गुरुवार, 6 जनवरी 2011

मंजिल


कदम चूम लेती है आके मंजिल उसकी ,
अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे !
हार मानता नहीं जो अपनी मंजिल से ,
मंजिले खुद राह बनती जाती हैं !
जिंदगी का सफ़र बहुत ही लम्बा है ,
कोई  हर दम न साथ चलता है !
राही बनके राहों को पता बताते चलो !
अपनी मंजिल को खोजो और आजमाते चलो !

9 टिप्‍पणियां:

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

कदम चूम लेती है आके मंजिल उसकी ,
अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे !

बहुत सही है ..
कहते हैं
‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’

ashish ने कहा…

हिम्मते मर्दां मददे खुदा . सुन्दर रचना .

Minakshi Pant ने कहा…

bahut bahut shukriya dost .

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई ।

अभिषेक मिश्र ने कहा…

पूर्णतः सहमत. मेरी जिंदगी को भी कहीं छुती हैं ये पंक्तियाँ.

सहज समाधि आश्रम ने कहा…

बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com

http://anusamvedna.blogspot.com ने कहा…

कदम चूम लेती है आके मंजिल उसकी ,
अगर राही खुद अपनी हिम्मत न हारे !
हार मानता नहीं जो अपनी मंजिल से ,
मंजिले खुद राह बनती जाती हैं !
जिंदगी का सफ़र बहुत ही लम्बा है ,
कोई हर दम न साथ चलता है !
राही बनके राहों को पता बताते चलो !
अपनी मंजिल को खोजो और आजमाते चलो !


बेहतरीन और उत्साहवर्धक कविता ...........

Minakshi Pant ने कहा…

होंसला अफजाई के लिए आप सबका शुक्रिया दोस्त !

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

कविता में व्यक्त आपके निष्कर्षों से पूर्ण सहमती है.