 ) ' बाज़ारे हुस्न ' नाम से ' प्रेमाश्रम ' ( 1921 ) ' गोशए आफियत ' ' रंग भूमि ' ( 1925 ) ' चौगाने हस्ती ' तथा ' कर्म भूमि ' ( 1926 ) ' मैदाने अमल ' नाम से पहले उर्दू में लिखे गये थे ' लेकिन उनका प्रकाशन पहले हिंदी में हुआ था हिंदी में प्रेम चंद के दस पूर्ण ( तथा एक अधुरा ) उपन्यास प्रकाशित हुआ | उक्त उपन्यासों के अतिरिक्त उनके बाकि उपन्यास हैं ___ ' वरदान ' ( 1921 ) ' कायाकल्प ' ( 1926 ) ' निर्मला ' ( 1927 ) ' प्रतिज्ञा ' ( 1929 ) , ' गबन ' ( 1931 ) ' गोदान ' ( 1936 ) | मंगल सूत्र ' उनका अपूर्ण उपन्यास है | प्रेमचंद ने लगभग तीन सो कहानियां और तीन नाटक लिखे | उन्होंने तीन मासिक पत्रिकाओं ' माधुरी ', ' हंस ' और ' जागरण ' का संपादन प्रकाशन किया तथा समय - समय पर वैचारिक , साहित्यिक निबंध भी लिखे | उनके निबंधों का एक संग्रह ' कुछ विचार ' ( 1939 ) नाम से छपा | बाद में उनके पुत्र अमृत राय ने और सामग्री खोजकर इसका परिवर्धित संस्करण ' साहित्य का उद्देश्य ' नाम से प्रकाशित कराया | प्रेमचंद का निधन महीनों जलोदर रोग से ग्रस्त रहने के बाद 8 अक्टूबर 1936 को बनारस में हुआ |<br />
प्रेमचंद सोद्देश्य साहित्य के पक्षधर थे | उनका मानना था की साहित्य को सामाजिक बदलाव में सहायक होना चाहिए तथा मानवता की बेहतरी की ओर ले जाने का दायित्व निभाना चाहिए | अपनी कृतियों के माध्यम से उन्होंने इसी महत उद्देश्य की पूर्ति भी करनी चाही | अपने समय ओर समाज पर प्रेमचंद की पैनी नज़र थी | वे अपने समाज की समस्याए देख रहे थे उनके समाधान तलाशने की भी कोशिश कर रहे थे | प्रेमचंद की हर रचना में कोई न कोई समस्या उठाई गई है | शुरुवाती उपन्यासों में प्रेमचंद समस्या के साथ - साथ समाधान देने की भी कोशिश करते हैं | प्रेमचंद की रचना क्षमता निरंतर विकासशील है | शुरू में आदर्शवादी है फिर यथर्थोंन्मुख आदर्श की ओर मुड़ते हैं ओर अन्तः आदर्श पीछे छुट जाता है | बचता है तो सिर्फ यथार्थ | ' गोदान ' उपन्यास तथा ' कफ़न ' कहानी इसके उदाहरण हैं | दलित समस्या , स्त्री पराधीनता , किसानों की दुर्दशा प्रेमचंद के केन्द्रीय सरोकार हैं | महाजनी सभ्यता की शोषक प्रवृतियों को उजागर करने के काम को प्रेमचंद ज्यादा तवज्जो देते हैं |<br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">शतरंज के खिलाड़ी : </span>यह कहानी पहले पहल ' माधुरी ' पत्रिका में अक्टूबर 1924 में छपी | इस कहानी पर सत्यजित राय ने फिल्म भी बनाई थी | यह पतनशील सामंतवाद का जिवंत चित्र प्रस्तुत करने वाली रचना है | वक्त वाजिद अलीशाह ( शाषनकाल 1847 -1856 ) का है | लखनऊ में लोग विलासता में डूबे हैं |समाज का उपरी तबका घोर आत्मकेंद्रित है | देश और दुनिया में क्या हो रहा है इसके प्रति वे लोग बेखबर है | मिर्ज़ा सज्जाद अली ओर मीर रोशन अली के जरीय प्रभुवर्ग की दिग्भ्रमित मानसिकता का चित्रण किया है लखनऊ पर अंग्रेजी सेना का कब्ज़ा हो गया | वाजिद अलीशाह बंदी बना लिए गये | मीर ओर मिर्जा इससे परेशान नहीं होते | वे शतरंज खेलते हुए अपनी जान दे देते हैं |</div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-33495867416923268832011-03-22T04:02:00.000-07:002011-03-22T04:02:33.605-07:00हुस्न भी था उदास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><img src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcT-V-89FTEOe_Yx_zMHLuRgToRXYmD4RRR06TkyBHDClo8Ozl8g" /> फ़िराक़ गोरखपुरी </div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;"> फ़िराक़ गोरखपुरी ( 1896 - 1982 ) का वास्तविक नाम रघुपति सहाय था | इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद उनका चयन सिविल सेवा में हो गया था | लेकिन उन्होंने इस सेवा से त्याग पत्र दे दिया , और 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए | 1923 में जवाहर लाल नेहरु ने उन्हें कांग्रेस का अवरसचिव नियुक्त किया | इस पद पर वे 1929 तक रहे | फ़िराक़ 1930 में इलाहबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हुए | यहाँ उन्होंने 1958 तक शिक्षण कार्य किया | 1961 में उन्हें ' गुले नगमा ' के लिए साहित्य अकादमी सम्मान मिला और 1970 में वे ज्ञानपीठ परुस्कार से सम्मानित किये गए | फ़िराक़ की कविताओं के 15 खंड प्रकाशित हुए | उन्होंने थोडा - बहुत गद्द्य लेखन भी किया | लगभग आधी शताब्दी तक वे भारतीय उपमहाद्वीप की उर्दूं कविता शीर्ष पर रहे | उन्होंने 40 हजार से भी अधिक शेर लिखे , और उर्दू कविता की तीन प्रमुख विधाओं ग़ज़ल , नज़्म और रुबाई पर गहरा प्रभाव डाला |</div><div style="text-align: left;"> उनकी कविता का अवसाद उन्हें मीर तकी मीर से जोड़ता है | मीर की तरह फ़िराक ने भी अपने विचारों और भावों की अभिव्यक्ति के लिए हिन्दू पोंराणिकता और हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है | अपनी कृति ' रूप ' ( 1946 ) के प्राक्कथन में उन्होंने लिखा ' भारतीय कविता को हिंदी और संस्कृत का पूरा लाभ लेना चाहिए | ' यह बात उन्होंने उर्दू कविता में बदलाव लाने और इसे भारतीय परिस्थितियों के निकट लाने के प्रयास के अंतर्गत कही | उनकी कविता में अंग्रेजी रोमांसवाद की छवियाँ भी देखी जा सकती है |</div><div style="text-align: left;"> फ़िराक़ की रचनाओं में परम्परा और आधुनिकता दोनों के ही प्रति आग्रहशीलता स्पष्टत: देखी जा सकती है | प्रेम और सोंदर्य की समयसिद्ध विषयवस्तु को छोड़े बिना , उन्होंने ग़ज़ल को अपना एक निजी स्वर व् संस्कार दिया | उन्होंने एक परिपक्व शैली विकसित की जिसमें भारतीय और फारसी परम्पराओं के साथ उस अंग्रेजी साहित्य के काव्य सम्बन्धी नियम - सिद्धांत भी गुंथे थे , जिसके वह अध्यापक थे और छात्र भी | उन्होंने अपने समय की जटिल दुविधाओं को समझा और मीर तथा ग़ालिब से प्राप्त रूपकों और प्रतीकों को नया अर्थ दिया |</div><div style="text-align: left;"> उनके प्रमुख काव्य संकलनों में ' मशाल ' नगमा - ए - साज़ ' और' ' हजार दास्तान ' शामिल है | उन्होंने हिन्दी और उर्दू में एक उपन्यास भी लिखा ___' साधू की कुटिया ' | उनका कुछ आलोचनात्मक लेखन और पत्रों का एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ |</div><div style="text-align: left;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> हुस्न भी था उदास : </span>फ़िराक़ के जीवन का एक पक्ष - राजनीती से उनके भावनात्मक लगाव से जुड़ा है | भारत के विभाजन का शोक उनकी कविता में अभिव्यक्त हुआ है | प्रस्तुत ग़ज़ल समय गुजरने , भाषा और मुहावरे की बाधाओं के बनने और अपनी तीव्रता खो चुके प्रतीकों की अर्थहीन पुनरावृति पर कवि की पीड़ा की अभिव्यक्ति है | कवि समझदारी और एकता की और न बढ पाने की मानवीय अक्षमता और उस दुनिया पर गहरा दुःख प्रकट करता है , जिसमे भाषा मानवीय अनुभूतियों के आदान - प्रदान का माध्यम न बनकर विडंबनापूर्ण ढंग से एक अवरोध बन जाती है |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">हुस्न भी था उदास , उदास , शाम भी थी धुआं - धुआं ,</div><div style="text-align: left;">याद सी आके रह गई दिल को कई कहानियाँ |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">छेड़ के दास्तान - ए - गम अहले वतन के दरमियाँ , </div><div style="text-align: left;">हम अभी बीच में थे और बदल गई| जबां |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">सरहद ए गैब तक तुझे साफ़ मिलेंगे नक्श - ए - पा</div><div style="text-align: left;">पूछना यह फिर हूँ मैं तेरे लिए कहाँ - कहाँ |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">रंग जमा के उठ गई कितने तमददुनों की बज़्म</div><div style="text-align: left;">याद नहीं जमी को , भूल गया आसमां |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">जिसको भी देखिये वहीँ बजं में हैं ग़ज़ल सरा ,</div><div style="text-align: left;">छिड गई दास्तान - ए - दिल बहदीस ए दीगरा |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">बीत गए हैं लाख जुग सुये वतन चले हुए ,</div><div style="text-align: left;">पहुंची है आदमी की जात चार कदम कषां - कषां |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">जैसे खिला हुआ गुलाब चाँद के पास लहलाए,</div><div style="text-align: left;">रात वह दस्त - ए - नाज़ में जाम - ए - निशात - ए - अरगवा ,</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">मुझको फ़िराक याद है पैकर - ए - रंग - ओ - बुए दोस्त ,</div><div style="text-align: left;">पांव से ता जबी - ए - नाज़ , मेहर फशा - ओ - मह चुका | </div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-57333148160232927652011-03-09T22:40:00.000-08:002011-03-09T22:41:57.986-08:00लिओ टालस्टॉय<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <img src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTG5JUHgXYKfr3Q2tdP8WH_K_kcqqdEQAq9N6uzNkUxgk9_H2bp" /><br />
Everyone thinks of changing the world<br />
<div style="text-align: left;">but no one thinks of changing himself ...</div><div style="text-align: left;"> <span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">टालस्टॉय की वोल्कोंस्की परिवार की थी | वे दहेज़ में अपने साथ ' यासनाया पोल्याना ' रियासत भी लाई थी , जिसमें तीन सौ कृषि दास थे | टालस्टॉय को जुआ खेलने से कोई परहेज़ नहीं था | एक बार जुआ खेलते हुए वो कुछ इतना हार गये कि उन्हें अपनी रियासत का कुछ भाग बेचना भी पड़ा | अपनी मानसिक शक्तियों पर मुग्ध लिओ को यह गुमान था कि उनका चिंतन शुद्ध अध्यात्मिक है |</span></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"> </span>विश्व प्रसिद्ध उपन्यासकार ' युद्ध और शांति जैसी ' अप्रतिम कृति के लेखक और महान समाज सुधारक लिओ टालस्टॉय खुद को ईश्वर का बड़ा भाई मानते थे | उनका जन्म 1872 में रूस में संभ्रांत परिवार में हुआ था | उन्हें हमेशा यही लगता था कि उनकी अध्यात्मिक शक्ति , अतुलनीय व् अव्याख्यायित है | यहाँ वे अपने को बुद्ध , सुकरात , पास्कल कन्फुशियस एवं स्पिनोजा से बेहतर मानते थे | ईश , केन , कठ आदि उपनिषद अपने सिरहाने रखकर सोने वाला जर्मन दार्शनिक शापेन्हावर उन्हें हमेशा प्रेरित करता था कि जो कुछ लिखें वो अकाट्य हो | उनकी डायरी पढने पर लगता है कि कार्ल मार्क्स कि तरह उन्होंने भी अपना लेखकीय जीवन काव्य रचना से ही शुरू किया था | डायरी में ये भी लिखा मिलता है _ ' मुझे आज तक एसा आदमी नहीं मिला , जो नैतिक स्तर पर ठीक मेरे जैसा हो | ' उन्हें आश्चर्य होता है कि लोग उनके गुणों को पहचानते क्यु नहीं , मुझे प्यार क्यु नहीं करते ? मैं इतना बुरा नहीं , मेरा अंगभंग भी नहीं हुआ फिर भी लोगों को मेरे प्रति आसक्ति क्यु नहीं ?</div><div style="text-align: left;"> वे हरेक व्यक्ति के साथ और हर स्थिति में एक तरह कि निर्णयात्मक मुद्रा अपनाये रखते थे , जैसे उन्होंने नैतिकता का ठेका ले रखा हो | जब वे एक महान उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्ध हो गये तो ईश्वर जैसी शक्ति का प्रदर्शन करने लगे | टालस्टॉय ने लिखा है _ ' जब लेखन के क्षणों में मुझे किसी पात्र पर दया आ जाती है तो मैं जान -बुझकर उसके ओछेपन में कुछ बेहतर गुण भर देता हूँ अथवा उसके समांतर खड़े किसी पात्र के कुछ गुण घटा देता हूँ | टालस्टॉय जब समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध हो गये तब ईश्वर के तदरूप हो गये और उनकी भ्रम - भंगिमा उनमें और अधिक विकसित हो गई | वे तरह - तरह से अपनी दिव्यता का प्रदर्शन करने लगे | उन्होंने लिखा भी है _ ' ओ पिता ! वर दो रक्षा करो कि मुझमें तुम्हारा आवास बना रहे | ' मगर ईश्वर कि मुश्किल यह थी कि लिओ संशयवादी भी थे | एसी स्थिति में गोर्की ने लिखा है _ ' एक गुफा में दो रीछ कैसे रह सकते थे | ' अल्लाह मियां का बड़ा भाई होने का भ्रम लिओ को क्यु था ? कारण शायद ये हो सकता है कि उनका जन्म एक जागीरदार परिवार में हुआ था |</div><div style="text-align: left;"> उन दिनों कृषि - दास प्रथा जोरों पर थी | टालस्टॉय की वोल्कोंस्की परिवार की थी | वे दहेज़ में अपने साथ ' यासनाया पोल्याना ' रियासत भी लाई थी , जिसमें तीन सौ कृषि दास थे | टालस्टॉय को जुआ खेलने से कोई परहेज़ नहीं था | एक बार जुआ खेलते हुए वो कुछ इतना हार गये कि उन्हें अपनी रियासत का कुछ भाग बेचना भी पड़ा | अपनी मानसिक शक्तियों पर मुग्ध लिओ को यह गुमान था कि उनका चिंतन शुद्ध अध्यात्मिक है | टालस्टॉय अपने समकालीन लेखकों के प्रति वितृष्णा का भाव रखते थे और अपनी अनुवांशिकता के कारण ' महत्व - बोध से पीड़ित थे | तुर्गनेव उनकी इस दोगली आत्म - विभोर स्थिति से परिचित था , क्युकी वह उनकी उद्दाम काम भावना से अदभुत रति लीलाओं के बारे में जानता था | ये उनकी डायरी में भी लिखा मिलता है _ ' मस्ट हेव ए वूमेन ' | सेक्सुअली गिव्स मी नाट ए मोमेंट्स पीस | ' ( डायरी 4 मई 1853 ) | लिओ के अनुसार ' वेश्यागामी होने के कारण उन्हें सुज़ाक रोग भी हुआ | ' उनकी जीवनी लिखने वाले एलमरमाड ने लिखा है _ ' इक्यासी वर्ष कि आयु तक कामवासना ने टालस्टॉय का पीछा नहीं छोड़ा |'</div><div style="text-align: left;"> 'अन्ना कैरनीना ' , ' वार एंड पीस ' और ' रीफरेक्शन ' लिओ टालस्टॉय कि महान कृतियाँ हैं | मगर ' वार एंड पीस ' के बारे में उपन्यासकार फ्लाबेयर ने तुर्गनेव से यह शिकायत कि थी कि ' लिओ ने इतिहास विषय पर जो व्याख्यान पहले कभी दिए थे , उन्हें भी इस उपन्यास में शामिल कर लिया गया है | ' इसके आलावा टालस्टॉय ने ' मिलिट्री गेजेट ' भी लिखा है , शायद इसलिए कि कुछ समय तक वे सेना में भी रहे थे और एक भालू को मारने कि कोशिश में घायल भी हुए थे |</div><div style="text-align: left;"> महत्वबोध से पीड़ित टालस्टॉय के माता - पिता बचपन में ही नहीं रहे थे | उनका लालन -पालन उनकी चाची तालियाना ने किया था | 16 वर्ष कि आयु में उन्होंने कज़ान विश्वविध्यालय के भाषा - विभाग में दाखिला लिया | फिर वो कानून पढने लगे | 22 वर्ष कि आयु में वो काकेशस गए और सेना में भर्ती हुए | तीन बार उन्हें बहादुरी का मेडल मिलते -मिलते रह गया |</div><div style="text-align: left;"> 1858 में उन्होंने लिखा _ मैं कुछ एसा सूत कातना चाहता हूँ , जिसका कोई सर पैर न हो | ' उनके पुत्र इल्या ने लिखा है _ पिता श्री के लिए दुनिया दो भागों में विभक्त थी | एक और उनका परिवार , दूसरी और शेष संसार | उन्होंने हमें यही सिखाया था | इस मिथ्याभिमानी को तोड़ने में मुझे भीतर ही भीतर लंबा संघर्ष करना पड़ा | ' गोर्की ने लिखा है _ टालस्टॉय बुड़ापे तक इसी झूठी अहम् मान्यता का शिकार रहे कि दुसरे लोग उनकी इच्छानुसार चलें और बर्ताव करें |</div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-44523294026660605722011-03-03T22:33:00.000-08:002011-03-03T22:33:10.078-08:00मुझसे पहली- सी मुहब्बत मेरी महबूब न मांग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><img src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRzG6ij7-IwsrprTTaNs2-OR7yrE0XiD9X59JbQHHccTpbIgAVX8A" /> फैज़ ( 1911 - 1984 ) का जन्म पंजाब के सियाल कोट में हुआ था | उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि ली और अमृतसर में कार्य शुरू किया | वहां वे माकर्सवाद के संपर्क में आये और प्रगतिशील लेखक संघ में शामिल हुए | द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अध्यापन कार्य छोड़ कर वे भारतीय सेना में शामिल हुए और उन्हें अपनी उत्कृष्ट सेवा के लिए एम . बी . ई पुरुस्कार प्राप्त हुआ | भारत विभाजन के बाद उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी और लाहौर चले गए | यहाँ वे संपादन कार्य के साथ - साथ ट्रेड यूनियन नेता के रूप में कार्य करते रहे | 1951 में सरकार विरोधी गतिविधियों में भाग लेने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया और उन्हें चार वर्ष की सजा भी मिली | 1962 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार से भी नवाज़ा गया | उसके बाद दो साल उन्होंने लन्दन में बिताये | इस दौरान इन्होनें खूब भ्रमण किया | उसके बाद वे लाहौर वापस आये , परन्तु वो यहाँ शांति से नहीं रह सके | उन्हें लाहौर छोडना पड़ा और 1978 से लेकर 1982 तक वो बेरुत में आत्मनिर्वासन की स्थिति में रहे | वे फिर लाहौर लौटे और 1984 में लाहौर में ही उनका निधन हो गया |<br />
<div style="text-align: left;"> ' नक्श - ए - फरियादी ' ( 1941 ) ' दस्त - ए - सबा ' ( 1953 ) ' जिंदानामा ' ( 1956 ) ' सर - ए - वादिए - सिना ' ( 1971 ) और शाम - ए - सहर - यारां ( 1979 ) में लिखी गई हैं | इनकी कविताओं का अनेक भाषाओँ में अनुवाद हुआ और ये कवितायेँ पत्र - पत्रिकाओं और रेडिओ आदि के माध्यम से पाठकों और दर्शकों की बहुत बड़ी संख्यां तक पहुंची | लगभग हर लोकप्रिय गायक ने उनकी गजलों को गाया है |</div><div style="text-align: left;"> फैज़ को जितना क्रान्तिकारी कवि माना जाता है उतना ही बड़ा प्रेम का कवि भी माना जाता है | उनके लिए क्रांतिकारिता और प्रेम की अभिव्यक्ति दो अलग - अलग भाव न होकर , एक समग्र अभिव्यक्ति के ही रूप थे | फैज़ की कविता में प्रेम के अनेक रूप है | प्रेम का आशय चुनौती , अवज्ञा , आत्म अभिव्यक्ति अथवा आत्म निषेध , आत्म त्याग , आत्म दया , वियोग और निष्कासन की पीड़ा ( जिससे फैज़ अच्छी तरह से परिचित थे ) __ इनमें से कुछ भी हो सकता है | ' मुझसे पहली- सी मुहब्बत मेरी महबूब न मांग ' उनकी पहली नज्मों में से एक है | इसमें जीवन की कठोर वास्तविकताओं का वह अनुभव है जो उन्हें उनकी प्रेमिका और उनके प्रेम से अलग हटने को विवश करता है |</div><div style="text-align: left;"> फैज़ हफ़ीज़ और रूमी के सूफी आदर्शों से प्रभावित हैं | पुरानी परम्पराएँ और मुहावरे उनकी कविता में उस समय तात्कालिक अर्थ ग्रहण कर लेते हैं , जब कवि को यह एहसास होता है की प्रेम की उनकी प्रारम्भिक चाह और वर्तमान में सामाजिक और राजनैतिक न्याय की तलाश वस्तुत : दोनों ही स्थिति के दो रूप हैं | दोनों ही त्याग और सम्पूर्ण की मांग करते हैं |</div><div style="text-align: left;"> यह नज़्म वर्तमान विसंगतियों और समस्याओं को एक एसे मुहावरे में जो प्राच्य स्वर को बनाये रखने के साथ ही तथा ग़ालिब और इकबाल जैसे कवियों द्वारा प्रयुक्त पारम्परिक प्रतीकों शब्दों और छवियों को एक नई चेतना के साथ अभिव्यक्त करने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित करती है | अपने एक साक्षात्कार में फैज़ ने बताया कि उनके लिए " पुराना और नया , पारम्परिक और समकालीन साहित्य कि व्यापक और मिली - जुली रवायत में उचित स्थान ग्रहण करते हैं | " फैज़ जीवन भर उर्दू , पंजाबी , हिंदी , फारसी और अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ के साहित्य कि विभिन्न परम्पराओं के गहन अध्येता रहे | इन सबकी समन्वय उनकी काव्य यात्रा में अनूठे ढंग से दिखाई देता है |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">मुझसे पहली मुहब्बत मेरी महबूब न मांग </div><div style="text-align: left;">मैनें समझा कि तू तो दरख्शां१ है हयात २ </div><div style="text-align: left;">तेरा गम है तो गमें - दहर३ का झगडा क्या है </div><div style="text-align: left;">तेरी सूरत से है आलम४ में बहारों को सबात५ </div><div style="text-align: left;">तेरी आँखों के सिवा दुनियां में रखा क्या हैं ?</div><div style="text-align: left;"> तू जो मिल जाये तो तकदीर निगूं६ हो जाये </div><div style="text-align: left;">यूँ न था , मैने फकत चाहा था यूँ हो जाये </div><div style="text-align: left;">और भी दुःख है जमाने में मुहब्बत के सिवा </div><div style="text-align: left;">राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत७ के सिवा </div><div style="text-align: left;">अनगिनत सदियों के तारिक ८ बहीमाना९ तिलिस्म </div><div style="text-align: left;">रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब१० में बुनवाये हुए </div><div style="text-align: left;">जा - ब - जा११ बिकते कूचा१२ - ओ - बाज़ार में जिस्म </div><div style="text-align: left;">खाक१३ में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए </div><div style="text-align: left;"> लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे </div><div style="text-align: left;"> अब भी दिलकश१४ है तेरा हुस्न , मगर क्या कीजे </div><div style="text-align: left;">और भी दुख है जमाने में मुहोब्बत के सिवा </div><div style="text-align: left;">राहतें और भी है वस्ल कि राहत के सिवा </div><div style="text-align: left;">मुझसे पहली से मुहब्बत मेरे महबूब न मांग |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"> ----------------------------------------------------------------</div><div style="text-align: left;">१ दरख्शां ------------------रौशन , चमकता हुआ |</div><div style="text-align: left;">२ हयात --------------------जीवन </div><div style="text-align: left;">३ गमें दहर ------------------जमाने का दुःख </div><div style="text-align: left;">४ आलम ----------------------दुनियां </div><div style="text-align: left;">५ सबात ----------------------ठहराव </div><div style="text-align: left;">६ निगूं -------------------------बदल जाना </div><div style="text-align: left;">७ वस्ल कि राहत ---------------मिलन का आनंद </div><div style="text-align: left;">८ तारिक ----------------------अँधेरा </div><div style="text-align: left;">९ बहीमाना --------------------पशुवत , क्रूरता </div><div style="text-align: left;">१० रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब------ रेशम , अलतस और मलमल , कपड़ों के प्रकार </div><div style="text-align: left;">११ जा - ब - जा ------------------जगह - जगह </div><div style="text-align: left;">१२ कूचा --------------------------गली </div><div style="text-align: left;">१३ खाक -------------------------धुल , राख</div><div style="text-align: left;">१४ दिलकश -----------------------आकर्षण </div><div style="text-align: left;"> -------------------------------------------------- </div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-83943936786255409182011-02-27T04:52:00.000-08:002011-09-20T23:58:17.138-07:00संतों देखत जग बौरान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><img src="data:image/jpg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wBDAAkGBwgHBgkIBwgKCgkLDRYPDQwMDRsUFRAWIB0iIiAdHx8kKDQsJCYxJx8fLT0tMTU3Ojo6Iys/RD84QzQ5Ojf/2wBDAQoKCg0MDRoPDxo3JR8lNzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzf/wAARCADcAKcDASIAAhEBAxEB/8QAGwAAAQUBAQAAAAAAAAAAAAAABQACAwQGAQf/xABNEAACAQMCAwQFBwcIBwkAAAABAgMABBEFIRIxQQYTUWEicYGR0RUWMqGxwfAUIzNCUmJyByQ0U1RVkuEmNkNzgrLxNURFY3STo9Ly/8QAGQEAAwEBAQAAAAAAAAAAAAAAAQIDAAQF/8QAIhEAAgICAgMBAQEBAAAAAAAAAAECESExAxITMlFBImFx/9oADAMBAAIRAxEAPwDKT9sNcWaRRdIAGI/RL40z55a7jH5Yv/tL8KCXP9Jl/wB432mo6muKHwfvL6HD2v1w/wDexv4RrS+d2uZz+W//ABr8KB0qPjh8N3l9DXzs1z+3EepF+Fc+dWt8/wAuYf8AAvwoNSrdI/Ad5fQx86Nb/t7/AOFfhXPnRrn94y+5fh50IpUekfhu8voW+c2t8/lGX3L8KXzm1vpqU23LZfh6qE0q3SPw3eX0L/OXW/7yn9y/CmntHrJO+ozn2L8KF/jlSx6qHjj8N2l9Cvzj1rH/AGlP7l+FIdotZ/vGf3L8KE+6uj1Ct44/DdpfQp84tZPPUZ/cvwpfODWDz1Gf3L8KF7eVdx6vfW6R+G7S+hT5w6zjHyjN7h8KQ7Q6xnPyhNn1D4ULx+M138c63SPw3ZhI9oNXP/iE3+EfCufL2rf2+X3D4UOO/h76XL/9UeqN2Zvv5LtTvbvtOI7q5eRO5c8LAc6VVP5J/wDWsY/qH60q5eVf0y8LaMdd7XU/+8b7TUVS3n9LnH/mv/zGo1UuwVRkmutaOY5Vi1sp7pgI19pq1Z2I4hxDjcHkDsK0tnZd0FfGCB48qSU/gXSMdeRJBMYUJYpszE8z5VBU125kupnY7s7E++oqdaAKlSpeW9EwqWK7S69aAaOD8b1ptO0Sxv7dZY5ZhnYjiGQfdWaIIohoupPp90H5xMcOvlSzusGZo07LWQGWluD/AMQp/wA1rHrJcf4x8KNWssc8QmhIZWGQQuakKDYHB3/Z/H4+qHaRO2A17J2JA/O3Q2znjX4U75pWWfRluj62X4VoIkXoPbipVCgk4Xbyod5GtmZ+atlnPFP/AIh8K4OytkeTT4/iHwrUkJw/RU+eKqzKQfRUY9VFTYG2AfmtYc+8uPaw+FSJ2X00E8QmPPAL70YQM2BtzqeOMs2FAOOv4/H3ZyYLY7sbo1lp+srPbpIHMbD0myMH10qL6FCYr8FueOXhsaVc83bOvi9Tw+8GbycD+tf/AJjRbTdNIUM20jc9voioLe17/VblmA4EmfPn6RrS29tw78vbXZOWKJN0PsbaCJASgBHIFKuEggADbB/Vqq0qr6AA4unOnxSbYT0j5HlUye2YK8TgupkxjhkYY9pqKr+uxd1qs4/aPF7xVCulaHFt+BXceH2Vyug78/rrBQsb08AA9Kb+OdSKKDKRVjeDizimfRPjUw2z8a4wyDtQTGlAMdm9YNjOsM5zbP4/qHxreLwOgdSCOhHWvKFJB4fvrVdltaeORLK6YlG2jY9D4VOcf0lOFq0bAKpG5wKmXxXAB2361xePgwAoU+VLh4BvvucmokCQCMcyx9tMdVcAquQBjGa6oJ/W2OKlVRgjJA6bUNGKwToRw5OOfKp4VB3Ysd8DB51x1AGCST123pIf1cnz2rbMGdMI/KYwF236+RpVX0d83yg74B6eRpVCWGdfF6nm2nwBGnbrJcuTv0DGi8veAAqSFA8RtVKBCLkjbHeMeX7xojIx4fRX2cNdTZGeyq0Mp4nPok+J3NKHKOpUtnO58akJ73mRt4jal3ajLDBPPJHOtYjZmO18RTUY5MbPH9h/6UDrS9rkLQ20pH0WK59Y/wAqzVdHG7iOIV0DfNcFPG3hTMaKOhTzrvL/AKUi2RvThvvSll/g7B8uXhS3bYbnyFWNM0651KcQ20fEerE7KPM16F2V7FQtLxT/AJzhPpSdM+AH30rwF8iRjNI7MahrDr+TxFFyPTYbCvSNA/k6t7NEe8ZZJcg7jkfIVs7HTobRAsShFXwq0cJvjI86Ts2RlJsFS6VDwcHdg45nFBrjS2AlaJeJUbBHXFapyNyevOq9jEeB2I+ketDFEqyYpVAblgdRUp2A4W6daLa1YmKbvY0IB5j76GROGbibbrU2qFqhIokbhA91TmOJF2G4qOKTgbIznOalYl/Tfbi8KUw/SADqOduv2GlXdLGNQUjlg7Z8qVR5PY6uL1MLGoFzJkH6R5HzNXscUanYHHLNV5MrcSAAnLnmPOrEYJTG+ep610kJ7OJEG2HsGakW3JJBBz66sRBIxlup8Ks2NrPqMvoZjh8cbtRSbFqzN9pdOkn04rEpaTiDIuc5NZ2Lstq0q5FvgeJavZ7HQ7eEboC2eeMmrxjsrYjvBHkHljJqsXSoZHhL9mNURSTCDjoGqu+jalGcG1kP8O/2V7xM8TMTFESBzYjAqkz2sjEJbpJIM54RnHrIpk2w3R4UYpVfgeNwc4wRvWq0nssZO7N6/wCcbBEI6DxY/dWp1SS0knjAt42lUkoOHOPPNXNIsszB5d3Y8RJHOma+mfK6wS6VoywQiG3VVU7uwXFbLT4IoYQiAAL0qjaogKhQABvU7y4YohyfsqTdiLBdeZc8HENqjdicb8vrqqoPHxu2F86a7NcOQrcKDYmhQbLBc3EgjjPojHF51cAWNQgG9QWyrBEDy8BXTLjLAZYnAoDIV6nHEwJGCMb1hXUwyunVWxnHurV6pdiOJk4hxHOfvrKOQ8pOxyfHcUJLAr2WlBYKBzJ38qsegqhDv41VjUpsynaraxxsCQQQBzzUmKOsuD8tUxnHPbHkaVKzGLoHGB4k+RpVDk9jq4vUxgXNy+wOHb7TVgRqBxHAA6U2Nf5xNz+m22fOo7+57tP4eQB5noK6kQlmRcsYGvZuBccKkcR+77K19oiWkGTgYHWg/Z+1FtaIrnMr+m5z1P4xV+4mVJCZmxHEPSGeZqqWKBomZ7i4BeSUxw+WxNDr3VLa2AS0i72Q7cROSTQ7VtbE6skbHgzjhU86k0CxM8qPMTk77jYDwpqpWzbCFjY3eojvL6YxxEbRIcZHmak7TTw6RoawWwWOW4PCMfsjnRxlEapGu3F4eFY3tzIZdehtTuscShRjkTzrQuUsheEC9GgeSQzyDiPjmtbYxgIGJw1CbNFiRY0BCgbkirK3nG3BDlj1I8KpK2TDEk0aqFjfHi2fsqWF1jUFVIOd8/fQcOsK95M4Ujx6Cq8mqGZTwllh5YGxal6mDUt3xk5cBRzbw9XnT47+CGJWJ4RnYZ+v11lpb5nwEx5DwqKW/ihQNczoW6DyrdUFX+Glk1jvJNlwo3yev43qC715IkIjJLfZWejubm9/okMsinlwoQD7abJpWqEgtZOc9CwFC4LbKLjm9IlvdXluicZUchU1mDIqnfGOLpvQe4guUmW3kt2hkbmT0XqaOQhVCiPhCgDAHQUnI1WBHFrYSs42lcq2RnrinBWjEi8PXFTWkfEilCMg52qXgLM/HzznNc15NRBak94pbOPHHLalU0fDGqovPOWwfKlUZ+x18PqYqRisk3QcbdPM0NkU3OpWkG+M94+R0HKrdyx7+QDH6Vvtqv2eQXOp3MzbopEY9Q/zzXbBHP8ArZtbUlRkDn08KD9opibdEX6WS7ee+1GG/MxqVHIbVltXlDznfYDJ3qqEoq6ZBJeX8UCj6J43OPcK9I0e2MbHOAoAFZLsHB3ss96y+izHB57DYffW608AxK6jI4efmd6EnY/6dk4XvowTk7CvOu21x/pNcH9gqB7BW7hnEmrqgx6CnevL+190X7R3uOQlI51uPbNsl+VpJPRkcBc8lz9dF4dTgji4bfgOBux2GawT3BZtm9HPjU6TTzwytArOsQyxz09VV7L9N4r0ai51CDiBnl71ugB2FUZdSmmTNvEWQnHo8vaam7IaTbakTcXrGVVBJUnAHhmjF8UlK28MYSOHZUQACpynWgxgv0HWNhPPErXU/do3+zjO/tNXRpkUacVnBGZCd5JjxY9QNcIMS7OByxxcqoX899BEZY5VxjopxXPKcmzq44RofqVlq7niGo8DdFXYCnaVrGuxXCWcsscuSAGJzg/Ch0k948TuJ1lPAWA3JJxyxVXRLq4fUgsyd0p9EsQcjfmKDTcXZVJJ4Nj2jvoLvUoLa2jaR4V4pJVOy56VHbuHAAJ2G++9Dlhk0u8nt5WLCZzJHLz7xTy91WbfIl2J3O5xWil1wcPM/wC2ajTpmUJgDfxq1IeI4IyeeB41U08kRjhUHbnjerjhVPPc9M1N7J/hXEWMyeBxSqdie5JxsTmlUuTZ08XqeZ6ldfk89wxBPC7nY+urfZKPgsYufFJ6ROfOgWvyZubiFdmaZhy8WrW6PEITbxrjCRAkgV6EFgjNUFb+Xgt2Zumw3rE6xdMsEjAnic8I3rSa9PwQBAemcYrGai/e3NtB5jO3UmqJYFgrZ6R2XtzZ6GgUEMyhfq3rW2sfdafGDzK5xQGEGOxt0GRkjblR6QlIQoJyFAxUmFAnTF4tTncnOAd68g7Uu8vaO/VNvz7D1V7Fo4/nUzEk868g1sJ8talKSv6ViB66aG2NEo2kamNzJhm70JxH9UYP31c0+2ij1O0t42IkJJYjbIFB45GDssZHC2OIHkTRO2tXvZoO6lMVzG+OJj0pJ2dkGqwbfsqbf5QurFQDkCRTyz4iuXvHb3UsaqQeJgNq52WtnbtDLNLsVjweHxovr+mTF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/>उत्तर भारत में निर्गुण संत परम्परा की जो धरा प्रवाहित हुई उसका श्रेय कबीर को दिया जाता है | वैसे तो कबीर का जीवन किम्वदंतियों , अटकलों , चमत्कारिक कहानियों से ढक दिया गया है |</div><div style="text-align: left;">जो बात असंदिग्ध रूप से कही जा सकती है वह ये है की उनका पालन - पोषण एक जुलाहा परिवार में हुआ था | इस परिवार को इस्लाम धर्म में आये हुए अभी बहुत समय नहीं हुआ था , इसलिए इस्लाम और हिन्दू दोनों धार्मिक परम्पराएँ साथ - साथ चल रही थी | कबीर के गुरु के रूप में रामानंद का नाम लिया जाता है | इस बिंदु पर विद्वानों का मत भले एक न हो लेकिन निर्गुण राम के प्रति कबीर की निष्ठां संदेह से परे है | आजीविका के लिए कबीर जुलाहे का व्यवसाय करते थे | कबीर के जीवन काल के सम्बन्ध में अध्येताओं में मतभेद है | मोटे तोर में उनका समय सन 1398 - 1448 माना गया है | </div><div style="text-align: left;"> कबीर की काव्य - संवेदना लोकजीवन से अपनी उर्जा ग्रहण करती है | यह संवेदना मनुष्य - मात्र की समानता की पक्षधर है | जो परम्परा मनुष्य मनुष्य में भेद करती है , कबीर उसके खिलाफ खड़े दिखाई देते हैं | वे शास्त्र ज्ञान पर नहीं ,' आखिन देखि ' पर यकीं करते हैं | ढोंग और पाखंड से उन्हें गहरी चिढ है | वे सहज , सरल जीवन जीने के पक्ष में हैं | प्रवृति और निवृति दोनों तरह का अतिवाद उन्हें कभी स्वीकार नहीं हुआ | उनकी कविता में एक जुलाहे का जीवन बोलता है | वे पुरे आत्मविश्वास के साथ प्रतिपक्षी को चुनौती देते हैं | उनकी कविता जीवन के बुनियादी सवाल उठाती है | इन सवालों की प्रासंगिकता छ: सौ साल बाद आज भी बनी हुई है |</div><div style="text-align: left;"> कबीर को ' वाणी का डिक्टेटर ' कहा गया है | इस का अर्थ ये है की भाषा उनकी अभिव्यक्ति में रोड़े नहीं अटका पाती | वे बोलचाल की भाषा के हिमायती थे | उनकी कविता में तमाम बोलियों , भाषाओँ से आये शब्द शामिल हैं | कबीर की रचनाओं की प्रमाणिकता को लेकर विवाद है | कबीर की रचनाएँ प्राय : मौखिक रूप से संरक्षित रही , इसलिए उनमे भाषा के बदलते रूपों की रंगत शामिल होती गई | इन रचनाओं का मूल रूप क्या था , इसका ठीक - ठीक पता लगाना आज बहुत कठिन है | कबीर की वाणियों का संग्रह ' बीजक ' के नाम से प्रसिद्ध है | कबीरपंथ इसे ही प्रमाणिक मानते हैं | कबीर की रचनाओं का संग्रह और संपादन आधुनिक युग के कई विद्वानों ने किया है |</div><div style="text-align: left;"> कबीर को हिन्दू - मुस्लिम एकता का प्रतीक बना दिया गया है | एसी समझ प्रचारित कर दी गई है की कबीर दोनों धर्मों को आपस में जोड़ने की कोशिश कर रहे थे | जहां भी ' सर्व - धर्म - समभाव ' की बात आती है वहां कबीर को उदाहरण के रूप में रखा जाता है | यह मान्यता पूरी तरह सही भी नहीं है | कबीर मात्र सर्व - धर्म - समभाव के कवी नहीं हैं | वे अपने समय में मौजूद सभी धर्मों की बुराइयों से परिचित हैं | उनकी आलोचना करने में वे हिचकते नहीं | उनका व्यंग , धर्म का धंधा करने वालों की पोल खोल देता है | हिन्दू और इस्लाम दोनों धर्मों में उन्हें मिथ्यात्व दिखाई देता है | वे इन संगठित धर्म - मतों से अलग तीसरे विकल्प का प्रस्ताव करते हैं | समाज की गति पर कबीर को गुस्सा आता है | उनका गुस्सा इस बात को लेकर है की यह संसार झूठ पर तो विश्वास कर लेता है लेकिन सच बताने वालों को मारने दौड़ता है |</div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">संतों देखत जग बौरान |</div><div style="text-align: left;">सांच कहों तो मरण धावै | झूठे जग पतियाना ||</div><div style="text-align: left;">नेमी देखा धरमी देखा |परत करे असनाना ||</div><div style="text-align: left;">आतम मरी पखान्ही पूजै |उनमें कछु नहीं ज्ञाना ||</div><div style="text-align: left;">भुतक देखा पीर औलिया | पढ़े किताब कुराना ||</div><div style="text-align: left;">कहे कबीर सुनो हो संतों | ई सब गर्भ भुलाना ||</div><div style="text-align: left;">केतिक कहों कहा नहिं मानै | सहजै सहज समाना ||</div><div style="text-align: left;"><br />
</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-75865977898946773832011-02-22T23:24:00.000-08:002011-02-22T23:24:49.321-08:00अमृता प्रीतम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div><div style="text-align: left;"><img src="data:image/jpg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wCEAAkGBhQSERUUExQWFBQVGBgYFxgXFxgYHBoXGxcVFhkaGBcYHCcgGBkjGhcXHy8gIycpLCwsFx4xNTAqNSYsLCkBCQoKBQUFDQUFDSkYEhgpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKSkpKf/AABEIAOMA3gMBIgACEQEDEQH/xAAcAAABBQEBAQAAAAAAAAAAAAAEAgMFBgcAAQj/xAA/EAABAwIDBQUGBQMDBAMBAAABAAIRAyEEEjEFBkFRYRMicYGRBzKhscHwQlJy0eEUI2IzkvEVQ6KyY4LCFv/EABQBAQAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAD/xAAUEQEAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA/9oADAMBAAIRAxEAPwCzbSvVw4/+WfQK2tpWCq2LZOJww/ycfQWVwpAR1QM9iU26xRjBzXtalIlACSlNunBhjyXrqJag8hLASNEsIOaUpuFtK8bdFNCBj+n4r1oTxTZYgaeEDtHadOiwvqvFNo4uMD/ldtnajKFJ9R5hrAXHnA5dTosH3l3mqYyqajyQ0TkZwa3p1PEoLvvJ7SWB7RQfnbYmARPTMflCrWK9qWLce52dMCxhkk3/AMuKqLnSSkAILSz2i44Ge3m+hYw+vdVu3b9rIPdxQy8nsBI8CzXzErKXvslB0QSg3rG+0PCU6PatqdoNA1nvE/pMEDqUHu/7UsPiaopOa+i5xhmaC1x5ZhoT19ViP9RxlOYTHmm9rxBLXBwnmCHD5IPpulXDgCCCOBHFOyqHu7v5h6hk/wBnOC4tc6wI94gixBtp6K34Da1KsJp1GvGvdcD4aIDg0JmthwU7EpJQDHCW5od+FtcfVSQCS8IILE7Dov8AeoUj402H6Jobt4caUWjwGUf+JCny1JNNBXjhnHEUn/hbmm/OwVnpO0iFDtanqVQjmgmsuicKjaWNPFFNxAKAgDikGDqkZ54qOx28tKk7s+895/CwT5E6AoDzR9EgMTNHaxI7zS0HgYn4KK2rvlQoe+9oPIXPoEE7TZdPg2VQoe0TCOMZy3xafop/CbbpVR3Htd4H6IDahTDjAlc+qg9pl2TNTu9t4Mw4cW+Y0PNBj2/+8Dq9VzJIYwluXgS0m59VR6jrxw8VZt82g4h7ho/vRx/KZHAyOPFVp9Ak2CBDXL3NbW6XTpHikGn1QONbPHkmajpP7ImtTht0KSg5zvv0Q7yU68+SbcUD+Bx7qb2vaYII/wCPBWj2e7eNHHU5dDXuLTy7wt/5QqYSn8HXLHNcLlpDhPMGUH1VTfIngUpzbSgdiY9lahSqMs17Gub4EaeWikA3wQetbC9ypLiVwegQVxXJMlBEionA5ZlX9oNQ6NDb6iTztdSOyt562IqNpsPecYAA+qDQGgnRKFYhSVFgaA0TYRPM9V4+iDqJQVLbe3XGaNEy82JGvgEVsXYTaDZgF51PjwBU5hdjUWuJZSY08w0A+qPfSBHBBnG9+36kPp4cOOQHtHsBOWOAI0WU18SSSSTfU9V9Iu2c1rCwNaGumQBAM6zCyPfbdPDUnxQfFQXdSJkf7vwnofggpjMRHFG4baJFw4g9FGYjDlpvI4/fNNioguWC33rsgdoXAcHX+asmzvaLIiozpLT9CsuzdUTQxLpPFBP7da3G46o6kIaMoJiJcBfznirFsTdBgacwBJ+CB3C2aDRc43LnuN9bQNVdqXdGkIIN+49E3DBw+Citr7jtaJY0TrEdZ14K9MrIbGiQUGG7SwzmvLTrPEePqotzr3++q0ferZjXyWjvc+YlUHG0SHEckApHJNuCUXLnGUDDkqm9dHmlhiD6C9mOObV2dQDdaYNN3i0n6EHzVuFlnvsfpBuCMSS+o5x6QA0Dxt8VoIKBWdeZlxSXBAlwXq8C4hB81ZrrQ/ZNh+/Wq8WMa0dMzrn0BWdg35K/+yfHAVq9M/jphw8Wugj0cg1ijMJ0JqinQUD2H1PgnixM4Y3RSCO2niBSY57vda0k+AEr5/2ljTUqOc90Oe4ujxMx9PJa77UMWWYJ8ficxvkb/RYLXfLvP7KCXZTaRlzgjkeH7KNxWELL6idf5S8BgalW7QA0ficYb6o002U5zPNTmGgBv+51/QBBFGp/wl4YSU7TDJ9z/cSU9jMSXHsqQ4d7KA2Z0bIugmtnsrUGg03Q+A6JOhuLExoVe9gbxsxLIcMtRvvNPzHMKv7wbrxSpvY2HBjGkgGQWhsHw7seaFp4Uh1M0qna1BAcSMjg7j+ph6oNBbcJrEUzGqjtqbUdQoNfEmBrzMKnYreXGF1nC+gDQUExtzBEBxMXCz7blK8qfr7TxD5kuJ5fwoHaoc8XEFBBuATRRFSiRYhMuagQArPu/uXiMTlc2mTTdJDpAFpsTwMqG2PsypXqtpUm5nO0HzPQBbxunsd+FotY5+aOA90dAgP3c3bZhc+Tuh4YS0XAeBDiPH6KbCFOMAEkgeJSsPi2v91wdzgygKyrw00sOXSgaNNcAnCUhzkHzZlCmtztpDD46hUJhubI/wDS7umfUHyUTkSJIGkRf4oPpWlluPSE9ltZRG6uN7fDUah/FTbPiBB+RU1k6IE0TdFFMBkFOlBQ/avUjA+NUf8Aq9ZLgt3z71XuiJy8SORPAfFaV7Qd5G/6Qg5XFx/VBAjyJWbYnaRNzHXpcoCMfioaAA0NGgGkaaFROIrE+B4/uurVidTb18EM10mJQE0WGBlEuJgCNSdLLQt2tyhTYHVBNQmXHrr6KvbgYEPxGdw/02kjxJyg+V1qNCva6BxlKWx80NS2K0PLjcmwgAQn/wCta1sp3Aku77pE/h5BBXN88PnDKbbBon9lWNqbCD7FsOcBDho2DYhsCRa/irLt3Euc9xDczWxJ5I6lgxUYw8rtPj9EGf4rZhaGtY57nQcxeBr/AInUcBBXVdmPeBIh3EyOi0R2ymTJA05BV/brg0w37/ZBn23sHlAjqoMUDKtu3aOctHIHwUTVw/Ztl8Am4HEk6W5ILt7MdltYx1UFpqOs6CZY3gCBxMSrztTbDcPSzuudGji4rD9m7VfSPce5p4kGPXopyvt92JgVXS4WaTp4EaA9UB20t5KlV2aof0hug8k1R28WTJ+noRoVDYgkTNiOaCq1T5aoNS3d3/AIZWcTTNg5x7zP1Ee83qbjqr/Trh0EGQb+K+b21usxr4LRvZrvETOHeZiTTM+o9L+RQaZKS4Hmh21OqeaZQfO0/wALqbdRZdyS2oNT9ke1s9B2Hd71OXN8Jhw9fmtEc2yw72f7R7HGMMw0mD4OsfjC3AO4IOzS2eXNR+8W1+wwr6gPejK39R0+p8kcX8Oao3tKx2WmynzJcfl+6DMsdiiSSZJPNRuSXAc7IrEGTrPmicHTabF0XadJv5c/FAPs/YNSu9rKYl0+AteSeSlj7O8UD7gPUOFv3Vg3bxtHDmo8Euc6NYEC5PE/YUnid9H05/06gmCA7KfKdUERuxs92HqOpvaWuLbSNYPA8ePorJhnEy29l5R3lwlZpzTmAkDKcwPSFxrAEEOpNJE3eJ04tgQUDW0mZQLAuBmOaOo7UPZyBMC4m8xooHaW23hwP9pwHI3/APZC0MY2oM4caNQEtztuHDWCHWcg7t8Q+oWmKbDwInVWTZjWsYKYM5QAFS8TVr9p/qCpbXJl+IKlNkMq525nCOOqCf2hXsqttKCb3++Kk8fiTm1BjrKq23tphohsl5meMN4k9AEADtpd9+RrSYyguu3rA5zx4Qoikw4hgDzDmWDiJtrDo94T6JQo5XwByI4ayfmlsw8VXATfvC/PX/ylAJitl1KJBeO66zXtu13mOPQwei8aIV22OWMzNcGltSMzXXa4RxabSOYQu3N0A1pr4c5qQPeYTLqY8fxM66hBAOqZqck3ZEnmJj4fVA1HdfPkisO2JE2II58P4Ue7ofj52QetdfqOHPwUhszaTqNVlRurSCPDj9VEkSARMhOU608NfgUH0HgsaKjGvGjgCPO6Oa9U7cvGZsJS6Ag+R0VmpVEGBYerw+/BFB1kLiKR94ahKo1ZEoJPBV8pB5WW67r7aGJwzHz3gMr/ANTf3F18/seFb9wd7f6eqA4/23wH9DNneXyKDZarrLKPaPjc1eB+EAfX5rUs/odDw5rFt9MRmxFT9R8oMIK2HAmfTorRsTdirXa1zGw0EAudYa8OZEyqxQbLp+/RbPu9hDSw1NrjBDb9Jv63QeO2BSLAzI0NFh3RPrzXDYOHDOyyNgm4LRfzjVGu2jSb+IOPIXPoFGf9Yo1XubNxYhwI+B+aCMqbBOEf2lFoc2O806+vFEbP7OqHEsZczdom/U+CX/1Msf2LnZg4Sxx1/STxIGnNAGiaFQDNIqDMOY1BB89EBuKosDDDQPABB7LcxoNMgESTB+i8fXnih8U0EX+GvqgPr0aQl0BoAUPitsBvuXUVVY4uIk9BNk1VouEczoIhB5jNpPIMWJBsq24nP34veRPIiJ1E6K57P3We8do6zTpJgkj/API+KjKuycxGUSM2o6II2jgyXN5xHOdFPs2EHOB0I0PMa/NSGH2TlcLfDp9+qnaWzYE9Agq23sM5lNmSbOAd0a7j6/NTWw8SKdYUgAG5L/5T9dUvGYQkEHjKhhXjEsOlgPMygit7tg/01c5f9N8vYeQ4t8QfhCp1WmfHyv6rXN/mB+A7SBmpkX5BwyGPMhZI6t4oGiSOvzCbdWA4a/fknwJPAeKGqiTqg1H2e1x/SkAmc5+QVzw1SBzVB3Hrt/p7CO+4HmTa/wAlb8NiDGnzQZEHTqmKrcpkeY/ZPPsV43QnmgXTIPUL2k8tchQcvh4aJ7tJtw6fRBre4O9uen/T1D3mgmmTyFy3xHBUDblWXk85+PVReCxpY8AEg2iDHp1Tld8mfigRSrw7ktp3cxvbYam7Ult/EWKw999Ab/JaJ7MscTTfTJ90z5O/lBfiWsBsG84gfFQmK2vh35g8sdy0J8puE/tzZhqtyiADx4npbgoHC7DDXd4THz0MhAg02MpFxJd3Z718saAE68D5Ks4XaU1QSZk8blG75bVDG9mNSOfDwVDZjzmmbckGt02B0HUfVDY1sG3lpqoPY29jQ2HSF5i9uhxJafhCCYwGDDngnhdWLZ+77HuJI7oN548YVe3WbUrnKyBoS7VrG25au5BaHRw4ptDRZrbX48yUEXt2mRSLWQHOGRvSbT5CSq1hqDWPFMREQLaxqfFWnFvzd7gNPqfNUzaOIIxDS38Lh580Fhbg9PFHuo2TeCfmaDPij+CCCxuFkHkq1Vw0umxyxP8AwrbtCzTzVaoUXNrGRqAQDyQTmLwZr4KswXc6mY5ZgJHxCw2rXJ1Ec+EfuvoPZTYabyNQsK3rwHY4yvTOjaj4/STmb8CEEUaljxXrAXGA2SdANSeQTMq37l4PsyapjM4Q1rhoLGb6EoLFu3gBSoMYR3ol36jc/fRWLC6WQFNofOUgW0RFAEDX7sgy+u1IhTON3crt/wC1UPD3f2Ue/Z9QWLHg8sp/ZAK+89Eyx8eHLkiK9BwJBa4cpBHzSBQMRH3wQKpd5w6XH8J49fgk4KgQ4SOfyKILI9OiBgPE8FcPZy13bOIBy5YcfMQqe5krWNwMCGYRsiC8lxn0E+SCzNghQ23awpNJJ4ypR9QNvqqDv5tj+2fwzYBBQ9uY01ajnDQmyjWMg3KUWkmVzhCD01r2srtuPQbXAp9hnqBwc57vdDQfxHlHDiq5sDdytiqmWm2fzOOjRxLjw8NStz3c3ep4WmGMH6nEXceZ/ZBIYLZ7KY7jQ0HkAJtHDwQ2OxOc5AbA3P0CcxmOk5Kd+Dncug6oR7xTBmyAXaeKDGwqtTbLi48bhObR2marx+UfHrPJLomwtayCe2L7vn6qVY8QqtutjBWwocHS8Odmk3BzEgdBEQpWniSwX4/BArbGJaLHQAkqJxLJbQqRFo/ZRm2ccX1DeARHjcD6qaw9PtKQH5XA6cNEE3gGwwLLPa1sktxTaoBIq0xP6mEtPwyrV8OLBVn2jYPNhhUETScOE91/dMdZy+iDGsHgjNwbX/lWbZby8hrbkW8CFFYtvZ5AGZXhoa+c93STcG4kRbRSux9qf09N5IBJvaddCNNbixQW3BYcMbcyfvgpJrxEz6Klt3nqOIim0A5u8XCJDc2XNpmjhquw++LhEhjyRJyF3dv7rgRr4c0GyNo87r12z2nSEp7yvA7ig9fs5uWCJlRGE2DRzkupsLueUFWGjWkIau2DPqgoe/OwKFACoxrWveS0QOOUm0aGAs5e655evS62Lfpwdg6kiYykdO8BbkYJ9Vj1SUBewNm9vWazhMu8Br4LYMHhsrABYKp7ibPDGyR33DNJ1ykw2PQq5t0QD4lmqzLe2g+pWFNjXON/dvrA8OC0vHuMWtzWb7dx2WudYEc4v1CCOw24GJedGsH+TgT6Mn6Kf2V7MqYM1qpqRq1gDR4F2vpdC0t8+7EOiNGw3Nzkp/D78cLU7GJ4eAsPig0bZuGp0WBlNrWNGjW/O93HqlYnFEjiG/E+PILNm76sa7Nmc53Mi/lwhe19+swguETxP0CC8VNqtpi6re1Nsl8l5yMGg4n91Xa+8U6d42IPD0QzcRmdmeS8wfLoAgmqNXP3iIb+EfupPZlQPqAC8QdIVcr7QH3yU3u24hmY2Lj8BogRtvYNShVNfCuLcx79MGBzMcCP8etkN/8A20jJUZkdHXWOIPNTeO2iLcpjyULtZ1N34RpyCCJbtQVKgGh153F4BC0Ddsy2eazrD5c9gBblxV03dx7Q0Cb34oLXTMeSh97Dmwddre85zCGiQJ0J1tYAnyQu3d5W0GOebwBbiXHQBZbU247EFzsWXvGUhmQtaGP4Etj3eHNAzVdmLxSktc1kvqNGdrx+R020jmQESILCC3PUe4kuzk6A917DN5EgzKGp13Ma10FoZUDczSGknXxkfmGik6Nd2RtXM3O4PcTnJeCDGZ5EFhN9DdALUqOfmc8klwD4JJzGzTIbbMBxMJQwrgbRo2wh1omTlMZvPkj8I0O7NjPecXMytmnUgtzgvqHuua7TnAUd2QLjlc0xYsc5rC0ixE+64aXF7IPoJ7fNNGyQ9pixI6Idw8jyP0QFiuBxhJrYqRa3igvFcHoIffGqX4ZzNCS0H1n6Km7E3YNRwLvcab9TyCvO18GahYAbEmfIImlhGsaGtsPv4oE0sJOXLAe0dzgCOLT0tI5J9tabQQ4ag6/ymZSnutrPKboBdo14aeKzHbTg6sb8uv3qtD2hSBBJ06D6mVmW1bVngQBaPQIG3OgXHhH15JL8PHva8OoOi9p4iLAag2Jn0lKp4cmA3rObhy8EA5ibxyTOSeBTz2WvA8TrzgcDIXgbo7hfjoTz5IBmUzm5Rx8FKbPrtcYcYPibjmmalJpAj1HE9eqGfs4udwjiSIAHMnQILLSr0i7KxoL9C7WAdYGkqzYMtDIB8lRNn4d1KRAkQTBnXT6KT/6k9rYuPERa/wC3xQSeNxUuibDQellHY2rrzt+1wgX453I80PicaRcgj74oDMHXd2jcoaXcAbT4lSO2MZ2TO0nI63dIuegcLFVGriXOHdm1gRzTNTGveA15JyiBOvn1QPbS2g6q4uc4kAiGzIECLcEiiyZA0dwOluo1nSEnsgW8uUcDz6p7D1MujjJuZBgHQkZTe3IICOxpgveIa8FpDG5coEFpkk5pvoAQnA0HM3M0PdNnk0yXOFiCO7FjANuKEZQLnNsHWLAWSBJgAGwIOtzYwiKD+xZVGRr8wyOqHMQJJgh/uzDhbpKAg0ajxUa8tB7MOcahaHf2xENe7mIsDxTlPHOpEhlXJSflIDmgkuAyk6OdHCbBMM2kKT4pEvAbAD3AszGxc0iwAsRBGqi6+Nc3M2Gkl05nEF1gRGcHvAzPkg+i869IDk+/CgDryQ3aRwQNVcKYnX5/ygS5SpxiDxjWvEgw771QBurQ6J4JNTEW/lA4quQ4ZtYXhfmCAk1OqdaSVFmoQnHYqByQK2g8QQs827R/uu5fxHkrjjMSTHzVU2tLnE+XwQV821TtPGmwdJE+frx8F67DOlDvYeIj7AQFluZwOYEgc4J0mx0nkixgHFwDWvuRYDN4kx6WUQR0SQ4ggtJBBtltHHggnqdGHGTo50tGsi3eNw0AeZTD3x7wLTkJb4ZozXMR1HBD0Ntm5qAVJtJkOvaQ9sGfGU6zFteYzgTY9ra36hY8rhA4496B+HLebRAJvxFo815VxeQRAcIkB2hJIBlo4ydSV2KqBsg5h1DpFwA0AjQRe/0QGcwXDvCAJOruEieJQHtxAnvd0HLYEgwbG5kAg+K9NFroa0/nADvqRrfohKMmMwMNjMDy0A5mbQOMeKbZjckQJJnuiLzESePUadCgJdgTSFxEkQRBk8QIkeiRUeLyGkgCZdeDqbX5c0Phq5kToSW5YtGlwRFpmUW6mHMygBgc6S5zSXNb7uZpF3U51HCOKAenlJgRzHWBPLWLpOSD7vAHTQE8pmV3bkPcW1GznAcWsEW/G20AG8iy9r1GOZEFzgCMzhEknp0iJ6hB4zDua4OaO9mLWtuanU5OIukudVawsY55a50Gn3wwu4EtsJtb5JOHrOpuJpjIQCc2bvAAAHK6RcHleF5UxDM7jUc+pUL2yQQ4PAvOY94OHNA66s2s6pHZ4ZopgOpdo9odlOjS6cx1tYXCDxeLaHl1APyd0N7SHOiLyWm2ggJFaowsBb/bcCQSXElwPG2n5SOKTjdsF7g4mTlaIDWtgNs0EhoDjHGLyg+p30vBMVcKDfQo/sea8FFBD1aR5IOth1YalIaEIaphxHBBUNqMBbB1Gh+h6KN/qe6rhjMA1wKr+K3VvLKkdHCR6gghBGdte8IevigEXiN3qjGuPaNn8IAN+eadB4KOqbuYh0HuDn3j8svVBGY7GjTpwQtOg50BTB2AymZq1BP3ClcJslzo7KiQDPef3fhFwUENhtisdqXTyiPiULj9iUhPE8BqfgFdGbrOderUIHJlh6qWwWx6VL3GCTxiSfMoMWq7DdexF+NvVRuKwj26gnwW9Y3Z7KoIc1rvEX9VW9rbltIPZmDydJHrqgx/PzCSX3urdtjdd1MnOwj/ACGnqq3itmFpsgFp4ktdLXEeH3dPs2r+dgOklvcPllMT4hDuokcEM50aoJpuMa+7TcmcrtQ4iDB0I8Uh7O9A7riTxgeQBgqHDksYkgAA2vY3Hofogl8Fmc6aZp030gXZi8NkCRaT3j0Tg2hTbdgqP7tswAyvJGa8XZ5A3UK7Gad0GNLmPGOCYq4hztTM+noglW7Tc3RzWZQQIEkgnQka2tdC1MWDqSYgHl0QAXSgffiB+UeckDrHNMvxLp1Plb5LrleCiSgbXoRFPBO5Ipmx3axKD6zNVJcSmTWDeKSMTOknw/lA8DGqFq1bxCe7BzuOUdNU2/ZIOjj5lAxiIjWEBVqgCeHM2HxR1XBOGgB+7+aaFGmfebfSHfQGyCDr4h1Vw7FpqXiRAaOck8E4zYlR5mpUyDg1mv8AuOqsJI4JtzunmeSALC7JpU/dZfUl2ukTKIi+t/C/qlO4yZ8bJoVheOHl6c0Csvl8Uy8CYmTrc/Reuqcz5BNurT08QECXEcZHTSfJIqO6T8EpxvPD70TL2/8A2vxNh1QNVgCYj4W9dCq7tfdelVuBkdzbHxabH4KxvdaPevFtB4pt2G04DkAgzDau59Rklo7QCT3AZ826+kqr18H0vyjRbbiaY0PpEqH2nu+yrdzATwPHh+IXhBkAoEXKT2WqvmN3HME0zf8AK/6Pb9R5qvYnYL6Zh7HDkYsfMWKCvmhItdKbQvHJSTtmifuZSqeHdM6+P7hBGnCHl/ynGbPJU3hg3/uSwGYn3Z/UOPip+ju0HNDmHMDfh8I4IKjS2bLoAU1h91nROXu/EKz7J2NTNi0gj8wt5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/>अमृता प्रीतम का जन्म गुजरांवाला में सन 1919 में हुआ | उन्होंने छोटी सी उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया | उनकी कविताओं की दो शुरुवाती संग्रह ' ठंडिया किरणां ' (1935 ) में और 'अमरित लहरा ' ( 1930 ) पारम्परिक अभिप्रायों और विषयों से सजी भावनात्मक पूर्ण उपदेशों को दर्शाती है | मार्क्सवादी विचार और प्रगतिशील लेखक आन्दोलन के सम्पर्क में आने के बाद ही उन्होंने सामाजिक और राजनैतिक कवितायेँ लिखनी शुरू की | इस समय की इनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से ' पत्थर गिते ' एक है जो ( 1940 ) में लिखी गई थी जिसमें विरोध और आत्म दया जैसी काव्य मुद्राएँ मिली है | 1940 में देश विभाजन के समय वे नई दिल्ली आ गई थीं | यहाँ आकर उन्होंने अपनी मातृभाषा छोड़ कर हिंदी में लिखना शुरू किया |देश के विभाजन और उसके परिणाम स्वरूप बहुत बड़ी मात्रा में औरतों की बेइज़्ज़ति, अपमान और बलात्कार ने उनकी लेखनी में बहुत ज्यादा असर डाला | उनकी रचना ' पिंजर ' ( 1970 ) में आई जिसमें इस वक़्त का बहुत ही मार्मिक लेखा - जोखा देखने को मिलता है | जिसमें धार्मिक और राजनितिक संघर्ष उनके अपने नारीत्व के नज़रिए से देखने को मिलते हैं | अमृता प्रीतम को ( 1956 ) में साहित्य अकादमी पुरुस्कार मिला था उस वक्त वो पहली महिला थी जिन्हें इस पुरुस्कार से नवाज़ा गया था | यह परुस्कार उनकी रचना ' सुनहरे ' को मिला था | इस रचना में उन्होंने अपने भाग्य और सामाजिक कुप्रथाओं के खिलाफ एक नारी की चीख का चित्रण किया था | उनकी कहानी और कविताएँ निजी जिंदगी के संस्पर्श से युक्त है कंयुकी इनमें अमृता प्रीतम दुखद विवाह , दमित प्रेम और साथ ही सखाभाव की मुक्तिकारी शक्ति को चित्रित करती है | ' कागज ते कैनवास ' ( 1973 ) पर 1982 में मिले भारत के साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ के साथ अमृता प्रीतम को बहुत सारे राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले हैं | अमृता प्रीतम ने बहुत बड़े पैमाने में लेखन किया है | 1976 में छपी अपनी आत्मकथा ' रसीदी टिकट ' के अतिरिक्त उन्होंने 28 उपन्यास , 18 खंडो में कवितायेँ , पांच कहानी संग्रह और अलग -अलग विषयों में 16 संकलनों में गद्य लेखन भी किया है | अपने जीवन और रचना कर्म में अमृता प्रीतम एक स्त्री , एक व्यक्ति और एक रचनाकार के तौर पर स्वतंत्रता के अपने अधिकार के प्रति निष्ठावान और मुखर रही हैं | अपने गैर पारम्परिक , निजी और पेशेवर चुनाओं और निडरता ने उन्हें भारतीय साहित्य जगत का प्रेम पात्र और अपराधी दोनों बना दिया |</div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-45766472374057321492011-02-21T10:05:00.001-08:002011-02-21T10:05:32.891-08:00असदुल्ला खान मिर्ज़ा ग़ालिब<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="data:image/jpg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wCEAAkGBhQSERQUEhQWFRUUGRgaGRYXGRocHhoaGBgbHxgYGhsYHyYeIBojGhseHy8kJCcpLCwsHB4xNTAsNSYrLCkBCQoKDgwOGg8PGiwkHCQvNTUtLTUyLCwvKSw1LyksKiwsLCosKSwsLCwsKSwsLCwsKSwsLCwsLCwsLCwsLCwsLP/AABEIAIwAYwMBIgACEQEDEQH/xAAcAAABBAMBAAAAAAAAAAAAAAAFAwQGBwABAgj/xAA7EAABAwIDBQUHAwMDBQAAAAABAgMRAAQFITEGEkFRYXGBkaGxBxMiMlLB8BRC0SOi4YKS8RUkU3Ky/8QAGgEAAgMBAQAAAAAAAAAAAAAAAQMABAUCBv/EACgRAAICAQQCAQMFAQAAAAAAAAABAhEDBBIhMSJBE1Fx8AUjMmHxFP/aAAwDAQACEQMRAD8AqX3RUqBOvOnSWikc++i9rYCdPz+Kc/phyolHfYAVbGJnxpqbwAxmY61I76xhlagNBP541DnBBzqDsXl2LOXS1TnFOsJaClbqjqDFMN3/ABXVu5uLCvpIOXKcxQH7VQ4xBZCyM8jzrvDbiFCTr1pk8veUTzJOdJIVnUJt4JMtJOs+NIuA6Dxrq3e3kJPH70oBOtQTVCBaPWkHpHOjAAjLSmdwxlQsgzbWYrKVbthH5zrKJNpObC2mfw0RZwdClStOUZ07sbMpOQ+b89aleFYUMgUiDx5mpJpK2ZalLdUSBY3gnu7S4cggBMAdqhnVU3kE6ds16P8AaHaBvCrmNSED+8V5xuNY5VzCSkrRp4ISiqn2JpTMc48q5Kcsh2/xS3Dh0rQGUx49K6LA1KTrWhSilcxkaxJzqBC2CmfhPb286KhGZkUAs7gpUlQ4c/SpQ5BG8ONATPh2NArOPwRSdy7lSzvPpQ5+7HLuoA7OUO5aGsraIjWKyiTaz0BaWYVERA486Nspg5Du+1BrCBzgZwKkNuje4xH551TzSYrSYo9+yJ+1x4pwpY+t1pPdM/avOr5hURV6+3S/i1t2/rdUf9icvNVUQtuVVYwfwRbfEja5PaOFde7yHMc/5o5gGyj1xHu0fB/5CMo6VPMO9lbYALylOHl8oHcKk80Idss49NkycpcFRKbOU5fauEoM65VdF17NLVRPwqTHJRoFi3syQhBLKlEjgrOegilrU426HS0GZK0rK6S3pUgw+5324+n0oW7aKbUULEGt2Lm6sHgZHjVlUZ2SNqgi4YoXeA60Qd1pu8nKIzotFeLEmkJgSTNbrGWhuiSePDrWUBm49BYU58UcvyallkxB6VBMLeO9IOdTPD7wAVUzRsqaeex8lT+3l+bphrVKWiqOqlnPwFVvg+FF55KPrIns41NfbDc+9xNR4IQhP9sx50K2BtSbkk8B96a3sx2jXwxWTJGL9stTBrJKEgJAATkO6j6GgR17ajGK7SsWcIVLjsA+7bzIHNROQ9elJWntEtlwFb7ZP1DLxGXjWUsc2t1G1mzQctqYfuLfWKZXKBFOBc72mfWobiu2iy4pq3bC93IrOYJzmAIB7SaEYOXQ/wCVYlc2DdrtmkupUsCFiq5U2QYOUfarUbxla91t9otLWPh+lfMDkarzaSxKHSRoa0dNKS8ZGX+oQxtrLj99/cTcc9BTYuSfStqbJgdKTNuR5cauWYZ2l/pWVjdvlp51lQJa+HX+7xzqQ4bjORkiagDLx0/M6P4EZIH5rSnyVlDkimPYa7dXlwtO6JdUkFSgkEj9onWBGlPdhsGdauil1JSQkkz2xFFNorENOOOlKVBDSiEnQla4KuyDmelOcFSUN2yln4lMiSddZE/6SKq5cni0el0em84NfcRuLBw3FyWkpSVBat9ad4E5QEg6ycieA50HfwlxY3VoBdJJKUIAAbjJUpymZnKKsxhpDiREA55esUyxkJaaIj54ACYlRJ+Ef85VWWZ2XJaaDtO7AOCXqxaOI1U2IB6R9qa4ZgRctd5lwIcgxGoVvcZ/aU5yM6J7N2RU04I+IlQMdMqY7M3CW3FNLgEqgKkZkcO8aVNzV0dvEnt3P1/gyNg6HG2luKcglS99Upmci3lIhOWetB9osKStSiDG7qe/j4VYuKhpCN4RPOKg+PsH9MtY1W4lMdxJz5613hyNyE6vBGOBtfX2QZwwrnpXK1edY4n4jXC2utaR5k6QsRWVptOVZRDRNrRc8OlGcJWQodun5pUWbuSDAOvKpJh16oIiEieI1PbXDYIw5DuNse8QrL5cjlqlQ49KZYPaqctTuglTCiI1yyyB4wKd4ZfwDvGQciD6eFPNl1Bm6LSVy28Jg5QRAjrkdctBVSatm9ps2yKt8roas3gSZJhOpmn1ns2vEUe8JU2nP3atI4b8cTy5Cpdc7GsLcC1CQNUcFQZzFRnaPbe6buvcW1upaQgqBSMoTqqTkAOVLjh28yLGfX/LSxqvqyO7QbAOWKJt7hRByIUTOepyons/7NG0grcWFOLAMzpOYIjQigz+0Dzn9R55lAJyaKVLV3x6U1bxC7UYYfS4o5n4N0847OFRuzj45QV27X50w/j2AvNAb39QEDMZyTpkKDbcWZt7NoAx8cr5neSdO/yqydl7lx+0b/Vge9O8CQIiDl4iqz9sN2FBptIzkmAeGmlHHHzSQnNqpSxy39orErzrh5yk3kkTka4Dk1oGIhw26YrdJIOWlaokolNg0d7Pv7qMKxBCBAlXQUEaKlTE9n5qaeotFGADnr/il7WcvNBKrOncdcPyQPM+eQpSyxdxl5t5SircUJz4fuEDpNDsRQW4jjnNbfcUlqZEyIHU10oI4eoutrL8wLHvfCAZkTvTwJ/BRhi1BBkRn5VQOxu3n6RYbcJ92s5HIlPMdk/ernw3ahpbe8lYVpnzOUz41ScVjn5dGuv3Y7od+x6rZe1BKyygniSK6ZwlhshTbSATxAGn5nSzuJIKe6f4ppcYuhMSoDPjxyOVHJkgv4oCjlfdj18JSkyABrlXnXby/Dl8vcJKEaZzrnU22/8AaN7tJQ0qXDIMRATwPb/FVJbvlZUpWZJknqTPrTMEbluaEanwx7b5HLrJIBjKlXdl1kTAMicqkOEWCXCEnRVPcMbKkbp+ZBKT/pJq4+EYb1TUiEDZxXWsqwf+lGsrkZ/1f2C8KsAUk/SSD3U4skiFq4AlPlIreCPZ3CDwO93FP+KR2cO+zcJ4hST4g0ZcozHJ+V/0MNo2wN2eUVzitt/27AA1M+Y863tVO6OZI9KdOp/psDiYox6HqTSi0RXFsNO8qBpn+d1bwzEXmfkcUnpyqQ4na/1Vk8CB5U0fwcqIMROh4E8jwml5EbOiy7oWOW9sbkgp94YJnsI5etNr3GLhyN5w/nWkV4E8g/G0sTmIHDmK7/Sq3ckq/wBpqvSRpb5NVYPasZkzPP7101af1AkD5hHfUhwjZ91eSGlEq8KmF17Pv09g4+uC+3uuJjglsytI6lM513CXkIz47xNrsjOzhKVgHIgjWnCnPc3a0x8KyDP/ALajxmu7lIRcIUkiHACPX0p9i9sFONTosFE8jkUn186ttHkpzUpW/aDbLSSkGB+d9ZQUYqpv4FhW8nIwKygJpgaw+G9UODiEnyNbwYe7euEH9yQfBRpRpEOMnjKk8NM6WLYFz2oX61yxsun9gTtWid3tHpSgZO6yZ/dlTjaBge8b1+alPdwGeij60Y9HVvZEUvUpUXwdd9I/tqW7I26HmFW7wymOw8COtRMMguPT9Y/+TRjCXSi4G6ddzzgH0peXk1/0t7VX50HWLDdUWbgTHyqjUfUOR505tsFcQSQlLyPA0ZxW3DjAUrVIyPZpQ7Bb9eWfL0qo37N+C4r2L2mMIaPxoKepGXjQvGblTylFLkoUN2BoARUyuWQpEkZ9KilxbIWTvITrqBHpQfizqC+S2VooQzn8zC92OkwfKimKXQLCVggbpSrwj+aQxJkC5dAEBSQSOu7/AIrVkyFNqSrMAHyEVoxe5WeL1GL48jX0ZILTGmFoSoqQCdQTnllWqjLGFoKQfiGXBRHkK1QonxH/2Q==" 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style="height: 140px; width: 99px;" width="282" /></a>ग़ालिब ( 1797 - 1869 ) उन तुर्कों के संभ्रांत परिवार में से थे , जो ट्रांसोक्सियाना से चलकर 18 वीं शताब्दी में भारत आये थे | उस समय दिल्ली की गद्दी पर शाह आलम द्वितीय आसीन था ग़ालिब का जन्म आगरा में हुआ था और वो युवावस्था में दिल्ली आ गये थे | उनका बचपन पतंगबाज़ी और शतरंज खेलते हुए ख़ुशी - ख़ुशी बीता | उन्होंने अपना अधिकांश जीवन दिल्ली में ही गुजारा | 1827 में वो कलकत्ता गये वहां दो वर्ष बहुत प्रसन्नता - पूर्वक रहे | कलकत्ता की हरियाली , खुबसूरत औरत और आमों ने उन्हें खूब लुभाया , साथ ही यहाँ रहते हुए उन्हें मुस्लिम , बंगाली और अंग्रेज बुद्धिजीवियों से सम्पर्क का अवसर मिला | वे अख़बार और आधुनिक विचारों से अवगत हुए जिसने उनकी जीवन दृष्टि और शायरी को समृद्ध किया |<br />
<div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> 1829 में वे दिल्ली लौटे जहां उन्होंने बाकि जिन्दगी गुजारी | दिल्ली में उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा | अधिकरियों से उनका बराबर का झगडा चलता रहा | इन सब मुश्किलों के बावजूद उन्होंने लगातार सृजन किया | अपने तमाम दोस्तों को लिखे खतों में उन्होंने बताया है की लिखना उनके लिए सुकून का स्त्रोत है | ग़ालिब ने यह सोचकर खुद को सांत्वना दी की एक कवि की महानता का मतलब ही है ... अंतहीन दुर्भाग्य | आर्थिक तंगी से ही शायद उनमें जुए का शौक पैदा हुआ होगा जिसकी वजह से उन पर मुकदमा चला वे 1847 में जेल में डाले गए | यह घटना उनकी जिन्दगी की सबसे हताशा - जनक अनुभवों में से एक है | यह वर्ष ग़ालिब के लिए मिश्रित वरदान साबित हुआ कयुकि इस समय वे मुग़ल दरबार के संपर्क में आए जो एक दशक तक चला | इस दौरान उन्होंने मुहब्बत और जिंदगी के मसायल पर जम कर लिखा | ग़ालिब के दो समकालीनों ने उनकी जीवनियाँ लिखी | ये हैं हाली द्वारा रचित ' यादगारे- ए - ग़ालिब ' ( 1897 ) और मिर्जा मोज द्वारा ' हयात - ए - ग़ालिब ' ( 1899 ) | ये जीवनियाँ हमें उनकी जिंदगी और वक़्त को समझने की अंतदृष्टि देती है |</div></div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> ग़ालिब ने उर्दू और फारसी दोनों ही भाषाओँ में लिखा है | 19 वी शताब्दी में उर्दू और फारसी की कविता और ग़ज़ल का वर्चस्व था | मोमिन , जोक और ग़ालिब इसके सरताज थे | शायरी की दुनिया आशिक ( प्रेमी ) माशूक ( प्रेमिका ), रकीब ( प्रेमी का प्रतिद्वंदी ) साकी ( प्याला देने वाला ) और शेख ( धर्म गुरु ) के इर्द - गिर्द घुमती थी | ग़ालिब की लगभग सभी उर्दू कविताएँ ग़ज़ल शैली में हैं जिनका कथ्य प्राय : परम्परा से तय होता था | लेकिन , इनके लचीलेपन में इहलौकिक और अलौकिक दोनों तत्वों का सहजता से समावेश हो जाता था | खुदा के प्रति और माशूका के प्रति प्रेम मुख्य विषय - वस्तु थे तो गजल की शैली इसके लिए वो ज़मीन उपलब्ध करवा देती थी जिस पर कवि शत्रुवत और उदासीन समाज के विरुद्ध प्रेम और गूढ़ मानववाद के आदर्शों को उकेर ( उभारना ) सकता था | ग़ालिब के उर्दू दीवान का पहला संस्करण 1841 में प्रकाशित हुआ | मयखाना - ए - आरजू ' शीर्षक के अंतर्गत फारसी लेखक का संग्रह 1895 में प्रकाशित हुआ | उनकी फारसी डायरी ' दस्तम्बू ' ( 1858 ) सिपाही विद्रोह और दिल्ली पर इसके प्रभाव का प्रमाणिक दस्तावेज है | 1868 में कुल्लियत - ए - नत्र - ए - फारसी - ए ग़ालिब ' नाम से उनका फारसी लेखन का एक और संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमे पत्र , प्राक्कथन , टिप्पणियाँ आदि थे | एक गद्द्य लेखक के रूप में उनकी ख्यति उनके पत्रों के कारण है , जो ' उद् - ए - हिंदी ' ( 1868 ) और ' उर्दू - ए - मुअल्ला ' ( 1869 ) नाम के दो संकलनों में प्रकाशित है |</div></div><div style="text-align: left;"> हजारों ख्वाहिशें एसी : यह एक एसी गजल है जो मानवीय अस्तित्व की दुविधाओं , एक मनुष्य के आकांक्षाजन्य तनावों और एक जीवन आदर्श की तलाश में लगे कवि की भावनाओं को अभिव्यक्ति देती है | यह ग़ज़ल शेरों की एक श्रृंखला से बुनी गई है जिसमें प्रत्येक शेर स्वतंत्र अर्थ देता है और विषय और भाव की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण है | शुरुवाती शेर ( मतला ) छंद योजना ( काफिया ) और स्थाई टेक ( रदीफ़ ) का संकेत देता है | अंतिम शेर में शायर अपना तखल्लुम शामिल करता है | इस ग़ज़ल में मानव जीवन की अत्यधिक गहन और अत्यधिक उथली दोनों ही प्रकार की चेष्टाएँ परस्पर गुंथी हुई दिखाई देती है | इसी तरह विलास और विषाद दोनों ही स्वर साथ - साथ चलते हैं |<br />
कवि जब प्रेम की खोज में , जो लौकिक भी है और परलौकिक भी , और इस प्रेम को अभिव्यक्त करने की भाषा की खोज में जैसे - जैसे आगे बढता है तब ए परस्पर विरोधी भाव और भंगिमाएं उजागर होने लगती है | </div><div style="text-align: left;"><br />
हजारों ख्वाहिशें एसी , कि हर ख्वाहिश पे दम निकले </div><div style="text-align: left;">बहुत निकले मेरे अरमान , लेकिन फिर भी कम निकले<br />
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डरे क्यों मेरा कातिल , क्या रहेगा उसकी गर्दन पर<br />
वो खूं जो चश्मे - तर - से1 उम्र - भर यूँ दम - ब - दम2 निकले<br />
<br />
निकलना खुल्द3 से आदम सुनते आये थे लेकिन<br />
बहुत बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले<br />
<br />
मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का <br />
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर4 पे दम निकले <br />
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कहाँ मखाने का दरवाजा ' ग़ालिब ' और कहाँ व़ाईज़5 <br />
पर इतना जानते हैं , कल वो जाता था की हम निकले <br />
______________________<br />
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<div style="text-align: left;"><br />
</div>चश्मे - तर - से ::::::::: भीगी आँख से<br />
<br />
दम - ब - दम :::::::::::: क्षण - क्षण <br />
<br />
खुल्द :::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: स्वर्ग <br />
<br />
काफ़िर :::::::::::::::::::::::::::::::::::: नास्तिक <br />
<br />
व़ाईज़ ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: धर्मोपदेशक <br />
<br />
____________________________________________</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-88853929317830605982011-02-20T21:32:00.000-08:002011-02-20T21:32:21.297-08:00मेरे तो गिरधर गोपाल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> <img 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/>मीरा का समय सोलवहीं शती है | राजस्थान के मेड़ता राज्य के राठोर रत्न सिंह के यहाँ उनका जन्म हुआ था | कृष्ण के प्रति उनका लगाव बचपन से ही गया था | उनका विवाह उदयपुर के राजा भोजराज के साथ हुआ | विवाह के थोड़े समय बाद महाराणा भोजराज का निधन हो गया | मीरा ने तो निधन के पहले कृष्ण को अपना पति मान लिया था | मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की थी | वे प्रियतम कृष्ण के ध्यान में डूबी रहती थी | उस समय कुलवधुओं से अपेक्षा की जाती थी की वे अंत:पुर से बाहर कदम न रखे | मीरा ने इस आदर्श की बिलकुल प्रवाह नही की | कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम ने उनमे अपार आत्मविश्वास भर दिया था | तमाम वर्जनाओं से बेफिक्र वे साधू संतों की संगती करती | कृष्ण की मूर्ति के समक्ष मंदिर में नाचा करती | राजकुल के लिए ये बेहद अपमान जनक था | राजपरिवार उनके विरुद्ध हो गया | मीरा को तरह - तरह से सताया गया | उन्हें मारने के लिए विष का प्याला लोक स्मृति में दर्ज़ हैं | सारी बाधाएँ मीरा की भक्ति के सामने बेअसर साबित हुई | कृष्ण के प्रति मीरा की विह्वलता उनके पदों में व्यक्त होती है |<div> मध्य युग में स्त्री का स्वतंत्र व्यक्तित्व समाज के लिए कितना असहाए था , मीरा का जीवन इसका प्रमाण है | मीरा अपने युग की बंदिशों का डटकर मुकाबला करती है | लोकलाज की निरर्थरकता के सम्बन्ध में उन्हें कोई भ्रम नहीं है | वे खुले तोर पर घोषणा करती है _ </div><div> ' लोक लाज कुलकानि जगत के दई बहाय जस पानी | </div><div> अपने घर का पर्दा करि ले मैं अबला बोरानी | '</div><div> मीरा के समय के प्राय : सभी महत्वपूर्ण भक्त कवि किसी न किसी संप्रदाय से जुड़े हुए थे | सम्प्रदाय से जुडाव सुरक्षा का अहसास करता था | मीरा ने इस सुरक्षा को भी नहीं स्वीकारा | वे आजीवन सम्प्रदाय - निरपेक्ष बनी रहीं | मीरा के गुरु के रूप में रैदास का नाम लिया जाता है | लेकिन यह मान्यता असंदिग्ध नहीं है | मीरा की पदावली का सम्पादन कई विद्वानों ने किया है | मीरा के पदों की भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा है | कहीं - कहीं विशुद्ध ब्रजभाषा भी दिखाई देती है |</div><div> संकलित पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम की कथा कही है | कृष्ण ही उनके सर्वस्य हैं | दूसरा कोई आश्रय नहीं | कृष्ण के लिए उन्होंने बंधू - बांधव सबको तज़ दिया है | संतों के सानिध्य में उन्हें सुख मिलता है और संसारिकता के घेरे में दु:ख | विरह जनित आंसुओं ने उनकी प्रेम बेल को सींचा है | यह प्रेम ही जीवन का सार तत्व है | लोकापवाद ( लोगो द्वरा की गई बात ) की चिंता क्यु की जाये ? मीरा की भाषा प्रभावपूर्ण है | पद रचना में शास्त्रीय नियमों की बहुत प्रवाह नहीं करती |</div><div><br />
</div><div>मेरे तो गिरधर गोपाल , दुसरो न कोई |</div><div>जाके सर मोर मुकुट , मेरो पति सोई |</div><div>तात मात भ्रात बंधु , आपनो न कोई ||</div><div>छाडि देई कुल की कानी , कहा करै कोई |</div><div>संतन ढिंग बैठी बैठी , लोक- लाज खोई ||</div><div>चुनरी के किये टूक , ओढ़ी लीन्हीं लोई |</div><div>मोती मुंगे उतारि , बन माला पोई ||</div><div>अंसुअन जल सींचि - सींचि , प्रेम - बेलि बोई |</div><div>अब तो बेलि फैली गई , आनंद फल होई ||</div><div>प्रेम की मथनियां , बड़े जतन से विलोई |</div><div>घृत - घृत सब काढी लियो , छाछ पीओ कोई ||</div><div>भगत देखि राजी भई , जगत देखि रोई |</div><div>दासी मीरा लाल गिरधर , तारो अब मोहि ||</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-89728427175124395632011-02-20T02:04:00.000-08:002011-02-20T02:07:42.126-08:00महाभारत :<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;">'<img src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQUPf-ah4RrubPUPt6pUxkfUzWsUCrUHQdvNYUbJmSGTn3zT0IiWA" />भारतीय परम्परा में रामायण तथा महाभारत को अत्यधिक महत्व प्राप्त है | इन्हें उपजीव्य काव्य कहा जाता है | उपजीव्य कहने का अर्थ यह है की ये ग्रन्थ परवर्ती रचनाओं के स्त्रोत रहे हैं | संस्कृत काव्य - परम्परा के अतिरिक्त भारत की दूसरी भाषाओँ के रचनाकारों ने रामायण तथा महाभारत के आधार पर अनगिनत काव्यों की रचना की है | हमारे सांस्कृतिक मानस के निर्माण में इन कृत्यों की उल्लेखनीय भूमिका है |</div></div></div><div style="text-align: left;"> रामायण को काव्य कहा जाता है और महाभारत को ' इतिहास ' | यहाँ इतिहास का मतलब एसे पूर्ववृत से है जिसके माध्यम से धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष का उपदेश दिया जा सके | रामायण को महाभारत से प्राचीनतर माना जाता है | वाल्मीकि द्वारा रचित ' रामायण ' की कथा से महाभारतकार न केवल परिचित है बल्कि वह रामकथा प्रसंगानुकुल प्रस्तुत भी करता है | रामकथा का वर्णन ' आरण्यक ' द्रोण और ' शांतिपर्व ' में मिलता है |' शांतिपर्व ' में प्राप्त रामोपाख्यान सबसे अधिक विस्तृत है | इसकी व्याख्या शोकाकुल युधिष्ठिर को ऋषि मार्कण्डेय सुनाते हैं | वेद व्यास को महाभारत का रचनाकार माना जाता है | वेद व्यास का पूरा नाम कृष्ण दैव्पायन व्यास है | वे सत्यवती तथा पराशर के पुत्र थे | यमुना के किसी द्वीप में पैदा होने के कारण उन्हें ' ' दैव्पायन ' , शरीर के रंग के कारण ' कृष्ण मुनि ' तथा वेद का सहिंताओं के रूप में विस्तार करने के कारण वेद व्यास कहा जाता है | महाभरत युद्ध और ' महाभारत ' ग्रन्थ की रचना के समय को लेकर विद्वानों में पर्याप्त विवाद है | ज्यादातर माना जाता है की महाभारत की रचना बुद्धपूर्व युग में हो चुकी थी | बुद्ध का समय छठी शताब्दी ईसा पूर्व है |<br />
वर्तमान महाभारत में एक लाख श्लोक मिलते हैं | इसी से इसे शतसहस्त्र संहिता भी कहते हैं | विद्वानों का विचार है की यह किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं हो सकती | दुसरे रचनाकारों ने समय -समय पर इसके कलेवर में वृद्धि की होगी | इस ग्रन्थ के विकास के तीन क्रमिक चरण माने जाते हैं ___ जय , भारत तथा महाभारत | मूल ग्रन्थ ' जय ' के रचनाकार महर्षि वेद व्यास हैं | इसी का विस्तार करते हुए वेश्म्पायन ने ' ' भारत ' तथा सोति ने ' महाभारत ' का प्रणयन किया | महाभारत में अठारह पर्व हैं | अपने वृहदाकार ( बहुत बड़ा आकर ) और तमाम विषयों के समावेश के कारण इसे विश्व कोष कहा जाता है | इस ग्रन्थ की बहुत सी टीकाएँ की गई हैं | इसकी विशालता को लक्षित करके ये कहना उचित जान पड़ता है की ' इस ग्रन्थ में जो कुछ है वह अन्यत्र ( दूसरी जगह ) है , परन्तु जो कुछ इसमें नहीं है वह कहीं और भी नहीं है | ' प्राचीन राजनीती , लोक -व्यव्हार को जानने का सबसे विस्तृत और सरल तरीका ' महाभारत ' ही है | इसे पंचमवेद भी कहा जाता है |<br />
</div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-55522798803463667142011-02-19T04:36:00.000-08:002011-02-19T04:36:54.785-08:00रामायण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><img src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRgilaBfP67RTTeOGEA52QGc78h_0Y2976dx9UzNmUiug54MTqKmw" />संस्कृत साहित्य में ' रामायण ' को ' आदिकाल ' कहा जाता है तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को ' आदिकवि ' | वाल्मीकि के जीवन के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता | प्रसिद्ध है की वाल्मीकि पहले लूटमार से अपने परिवार का भरण - पोषण करते थे | ऋषियों के एक समूह से मिलने के बाद उनके जीवन दिशा बदल गई और वे तप- साधना , ज्ञानचर्या में प्रवृत हो गये | वाल्मीकि के कवि बनने की कहानी काम - मोहित क्रोंच पक्षी के मारे जाने से जुडी है | जब एक शिकारी ने मैथुनरत क्रोंच पक्षी - युगल पर बाण चलाकर नर क्रोंच को मार दिया तो क्रोची विलाप करने लगी | क्रोंची का करुण स्वर सुनकर वाल्मीकि शोक विह्वल हो गए | शोकाकुल महर्षि के मुख से जो वाणी फूटी उसे श्लोक कहा गया | इस श्लोक का भावार्थ था ' हे व्याध ! तुमने काम मोहित इस क्रोंच पक्षी को मारा हे , अत: तुम कभी प्रतिष्ठा न प्राप्त करो | ' वाल्मीकि ने जो राम कथा लिखी उसमें वे स्वंम उपस्थित हैं | सीता और उनके दो पुत्रों कुश तथा लव का पालन - पोषण वाल्मीकि के ही आश्रम में होता हे |<br />
<div> रामायण के रचनाकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं | मर्यादा - पुरुष के रूप में राम वैदिक परम्परा में तो विख्यात हैं हीं , इसके साथ जैन तथा बोद्ध परम्पराओं में भी उन्हें स्थान दिया गया हे | लोक में राम की प्रसिद्धी बहुत प्राचीन है | विंटरनित्स का विचार है की रामायण का मूल स्वरूप ईसा पूर्व चोथी शताब्दी में तैयार हुआ तथा इसका अंतिम स्वरुप दूसरी शताब्दी ईस्वी के लगभग निश्चित हुआ | कुछ विद्वान उत्तर काण्ड को तथा बालकाण्ड के कुछ हिस्सों को वाल्मीकिकृत न मानकर प्रक्षिप्त बताते हैं | जर्मन विद्वान याकोबी मूल रामायण में पांच ही काण्ड स्वीकारते है - अयोध्या से लेकर उत्तरकाण्ड तक | जो हो , रामायण के उपलब्ध वर्तमान स्वरुप का कथा विन्यास शिथिल या अस्त - व्यस्त नहीं है | रामायण के श्लोकों की कुल संख्या चौबीस हज़ार है जिससे इसे ' चतुर्विंशति सहस्त्री सहिंता ' कहते है | ' रामायण ' में प्रायेह अनुष्टुप छंद का व्यवहार हुआ है | वाल्मीकि इस छंद के आविष्कारक माने जाते हैं | रामायण का पाठ कई रूपों में मिलता है | आजकल इसके तीन पाठ प्रचलित हैं | दक्षिणात्य पाठ , गोंडीय पाठ तथा पश्चिमोत्तरीय पाठ | </div><div><div style="text-align: left;"> </div></div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-19706687939768440162011-02-18T17:37:00.000-08:002011-02-18T19:26:24.437-08:00होंसलों की उड़ान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"><img src="http://t3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcRl7sfuie63WzV2VGETJxmqFxHFZ4TEbKjjvmI-zFebAlz3lMh3" /></div></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;">आप कुछ भी कर पाने मे सक्षम हैं , </div><div style="text-align: left;">फिर चाहे वो आपकी सोच हो , </div><div style="text-align: left;">आपका जीवन हो आपके सपने </div><div style="text-align: left;">हों सब सच हो सकते हैं | </div><div style="text-align: left;">आप जो चाहे वह कर सकते हैं | </div><div style="text-align: left;">आप इस अन्नत ब्रह्मांड की तरह</div><div style="text-align: left;">ही अनंत संभावनाओं से परिपूर्ण हैं | </div></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3837033565375927171.post-25972128936333580862011-02-16T10:07:00.000-08:002011-02-16T19:11:37.946-08:00मोहब्बत<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: large;"><img height="217" src="http://mdb2.ibibo.com/07553616c7465645f5f4dd50a79966b96928791389fc649d64981ad3b3168dc581e5c18d88f581bbb211c361d699187e62d523521.jpeg" width="320" /></span><br />
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<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">दिल की किताब मैं गुलाब उनका था ,</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">रात की नींद मै भी ख्वाब उनका था ,</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">कितना प्यार करते हो जब हमने पूछा ,</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: large;">मर जायेंगे तुम्हारे बिना ये जवाब उनका था |</span></div>Minakshi Panthttp://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.com3