रविवार, 20 फ़रवरी 2011

महाभारत :

'भारतीय परम्परा में रामायण तथा महाभारत को अत्यधिक महत्व प्राप्त है | इन्हें उपजीव्य काव्य कहा जाता है | उपजीव्य कहने का अर्थ यह है की ये ग्रन्थ  परवर्ती रचनाओं के स्त्रोत रहे हैं | संस्कृत काव्य - परम्परा के अतिरिक्त भारत की दूसरी भाषाओँ के रचनाकारों ने रामायण तथा महाभारत के आधार पर अनगिनत काव्यों की रचना की है | हमारे सांस्कृतिक मानस के निर्माण में इन कृत्यों की उल्लेखनीय भूमिका है |
               रामायण को काव्य कहा जाता है और महाभारत  को ' इतिहास ' | यहाँ इतिहास का मतलब एसे  पूर्ववृत से है जिसके माध्यम से धर्म  , अर्थ , काम और मोक्ष का उपदेश दिया जा सके | रामायण को महाभारत  से प्राचीनतर  माना जाता है | वाल्मीकि द्वारा रचित ' रामायण ' की कथा से महाभारतकार  न केवल परिचित है बल्कि वह रामकथा प्रसंगानुकुल प्रस्तुत भी करता है | रामकथा का वर्णन ' आरण्यक ' द्रोण और ' शांतिपर्व ' में मिलता है |' शांतिपर्व ' में प्राप्त रामोपाख्यान सबसे अधिक विस्तृत  है | इसकी व्याख्या शोकाकुल युधिष्ठिर को ऋषि मार्कण्डेय सुनाते हैं | वेद व्यास को महाभारत  का रचनाकार माना जाता है | वेद व्यास का पूरा नाम कृष्ण दैव्पायन व्यास है | वे सत्यवती तथा पराशर के पुत्र थे | यमुना के किसी द्वीप में पैदा होने के कारण उन्हें ' ' दैव्पायन ' , शरीर  के रंग के कारण ' कृष्ण मुनि ' तथा वेद का सहिंताओं  के रूप में विस्तार करने के कारण वेद व्यास कहा जाता है |  महाभरत युद्ध और ' महाभारत  ' ग्रन्थ की रचना के समय को लेकर विद्वानों में पर्याप्त विवाद है | ज्यादातर माना जाता है की महाभारत  की रचना बुद्धपूर्व युग में हो चुकी थी | बुद्ध  का समय छठी शताब्दी ईसा पूर्व है |
                  वर्तमान महाभारत  में एक लाख श्लोक मिलते हैं | इसी से इसे शतसहस्त्र संहिता भी कहते हैं | विद्वानों का विचार है की यह किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं हो सकती | दुसरे रचनाकारों ने समय -समय पर इसके कलेवर में वृद्धि की होगी | इस ग्रन्थ के विकास के तीन क्रमिक चरण माने जाते हैं ___ जय , भारत तथा महाभारत  | मूल ग्रन्थ ' जय ' के रचनाकार महर्षि वेद व्यास हैं | इसी का विस्तार करते हुए वेश्म्पायन ने ' ' भारत '  तथा सोति ने ' महाभारत ' का प्रणयन किया | महाभारत  में अठारह पर्व हैं | अपने वृहदाकार ( बहुत बड़ा आकर ) और तमाम विषयों के समावेश के कारण इसे विश्व कोष कहा जाता है | इस ग्रन्थ की बहुत सी टीकाएँ की गई हैं | इसकी विशालता को लक्षित करके ये कहना उचित  जान पड़ता है की ' इस ग्रन्थ में जो कुछ है वह अन्यत्र ( दूसरी जगह ) है , परन्तु जो कुछ इसमें नहीं है वह कहीं  और भी नहीं है | ' प्राचीन राजनीती , लोक -व्यव्हार  को जानने का सबसे विस्तृत और सरल तरीका ' महाभारत ' ही है | इसे पंचमवेद  भी कहा जाता है |
   

5 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut kuch janne ko mila

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति..

मनोज कुमार ने कहा…

जानकारी प्रदान करने के लिए आभार!

विशाल ने कहा…

महाभारत के बारे में बहुत ही उम्दा जानकारी दी आपने.
इस पोस्ट को सहेज कर रखूंगा.
तहे दिल से सलाम.

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी जानकारी दी है आपने यहां ।