गुरुवार, 30 सितंबर 2010

दास्ताँ


  हमारी दास्ताँ पूरी सुनना ये दोस्त लेकिन ,
वहां से रुख बदल देना जहां माथे पे बल आये !

कोई टिप्पणी नहीं: